India News (इंडिया न्यूज़), Mahabharat Ekadashi Vrat: भारतीय सनातन परंपरा में व्रत का महत्व अत्यधिक है, और इसे जीवन का अभिन्न हिस्सा और एक प्रकार की दवा माना जाता है। महाभारत काल में भी व्रत रखने की परंपरा प्रचलित थी, जिसमें पांडवों ने भी भाग लिया। माता कुंती ने अपने बेटों को त्योहारों और विशेष अवसरों पर कठोर उपवास रखने की शिक्षा दी थी।
एकादशी व्रत और पांडवों की परंपरा
विशेष रूप से, एकादशी का उपवास बहुत कठिन माना जाता है, जिसमें निर्जला एकादशी सबसे चुनौतीपूर्ण होती है। पांडव भाई इस उपवास का पूरी तरह पालन करते थे। महाभारत के अनुसार, वे इस दिन भगवान कृष्ण का ध्यान करते हुए अनुष्ठान करते थे और इस दौरान पानी तक नहीं पीते थे।
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पांडवों के व्रत का भोजन
महाभारत और अन्य ग्रंथों में यह उल्लेखित है कि व्रत के बाद पांडव भाई खीर का सेवन करते थे, जो दूध, गुड़, और चावल को उबालकर बनाई जाती थी। इसके अलावा, भगवद गीता में वर्णित शशकुली भी उनके व्रत के आहार का हिस्सा होती थी। यह चावल या जौ में मीठा मिलाकर गोलाकार बनाकर बनाई जाती थी, जिसे घी में तला जाता था।
पांडवों के व्रत में कृषर भी महत्वपूर्ण था, जिसे मसले हुए चावल, इलायची, और केसर के साथ मिलाकर बनाया जाता था। कभी-कभी उनके व्रत भोजन में समवाय भी शामिल होता था, जो घी में तली गई गेहूं के आटे और दूध से बनी मिठाई होती थी।
वनवास के दौरान व्रत का पालन
वनवास के दौरान भी, पांडव भाइयों ने अपने व्रतों का पालन किया। वे जंगल में मिलने वाले फलों और सब्जियों से व्रत का भोजन बनाते थे।
भीम का संघर्ष और महर्षि वेदव्यास का मार्गदर्शन
व्रत रखने के कारण भीम अक्सर भूख से व्याकुल होते थे। महर्षि वेदव्यास और भीम के बीच एक संवाद में इसका उल्लेख मिलता है, जहां भीम ने अपनी समस्या साझा की। महर्षि व्यास ने उन्हें बताया कि व्रत रखने से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं और इससे मानसिक और शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है।
निष्कर्ष
पांडवों के व्रत और उपवास की परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह अनुशासन, आत्मसंयम, और समर्पण का भी प्रतीक है। महाभारत में वर्णित ये घटनाएं हमें यह सिखाती हैं कि भौतिक जरूरतों से परे, आध्यात्मिक लाभ और ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत और उपवास रखना कितना महत्वपूर्ण है।
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