बसंत ऋतु एक ऐसा मौसम है जब प्रकृति खिलती है और फलती-फूलती है। पृथ्वी अपने आप को नए पत्तों और पौधों से भर देती है। ऋतु का आगमन बसंत पंचमी के उत्सव के रूप में चिह्नित है। बसंत का अर्थ है बसंत का मौसम और पंचमी महीने के पांचवें दिन को दर्शाती है।
इस दिन वैसे तो स्कूल में छूती होती है लेकिन कई स्कूलों में एक दिन पहले इस दिन को सेलिब्रेट किया जाता है। अब तो कोरोना के कारण स्कूल बंद चल रहे है तो इस दौरान अक्सर ऑनलाइन प्रतियोगताएं होती हैं। जिसमे बचे अपना प्रदर्शन करते हैं। इस दिन पर अक्सर टीचर्स बच्चों से Poems भी सुनती हैं। आइये एक नज़र डालते हैं कुछ ऐसी ही Poems पर।
बसंत आ गया!
अंग-अंग में उमंग आज तो पिया,
बसंत आ गया! दूर खेत मुसकरा रहे हरे-हरे,
डोलती बयार नव-सुगंध को धरे,
गा रहे विहग नवीन भावना भरे,
प्राण! आज तो विशुद्ध भाव प्यार का हृदय समा गया!
अंग-अंग में उमंग आज तो पिया,
बसंत आ गया!
खिल गया अनेक फूल-पात से चमन,
झूम-झूम मौन गीत गा रहा गगन,
यह लजा रही उषा कि पर्व है मिलन,
आ गया समय बहार का,
विहार का नया नया नया! अंग-अंग में उमंग आज तो पिया,
बसंत आ गया!
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चलो मिल बटोर लाएँ
मौसम से वसंत
फिर मिल कर समय गुज़ारें
पीले फूलों सूर्योदय की परछाई
हवा की पदचापों में
चिडियों की चहचहाहटों के साथ
फागुनी संगीत में फिर
तितलियों से रंग और शब्द लेकर
हम गति बुनें
चलो मिल कर बटोर लाएँ
मौसम से वसंत
और देखें दुबकी धूप
कैसे खिलते गुलाबों के ऊपर
पसर कर रोशनियों की
तस्वीरें उकेरती है
उन्हीं उकेरी तस्वीरों से
ओस कण चुने
चलो मिल बटोर लाएँ||
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देखो फिर से वसंती हवा आ गई।
तान कोयल की कानों में यों छा गई।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।
इस कदर डूबी क्यों बाहरी रंग में।
रंग फागुन का गहरा पिया संग मे।
हो छटा फागुनी और घटा जुल्फ की,
है मिलन की तड़प मेरे अंग अंग में।
दामिनी कुछ कर देंगे नादानियाँ।।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।
बन गया हूँ मैं चातक तेरी चाह में।
चुन लूँ काँटे पड़े जो तेरी राह में।
दूर हो तन भले मन तेरे पास है,
मन है व्याकुल मेरा तेरी परवाह में।
भामिनी हम न देंगे कुर्बानियाँ।।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।
मैं भ्रमर बन सुमन पे मचलता रहा।
तेरी बाँहों में गिर गिर सँभलता रहा।
बिना प्रीतम के फागुन का क्या मोल है,
मेरा मन भी प्रतिपल बदलता रहा।
मानिनी हम फिर लिखेंगे कहानियाँ।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।
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Poems on Basant Panchami in Hindi
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