India News (इंडिया न्यूज़), Mahila Naga Sadhu Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की भव्य शुरुआत हो चुकी है। इस महापर्व में करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर स्नान करने के लिए पहुंच रहे हैं। महाकुंभ में साधु-संतों का जमावड़ा हर बार श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। इनमें से नागा साधु और महिला नागा साधुओं की उपस्थिति हमेशा रहस्यमय और अद्भुत होती है।

महिला नागा साधुओं का जीवन और रहस्य

महिला नागा साधु कौन होती हैं?

महिला नागा साधु वे साध्वियां होती हैं, जिन्होंने गृहस्थ जीवन को त्यागकर अपना जीवन पूरी तरह भगवान और साधना को समर्पित कर दिया है। वे दुनिया के हर भौतिक बंधन से मुक्त होकर ईश्वर की भक्ति में लीन रहती हैं। नागा साधुओं की तरह ही महिला नागा साधुओं का जीवन भी कठिन साधना और तप से भरा होता है।

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महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया

महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन और अनुशासन से भरी होती है। इसके लिए उन्हें:

  1. ब्रह्मचर्य का पालन: 10 से 15 वर्षों तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।
  2. गुरु की स्वीकृति: गुरु को यह विश्वास दिलाना होता है कि साधिका ईश्वर के प्रति समर्पित है।
  3. पिंडदान: नागा साधु बनने से पहले जीवित रहते हुए पिंडदान और मुंडन करवाना पड़ता है।
  4. शिव और दत्तात्रेय की आराधना: प्रतिदिन सुबह और शाम विशेष आराधना करनी होती है।
  5. कठिन साधना: नागा साधु बनने के लिए हर परीक्षा और नियम का पालन करना अनिवार्य होता है।

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महिला नागा साधु का पहनावा और आहार

  • महिला नागा साधु गेरुए रंग के वस्त्र पहनती हैं, जिन्हें “गंती” कहा जाता है।
  • वे कंदमूल, फल, जड़ी-बूटी और पत्तियां खाती हैं। उनका आहार शुद्ध और सात्विक होता है।

महिला नागा साधुओं का स्थान और भूमिका
महिला नागा साधु कुंभ मेले के दौरान शाही स्नान में भाग लेती हैं। उनके लिए अलग अखाड़ों की व्यवस्था की जाती है। इन्हें “माई,” “अवधूतानी,” या “नागिन” के नाम से भी पुकारा जाता है।

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महिला नागा साधुओं का महत्व

महिला नागा साधु न केवल धार्मिक परंपराओं को निभाती हैं, बल्कि वे साधना और तप के माध्यम से ईश्वर के प्रति अटूट भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। उनके जीवन का उद्देश्य समाज को सच्ची साधना और भक्ति का मार्ग दिखाना होता है।

महाकुंभ में महिला नागा साधुओं की उपस्थिति इस पर्व को और भी खास बनाती है। वे न केवल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती हैं, बल्कि अपने जीवन और साधना से प्रेरणा भी देती हैं।

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