स्वयंवर का प्रसंग
कथा के अनुसार, लक्ष्मी जी का स्वयंवर आयोजित किया गया था। इस स्वयंवर में अनेक देवताओं और ऋषियों का आगमन हुआ। देवऋषि नारद, जो भगवान विष्णु के परम भक्त माने जाते हैं, भी इस स्वयंवर में पहुंचे। नारद मुनि लक्ष्मी जी की सुंदरता से मोहित हो गए और उनके प्रेम में पड़ गए।
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भगवान विष्णु की माया
जब स्वयंवर में लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को देखा, तो उन्होंने अपनी दिव्य माया का प्रयोग किया। उन्होंने नारद मुनि का रूप विकृत कर दिया और उनका मुख वानर के समान बना दिया। इस माया के प्रभाव से नारद मुनि अचंभित और शर्मिंदा हो गए, जबकि लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में स्वीकार किया।
नारद का श्राप
नारद मुनि को इस अपमान का बहुत दुःख हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु पर क्रोधित होकर श्राप दिया। नारद ने कहा, “जिस प्रकार तुमने मुझे स्त्री के लिए व्याकुल किया है, उसी प्रकार तुम भी स्त्री विरह का दुःख भोगोगे।” यह श्राप भगवान विष्णु के लिए एक चुनौती बन गया।
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राम अवतार की आवश्यकता
इस श्राप के परिणामस्वरूप भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा। राम के रूप में भगवान ने न केवल नारद के श्राप को पूरा किया, बल्कि उन्होंने सीता माता के विरह का भी अनुभव किया। यह घटना हमें यह सिखाती है कि हर कार्य का फल होता है, और भगवान विष्णु भी इस श्राप को अपने धर्म के अनुसार पूरा करने के लिए विवश हो गए।
निष्कर्ष
यह कथा नारद मुनि और भगवान विष्णु के बीच की गहरी संवेदनाओं को दर्शाती है। यह सिर्फ एक श्राप नहीं, बल्कि भक्ति, प्रेम और भगवान की लीला का भी प्रतीक है। इस कथा से हमें यह समझने को मिलता है कि प्रेम और भक्ति की शक्ति अत्यंत गहन होती है, और यह हमें अपने जीवन में सच्चे उद्देश्य और सद्भावना की ओर प्रेरित करती है।
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