India News (इंडिया न्यूज़), Arunachaleshwar Mahadev: भगवान भोलेनाथ की आराधना कर किसी भी दुख को दूर करके सुख की प्राप्ति की जा सकती है। वही भगवान की मूर्ति से ज्यादा उनके लिंग की पूजा करने का महत्व माना जाता है और कई लोगों के मन में यह सवाल भी उत्पन्न होता है की सबसे पहली शिवलिंग कहां उत्पन्न हुआ था।
अरुणाचल प्रदेश में अन्नामलाई पर्वत पर मौजूद तमिलनाडु में स्थित यह पर्वत के पास भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर मौजूद है। जिसको अरुणाचलेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के पास पर्वत पर नवंबर से दिसंबर के बीच त्यौहार मनाया जाता है। जिसे कार्तिगई दीपम के नाम से जाना जाता है।
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इसके साथ ही बता दें की इस मंदिर में भगवान के दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में भक्तजन पहुंचते हैं। इस दिन पर्वत की शिखा पर घी का एक अग्नि पूंज जलाया जाता है। जो सिर्फ के अग्नि स्तंभ का प्रतीक होता है। इस खास अवसर और महाशिवरात्रि के मौके पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन करने और उसे दिव्या ज्योति को देखने आते हैं।
बता दे कि अरुणाचलेश्वर मंदिर के आसपास 8 दिशाओं में 8 शिवलिंग स्थापित है। जो अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं। वही यह सभी शिवलिंग अलग राशि का प्रतीक है। इंद्रलिंगम का संबंध वृष राशि से है। अग्नि लिंगम का संबंध सिंह राशि से, यम लिंगम का संबंध वृश्चिक राशि से, नैऋत्य लिंगम का संबंध मेष राशि से, वरुण लिंगम का संबंध मकर और कुंभ राशि से, वायु लिंगम का संबंध कर्क राशि से, कुबेर लिंगम का संबंध धनु और मीन राशि से, वही ईशान लिंगम का संबंध मिथुन और कन्या राशि से। ऐसे में लोग अपनी राशि के अनुसार ही ग्रहों के दोष दूर करने के लिए इन शिवलिंगों की खास पूजा करते हैं।
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वही इस खास मंदिर से जुड़ी मान्यता के बारे में बताया तो हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार। एक बार कैलाश पर्वत पर माता पार्वती ने खेल-खेल में अपने हाथों से शिवजी की आंखें बंद कर दी थी। जिस वजह से उसे समय ब्रह्मांड में अंधकार छा गया था। कई सालों तक पूरे विश्व में अंधकार रहा, उसके बाद माता पार्वती के साथ अन्य देवताओं ने मिलकर तपस्या की तब जाकर शिवजी अग्नि पूजा के रूप में अनामलाई पर्वत के इस शिखर पर प्रकट हुए थे। जिसको अब अरुणाचलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। उसे दौरान शिव जी ने माता पार्वती के शरीर में विनय किया था और अर्द्धनारीश्वर बन गए थे। वही बता दे की अर्द्धनारीश्वर का मंदिर इसी पर्वत पर मौजूद है।
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