India News (इंडिया न्यूज), Murthal Sell only Vegetarian: दिल्लीवालों के साथ ही 7 राज्यों में पराठों के लिए फेमस मुरथल की बात ही अलग है। दिल्ली में चांदनी चौक के बाद यदि कोई जगह पराठे के लिए फेमस है तो वह मुरथल है। मुरथल में एक नहीं बल्कि कई अलग-अलग तरह के पराठों का जायका लिया जा सकता है। हम तो यूं कहेंगे कि, पराठों के शौकीन लोगों के लिए मुरथल से बेहतर कोई जगह हो ही नहीं सकती है। दूर दूर से लोग यहां टेस्टी पराठे का जायका लेने के लिए आते हैं।
किसी भी दिन यहां जाकर पराठों का स्वाद लिया जा सकता है। आप चाहें तो यहां वीकेंड या फिर किसी हॉलिडे पर जा सकते हैं। लेकिन उससे पहले हम आपको यहां के बारे में कुछ ऐसा बताना चाहते हैं जिसको सुनकर आपकी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी। तो हम आपको बता दें की मुरथल में शाकहारी खाना ही मिलता है यहां मांसाहारी खाने की कोई डिश नहीं मिलती है, इसके पीछे का कारण आस्था और भक्ति से जुड़ा हुआ है। यदि आप पहले मुरथल गए भी हैं तब भी आपने शायद ही कभी इस बात पर गौर किया हो या किया भी होगा तो पता लगाने की कोशिश नहीं की होगी, तो अब आप जान लीजिये इसके पीछे की क्या कहानी रही है।
दरअसल साल 1956 में मुरथल में सिर्फ दो ही ढ़ाबे बने थे और उसी दौरान उस जिले के नामी संत बाबा कालीनाथ ने मुरथल के ढाबा मालिकों को मांसाहारी भोजन न बेचने की सलाह दी थी। उनका मानना था कि शाकाहारी भोजन ही सबसे अच्छा होता है और जो मांसाहारी खाना बेचेगा उसकी दुकान बंद हो जाएगी। बाबा के आशीर्वाद से ढाबा मालिकों ने इस परंपरा को अपनाया, और आज भी मुरथल के ढाबों में शाकाहारी भोजन ही मिलता है। यहां लोगों को शाकहारी खाने में ही अत्यंत आनंद आता है।
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मुरथल में सबसे पहले ढाबे की शुरुआत वहां रहने वाले सीताराम ने लगभग 1950 में की थी। जिसके बाद साल 1956 में दूसरे ढाबे का निर्माण अमरीक-सुखदेव के पिता प्रकाश सिंह ने किया था। उसी दौरान संत कालिनाथ भी अपने चमत्कारों और आशीर्वाद को लेकर बहुत मशहूर हो चुके थे, वह मलिकपुर के रहने वाले थे। बाबा ने एक दिन अपने पास प्रकाश को बुलाकर उन्हें ढ़ाबे पर केवल शाकाहारी भोजन बनाने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने यह भी बोला कि, यदि कोई उस जगह पर नॉन-वेज बनाने की कोशिश भी करेगा तो उसका सब कुछ बर्बाद हो जायेगा उसके पास कुछ नहीं बचेगा।
मुरथल में तभी से यह परंपरा चली आ रही है। साल 70 या 80 के दौरान बाबा अचानक ही कहीं गायब हो गए उनकी कहीं भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी। बाबा के जाने के बाद भी ढ़ाबा मालिकों ने उनकी बनाई यह परंपरा नहीं तोड़ी है। यहां आज भी मांसाहारी फ़ूड नहीं बनता है। ऐसा कहा जाता है कि, दो ढाबा मालिकों ने नॉन-वेज फूड़ बनाकर बेचने की शुरुआत की थी लेकिन उनकी दुकान एक महीने भी ठीक से नहीं चल पाई और आखिर में एक महीना पुरा होते होते दुकान पर ताला लग गया तो वहीं दूसरे ढ़ाबा मालिक को दुकान में बहुत भारी नुकसान का सामना करना पड़ा।
मुरथल में नॉन-वेज तो नहीं मिलता है लेकिन यहां चाप और पनीर की कई अलग अलग डिशेज आपको जरूर मिल जाएंगी। यहां का पनीर टिक्का बहुत ही लाजवाब होता है हर शाम यहां चाप और पनीर टिक्का खाने वालों की भीड़ बहुत बढ़ जाती है। लोगों को यहां का खाना बेहद जायकेदार लगता है।
मुरथल में जब ढाबों की शुरुआत हुई थी उस समय यहां बस दाल मखनी, परांठे, और खीर ही बना करती थी। लेकिन अब यहां इतनी खाने की चीजें मिलती हैं जिनकी कोई गिनती ही नहीं हैं। ट्रक चालकों से लेकर कई राज्यों के लोगों को यहां का खाना पसंद आता है, यहां लोग अपने स्पेशल इवेंट्स पर आकर भी सेलिब्रेट करते हैं।
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