Categories: धर्म

One Noble thought is Enough to Destroy Ravana. रावण का विनाश करने के लिए एक श्रेष्ठ सोच ही काफी है

One Noble thought is Enough to Destroy Ravana

Dr. Archika didi

भारतवर्ष प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों का देश रहा है। इस देश में अनेक चमत्कार हुए हैं। ऋषि-मुनि तपस्या में इतने लीन हो जाते थे कि उनको खाने-पीने, सर्दी-गर्मी-बरसात तथा जंगली जानवरों की भी कोई चिन्ता नहीं होती थी। वे इतनी घोर तपस्या करते थे कि भगवान को भी उनकी तपस्या के आगे झुकना पड़ता था तथा भगवान उनके सामने प्रकट होकर उन्हें वरदान देते थे। यह इस देश में इसलिए सम्भव हो सका, क्योंकि यहां लोगों में सत्यता, कर्तव्य परायणता और परोपकार की भावना कूट-कूट भरी हुई है।

आज भी जो लोग सच्चे हृदय से भगवान पर श्रद्धा रखते हुए उनकी भक्ति में तल्लीन होते हैं, उनका आत्मबल बढ़ जाता है और वे दिव्यता को प्राप्त कर लेते हैं। उनके मुखमण्डल में यह दिव्यता साफ झलकती है। पापों से मुक्ति का पर्व दशहरा को विजयादशमी के नाम भी जाना जाता है क्योंकि आश्विन शुक्ल दशमी को ही रावण का वध किया गया था। दशहरे के दिन को इतना शुभ माना जाता है कि प्राचीन काल के राजा भी इसी दिन विजय की प्रार्थना कर रणक्षेत्र के लिए प्रस्थान करते थे।

दशहरे का पर्व दस प्रकार पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे अवगुणों को छोड़ने की प्रेरणा देशवासियों को देता है। आज के इस आधुनिक युग में हमारे चारों तरफ अहंकारी, विश्वासघाती, घूसखोर, दगाबाज, बलात्कारी और अपना हित साधने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में फैले हुए है। इसलिए आज जरूरत आन पड़ी है कि भगवान राम के आदर्शों पर चलते हुए सबसे पहले हम अपने अन्दर के रावण का अन्त करें। रावण रूपी मानव पर विजय पाने के लिए हमें पहले खुद राम बनना होगा। हम लोग बाहर रावण का पुतला तो जलाते हैं लेकिन अपने अन्दर रावणत्व को पालते हैं।
जब भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की वह काल सतयुग था परन्तु आज कलयुग है जिसमें प्रत्येक घर में रावण मौजूद हंै। इसलिए रावण पर विजय प्राप्त करने में अनेकों कठिनाइयों का सामने करना पडेगा। प्रत्येक मनुष्य को इस दिन अपने अन्दर के रावण पर विजय प्राप्त कर हर्षोंल्लास के साथ इस त्योहार को मनाना होगा। जिस प्रकार अन्धकार का नाश करने के लिए एक दीपक ही काफी होता है, वैसे ही अपने अन्दर के रावण का विनाश करने के लिए एक श्रेष्ठ सोच ही काफी है। आज हमें अपने संस्कारों, ज्ञान, कर्तव्यपरायणता, ईमानदारी, लगन और अपनी इच्छा शक्ति से जितने भी गलत कार्य हैं, उनसे दूर रहकर इस समाज और राष्ट की सेवा करनी है।

हमें अपने अन्दर पाप, काम, क्रोध, मोह, लोभ, घमण्ड, स्वार्थ, जलन, अहंकार, अमानवता और अन्याय को घुसने नहीं देना है और सत्कर्म की ओर अपने आपकोरशस्त होगा।

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