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Maharaja Agrasen is Believed to be the Descendant of Lord Rama. महाराजा अग्रसेन माने जाते हैं भगवान राम के वंशज

Maharaja Agrasen is Believed to be the Descendant of Lord Rama

इस बार महाराजा अग्रसेन जयंती शरद नवरात्रि के पहले दिन है। यह पर्व उत्तर प्रदेश व राजस्थान में व्यापारी और अग्रहरी समुदाय द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। महाराजा अग्रसेन का जन्म द्वापर के अंतिम यानि कलयुग के प्रारंभ में आश्विन शुक्ल में हुआ था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाराजा अग्रसेन मयार्दा पुरुषोत्तम भगवान राम के वंशज थे। महाराजा अग्रसेन ने पशु बलि की प्रथा को किया था खत्म। महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है। वह प्रताप नगर के सूयंर्वंशी क्षत्रिय राजा वल्लभ के पुत्र थे। उन्होंने अग्रेय राज्य की स्थापना की, जिसे आज अग्रोहा के नाम से जाना जाता है। व्यापारी समुदाय और अग्रहरी समुदाय के लोगों द्वारा महाराजा अग्रसेन की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है। माहाराजा अग्रसेन जी की जयंती हर साल नवरात्र के पहले दिन मनाई जाती है। इस बार अग्रसेन जयंती का पावन पर्व 7 अक्टूबर 2021, बृहस्पतिवार को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाराजा अग्रसेन मयार्दा पुरुषोत्तम भगवान राम के वंशज थे। महाराजा अग्रसेन जी का जन्म भगवान राम के चौतीसवीं पीढ़ी में द्वापर के अंतिम यानि कलयुग के प्रारंभ में आश्विन शुक्ल में हुआ था। वह प्रताप नगर के राजा वल्लभसेन व माता भगवती देवी के सबसे बड़े पुत्र थे। आपको बता दें प्रताप नगर वर्तमान में राजस्थान एवं हरियाणा राज्य के बीच सरस्वती नदी के किनारे है। ऐसे में इस लेख के माध्यम से आइए जानते हैं परम प्रतापी और तेजस्वी राजा अग्रसेन की जयंती कब है और उनके जीवन से जुड़ी खास बातें। इस बार महाराजा अग्रसेन जयंती नवरात्रि के पहले दिन यानि 7 अक्टूबर 2021, बृहस्पतिवार को है। यह पर्व उत्तर प्रदेश व राजस्थान में व्यापारी और अग्रहरी समुदाय द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

Maharaja Agrasen is Believed to be the Descendant of Lord Rama महाराजा अग्रसेन से जुड़ी पौराणिक कथा

महाराजा अग्रसेन बचपन से ही मेधावी एवं अपार तेजस्वी थे। पिता की आज्ञा से वह नागराज मुकुट की कन्या माधवी के स्वंयवर में गए। जहां अनेक वीर योद्धा, राजा, महाराजा और देवता सभा में उपस्थित थे। नागराज की पुत्री माधवी महाराजा अग्रसेन की सुंदरता को देख मोहित हो उठी और उनके गले में वर माला डाल दिया। इसे देख देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा। जिससे उनके राज्य में सूखा पड़ गया, बारिश ना होने के कारण राज्य की प्रजा के बीच संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई। प्रजा को कष्ट में देख अग्रसेन काफी दुखी हो गए और उन्होंने अपने अराध्य देव भगवान शिव की उपासना की, अग्रसेन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने वरदान दिया कि उनके नगर में सुख समृद्धि और खुशहाली लौट आएगी। वहीं धन संपदा और वैभव के लिए अग्रसेन जी ने महालक्ष्मी की अराधना की। मां लक्ष्मी ने अग्रसेन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें साक्षात दर्शन दिए और समस्त सिद्धियां, धन वैभव प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया और कहा कि तप को त्याग कर गृहस्थ जीवन का पालन करो। तथा अपने वंश को आगे बढ़ाओ, तुम्हारा यही वंश कालांतर में तुम्हारे नाम से जाना जाएगा व नाग राजाओं से संबंध स्थापित करने का आदेश दिया, जिससे राज्य शक्तिशाली हो सके। वहां के नागराज महिस्त ने अपनी कन्या सुंदरावती का विवाह महाराजा अग्रसेन के साथ किया। जिनसे उन्हें 18 पुत्रों की प्राप्ति हुई।

Maharaja Agrasen is Believed to be the Descendant of Lord Rama महाराजा अग्रसेन के पुत्रों के नाम पर हैं अग्रवाल समाज के गोत्र

राजा अग्रसेन ने माता लक्ष्मी के आदेश अनुसार वैश्य समाज की स्थापना कर इस राज्य को उत्तरी भाग में बसाया था, जिसके चलते इसका नाम अग्रोहा पड़ा। इस राज्य को व्यवस्थित करने के लिए महाराजा अग्रसेन ने महर्षि गर्ग के कहने पर इसे 18 भागों में विभाजित किया और अपने 18 पुत्रों के साथ 18 यज्ञ करवाया। इन्हीं के नाम पर अग्रवाल समाज के 18 गोत्रों की स्थापना हुई। जिसमें बंसल, बिंदल, धारण, गर्ग, गोयल, गोयन, जिंदल, कंसल, कुच्छल, मंगल, मित्तल, नागल, सिंघल, तायल और तिंगल शामिल हैं।

Maharaja Agrasen is Believed to be the Descendant of Lord Rama पशु बलि प्रथा को किया था खत्म

महाराजा अग्रसेन को पशु व जानवरों से काफी लगाव था। लेकिन उनके समय में किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत से पहले व यज्ञ और हवन में पशुओं की बलि देने की प्रथा थी। प्रथा के अनुसार एक बार गोत्र की स्थापना के समय 18 यज्ञ शुरू हुए। प्रथा के अनुसार हर एक यज्ञ में एक पशु की बलि दी जाती थी। लेकिन जब अठारहवें यज्ञ के समय जीवित पशु को बलि के लिए लाया गया तो महाराजा अग्रसेन इस कृत्य से क्रोधित हो गए और वह इससे घृंणा करने लगे। यही कारण है कि अग्रसेन जी ने पूजा पाठ व यज्ञ में जानवरों की बलि का विरोध किया और इसे बंद करवाने के निर्देश दिए। उन्होंने अपने राज्य में घोषणा करवा दिया कि अब कोई भी व्यक्ति जानवरों की बलि नहीं देगा और ना ही मास मच्छी का सेवन करेगा। वह इस घटना से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने क्षत्रिय धर्म त्याग कर वैश्य धर्म अपना लिया था।

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