धर्म

आने वाली है ऐसी रात जब तांत्रिक खेल होगा चरम सीमा पर, जाने कब और कैसे होती है ये दिल दहला देने वाली पूजा?

India News (इंडिया न्यूज), Mahanisha Kalratri Diwali: सनातनी परंपरा में दीपावली को तीसरी महानिशा के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो तंत्र साधकों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस वर्ष, 31 अक्तूबर को आने वाली अमावस्या पर तंत्र साधकों को 26 घंटे 24 मिनट का समय साधना के लिए मिलेगा। कालरात्रि के रूप में जानी जाने वाली इस महानिशा का समय सिद्धि प्राप्ति के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है। भृगु संहिता विशेषज्ञ पं. वेदमूर्ति शास्त्री के अनुसार, दीपावली के दिन सूर्यास्त से मध्यरात्रि तक का समय साधना के लिए सबसे प्रभावी होता है।

महानिशाओं का महत्व

दीपावली, सनातनी शास्त्रों में वर्णित तीन प्रमुख महानिशाओं में से एक है। पहली महानिशा महाशिवरात्रि है, जो भगवान शिव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है। दूसरी महानिशा मोहरात्रि, जिसे जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है और भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का पर्व है। दीपावली को तीसरी महानिशा कहा गया है, जिसमें तंत्र साधकों को साधना करने के लिए विशेष अवसर मिलता है। इस महानिशा के दौरान प्राप्त सिद्धियों का उपयोग जनकल्याण के लिए किया जाता है, जिससे साधक न केवल आत्मिक उन्नति करते हैं, बल्कि समाज के हित में भी कार्य करते हैं।

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तंत्र साधकों के लिए विशेष समय

इस वर्ष दीपावली के दिन अमावस्या दोपहर बाद 03:52 बजे से आरंभ होगी और अगले दिन तक रहेगी। साधकों के लिए सूर्यास्त से मध्यरात्रि तक का समय विशेष प्रभावी बताया गया है। इस समय में साधना करने से सिद्धियों की प्राप्ति होती है और आत्मिक शक्ति बढ़ती है। दीपावली की रात को मोहरात्रि, शिवरात्रि, होलिका दहन और शरद पूर्णिमा की तरह जागरण का विशेष महत्व है, जहां साधक रातभर जागकर साधना करते हैं।

अभिजीत मुहूर्त का अभाव

इस बार दीपावली पर अभिजीत मुहूर्त नहीं मिलेगा, जो कि लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए शुभ माना जाता है। 31 अक्तूबर को दोपहर बाद 03:52 बजे अमावस्या लगने के कारण अभिजीत मुहूर्त का समय (दिन में 11:53 से 12:34 बजे तक) चतुर्दशी तिथि में रहेगा। हालांकि, लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए अन्य शुभ मुहूर्तों का पालन किया जा सकता है।

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दीपावली पर विशेष पूजा विधि

दीपावली की संध्या पर सबसे पहले घर के अंदर दीपक जलाएं। इसके बाद, एक दीपक लेकर घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर खड़े होकर आकाश की ओर दिखाएं। मान्यता है कि यह दीपक धरती पर उपस्थित पितरों को मार्ग दिखाता है, जिससे वे प्रसन्न होकर अपने लोक की ओर प्रस्थान करते हैं। इसके बाद ही घर के बाहर और देवालयों में दीप जलाने का विधान है। यह प्रक्रिया पितृ तर्पण के रूप में जानी जाती है, जो कि परिवार में समृद्धि और सुख-शांति लाने में सहायक मानी जाती है।

निष्कर्ष

दीपावली न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि साधकों के लिए आत्मिक उन्नति का भी विशेष अवसर है। इस दिन की जाने वाली साधनाएं सिद्धियों के प्राप्ति में सहायक होती हैं, और इसे तंत्र साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। पूजा के समय की विशेष विधियों का पालन करना और अभिजीत मुहूर्त का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि पूजा के फल को प्राप्त किया जा सके।

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Prachi Jain

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