India News (इंडिया न्यूज), Krishna Bansuri: जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना के साथ व्रत रखा जाता है। यह व्रत अन्य व्रतों की तुलना में अधिक कठिन माना जाता है और इसे रात के 12 बजे के बाद ही खोला जाता है। साथ ही इस दिन कृष्ण भक्त अपने लल्ला को खूब भक्ति-भाव से सजाते हैं उनका श्रृंगार करते हैं और उनके उसी श्रृंगार में सबसे जरुरी आता हैं उनकी बांसुरी कई लोग तो हर साला लल्ला के जन्मदिन पर उनके लिए नै बांसुरी भी लाते हैं लेकिन अक्सर कन्फ्यूज़ हो जाते हैं कि बांसुरी ले कौन सी? लकड़ी की या चांदी की? आज आपकी यही कन्फ्यूज़न हम दूर कर देंगे…

प्राचीन भारतीय परंपरा और वास्तुशास्त्र के अनुसार, बांसुरी की महत्वता केवल संगीत के लिए नहीं, बल्कि यह शुभता और समृद्धि के प्रतीक के रूप में भी देखी जाती है। लकड़ी या चांदी की बांसुरी के बारे में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं:

चांदी की बांसुरी:

चांदी की बांसुरी आम तौर पर अधिक शुभ मानी जाती है। यह बांसुरी धातु की विशेषता के कारण धन, ऐश्वर्य और समृद्धि को आकर्षित करने का प्रतीक होती है। चांदी की बांसुरी का रंग और उसका चमक जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य को बढ़ावा देती है।

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लकड़ी की बांसुरी:

लकड़ी की बांसुरी भी शुभ मानी जाती है, लेकिन इसकी तुलना में चांदी की बांसुरी अधिक प्रभावशाली मानी जाती है। लकड़ी की बांसुरी भी समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक हो सकती है, खासकर जब इसे सही स्थान पर रखा जाए।

वास्तुशास्त्र के अनुसार बांसुरी रखने के लाभ:

शुभ स्थान:

बांसुरी को घर के पूर्वी या उत्तर-पूर्वी कोने में रखने की सलाह दी जाती है। ये स्थान जीवन में समृद्धि, खुशहाली और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने में सहायक होते हैं।

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दोगुना लाभ:

यदि बांसुरी को घर के उत्तर-पूर्वी कोने में रखा जाए, तो यह धन और समृद्धि के लिए शुभ माना जाता है। बांसुरी को उचित स्थान पर रखने से जीवन में दोगुना लाभ प्राप्त करने की संभावना होती है, क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि को बढ़ावा देती है।

संक्षेप में, चांदी की बांसुरी को घर के उत्तर-पूर्वी कोने में रखना सबसे शुभ माना जाता है, क्योंकि यह समृद्धि और धन की वृद्धि में सहायक होती है। लकड़ी की बांसुरी भी शुभ हो सकती है, लेकिन चांदी की बांसुरी अधिक प्रभावशाली मानी जाती है।

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