धर्म

हिन्दू धर्म में कितने तरीकों से किया जा सकता हैं विवाह, इस विशेष को दिया गया है सर्वश्रेष्ठ स्थान?

India News (इंडिया न्यूज), Hindu Dharm Vivah:हिंदू धर्म में जीवन के प्रत्येक चरण के लिए निर्धारित संस्कारों की महत्वपूर्ण भूमिका है, और इन संस्कारों में विवाह को विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से वि वाह चौथे संस्कार के रूप में जाना जाता है। हालांकि आजकल हम केवल दो प्रकार की शादियों, लव मैरिज और अरेंज मैरिज, के बारे में जानते हैं, प्राचीन शास्त्रों के अनुसार विवाह के 8 प्रमुख प्रकार बताए गए हैं। इनमें से कुछ संस्कारों को उच्च दर्जा प्राप्त है, जबकि कुछ को निम्न स्तर पर रखा गया है। आइए जानते हैं इन 8 प्रकार के विवाह के बारे में और उनकी विशेषताओं को विस्तार से।

ये हैं मुख्यतः वो 8 तरीकों से होने वाले विवाह:

1. ब्रह्म विवाह

वर्णन: ब्रह्म विवाह को सर्वश्रेष्ठ प्रकार का विवाह माना गया है। इसमें वर और वधू के परिवारों की पूरी सहमति और वैदिक नियमों का पालन किया जाता है। इस विवाह में कुल, गोत्र, कुंडली मिलान, और अन्य परंपराओं का पालन किया जाता है।

महत्व: यह विवाह धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से सर्वोच्च दर्जे का माना जाता है। इसमें दोनों पक्षों के परिवारों की मान्यता और उनके बीच सहयोग का आदान-प्रदान होता है।

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2. आर्ष विवाह

वर्णन: आर्ष विवाह का संबंध ऋषियों से है। इसमें कन्या के पिता को गाय, बैल या उनके जोड़े के रूप में दान देकर विवाह संपन्न होता है।

महत्व: यह विवाह ऋषि-मुनियों की परंपरा का पालन करता है और इसका उद्देश्य धार्मिक और आध्यात्मिक उत्थान होता है। इसमें दान की प्रथा महत्वपूर्ण मानी जाती है।

3. प्रजापत्य विवाह

वर्णन: प्रजापत्य विवाह में एक विशेष पूजा के बाद विवाह संस्कार होते हैं। कन्या के पिता नवविवाहित दंपति को गृहस्थ जीवन का पालन करने का आदेश देते हैं।

महत्व: इस विवाह में धार्मिक अनुष्ठान के साथ-साथ गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों को निभाने की तैयारी की जाती है। यह विवाह पारंपरिक और सामाजिक मान्यताओं के अनुसार होता है।

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4. देव विवाह

वर्णन: देव विवाह का आयोजन खास सेवा या धार्मिक उद्देश्य से किसी विशेष वर से किया जाता है। इसमें कन्या की सहमति से उसका विवाह कराया जाता है।

महत्व: यह विवाह धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। इसमें वर और वधू की सहमति पर जोर दिया जाता है और इसका उद्देश्य धार्मिक कार्यों के प्रति समर्पण होता है।

5. असुर विवाह

वर्णन: असुर विवाह में कन्या के परिजनों को धन देकर वर पक्ष उसे खरीदता है और उसके बाद बिना सहमति के उससे विवाह करता है।

महत्व: इस प्रकार का विवाह सामाजिक और नैतिक दृष्टि से विवादास्पद माना जाता है। इसमें कन्या की स्वीकृति के बिना विवाह किया जाता है, जो इसे एक निम्न दर्जे का विवाह बनाता है।

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6. गांधर्व विवाह

वर्णन: गांधर्व विवाह को लव मैरिज का रूप माना जाता है। इसमें प्रेमी जोड़ा एक-दूसरे के गले में फूलमाला डालकर और शादी की इच्छा जताते हैं।

महत्व: यह विवाह प्रेम और व्यक्तिगत सहमति पर आधारित होता है। इसमें दो व्यक्तियों की आपसी समझ और चाह का सम्मान किया जाता है।

7. राक्षस विवाह

वर्णन: राक्षस विवाह में कन्या की इच्छा के खिलाफ अपहरण या जबरदस्ती से उसका विवाह किया जाता है।

महत्व: यह विवाह बहुत ही निम्न स्तर का माना जाता है, क्योंकि इसमें कन्या की सहमति और इच्छा का कोई सम्मान नहीं किया जाता। इसे अत्यधिक अमानवीय और अनैतिक माना जाता है।

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8. पैशाचिक विवाह

वर्णन: पैशाचिक विवाह सबसे निम्न कोटि का होता है। इसमें कन्या की सहमति के बिना, धोखे से या बेहोश करके उससे दुष्कर्म किया जाता है और उसके बाद विवाह किया जाता है।

महत्व: यह विवाह अत्यंत अवैध और अमानवीय है। इसमें कन्या की कोई भी स्वीकृति या सहमति नहीं होती, और यह गंभीर रूप से अनैतिक और अपराधी माना जाता है।

निष्कर्ष

हिंदू धर्म में विवाह न केवल एक सामाजिक प्रथा है, बल्कि यह जीवन के विभिन्न पहलुओं और नैतिकता के साथ भी जुड़ा हुआ है। विभिन्न प्रकार के विवाह संस्कारों की इस सूची से यह स्पष्ट होता है कि विवाह का आदर्श रूप वह है जिसमें दो पक्षों की सहमति और धार्मिक मान्यताओं का पालन किया जाए। अन्य प्रकार के विवाह, जिनमें स्वीकृति और नैतिकता का अभाव होता है, उन्हें निम्न दर्जे का माना जाता है और सामाजिक दृष्टि से उनकी आलोचना की जाती है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

Prachi Jain

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