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Mahashivratri: झारखंड के बैद्यनाथ धाम के पंचशूल छूने के लिए उमड़ पड़े हजारों हाथ?, जानिए महत्व और खासियत

Reepu kumari • LAST UPDATED : March 7, 2024, 2:22 pm IST

India News(इंडिया न्यूज),Mahashivratri: देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि से पहले शिव-पार्वती मंदिर के शिखर पर लगे पंचशूल को उतारकर साफ किया जाता है. इसके बाद दूसरे दिन पंचशूल की विधिपूर्वक पूजा करके उसे पुन: मंदिर के शिखर पर स्थापित किया जाता है। एक विशेष परंपरा के तहत मंदिर के शीर्ष पर स्थापित पंचशूल को नीचे लाया जाता है और फिर उसकी पूजा की जाती है। बुधवार को जब पंचशूल को देवघर के बाबा मंदिर से उतारा गया तो उसे छूने के लिए मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. बुधवार को उतारे गए पंचशूल की साफ-सफाई के बाद गुरुवार को विधिवत पूजा-अर्चना के बाद दोनों मंदिरों में चढ़ाया गया। जब पंचशूल को मंदिर से हटा दिया गया तो मंदिर में गठबंधन पूजा बंद रही।

लंका के राजा रावण से जुड़ा है वैद्यनाथ धाम का इतिहास

बाबा बैद्यनाथ मंदिर देवघर के शिखर पर पंचशूल स्थापित है. मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके सिर पर त्रिशूल नहीं बल्कि पंचशूल है। जिसे मंदिर का सुरक्षा कवच माना जाता है। देश में सिर्फ देवघर मंदिर के शिखर पर ही पंचशूल होने का दावा किया जाता है. रहस्यों से भरा है वैद्यनाथ धाम का ये पंचशूल. पंचशूल में पांच तत्व हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु जबकि त्रिशूल में तीन तत्व हैं- वायु, जल और अग्नि। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक देवघर के बाबा वैद्यनाथ धाम का इतिहास लंका के राजा रावण से जुड़ा है।

मंदिर को प्राकृतिक आपदाओं से बचाता है पंचशूल

मान्यता है कि बाबा के मंदिर के शिखर पर स्थापित यह पंचशूल मनुष्य को अजेय शक्ति प्रदान करता है। बाबा बैद्यनाथ मंदिर में स्थापित पंचशूल को लेकर धर्मगुरुओं के बीच अलग-अलग मान्यताएं हैं. लेकिन एक बात पर सभी सहमत हैं कि पंचशूल का इतिहास और महत्व त्रेत्र युग के लंका के राजा रावण से जुड़ा है। कहा जाता है कि देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर का निर्माण लंका के राजा रावण ने कराया था. मंदिर की सुरक्षा के लिए रावण ने स्वयं शिखर पर पंचशूल का सुरक्षा कवच स्थापित किया था। यही कारण है कि आज तक बाबा बैद्यनाथ मंदिर पर किसी भी प्राकृतिक आपदा का प्रभाव नहीं पड़ा है।

रामायण में मौजूद है पंचशूल की गाथाएं

यह भी कहा जाता है कि रावण ने लंका की सुरक्षा के लिए लंका के चारों द्वारों पर पंचशूल का सुरक्षा कवच लगा रखा था। रावण तो इस पंचशूल को भेदना जानता था लेकिन भगवान राम इससे अनभिज्ञ थे। इसके बाद विभीषण के बताने पर ही श्रीराम और उनकी सेना लंका में प्रवेश कर पाई। पंचशूल के बारे में कहा जाता है कि यह मानव शरीर में मौजूद पांच विकारों- काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या को नष्ट कर देता है। यह पांच तत्वों – मिट्टी, पानी, आकाश, आकाश और हवा से बने मानव शरीर का पर्याय है।

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