संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
अगर हम अपने सोच, बोल और विचारों पर ध्यान दें तो हम पाएंगे कि इन तीनों में से हमारे विचार सबसे ज्यादा प्रभावशाली होते हैं और उनमें बहुत शक्ति होती है। अक्सर हम लोग सोचते हैं कि जो कुछ भी हम किसी दूसरे के बारे में सोचते हैं उसका किसी को पता नहीं चलता लेकिन हम दूसरों के बारे में जैसा सोचते हैं उससे हमारे अंदर तरंगे उत्पन्न होती हैं जो उन तक भी पहुंचती हैं। अगर हम किसी के बारे में सकारात्मक सोच रखते हैं तो दूसरा व्यक्ति भी उस अच्छी सोच को महसूस करता है।
ठीक इसी तरह अगर हम किसी के बारे में बुरा सोचते हैं, तब भी वह व्यक्ति उस बुरी सोच को महसूस करता है। जब हम अपने लक्ष्यों के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैं तो यह सोच हमें सफलता की ओर बढ़ाती है। विद्यार्थी जीवन में जब हम स्कूल में अथवा अपने भविष्य के लिए विषेष क्षेत्र का चयन करते है, तब हम अपनी सकारात्मक सोच के जरिये सफलता प्राप्त कर सकते हैं। जो लोग खेल जगत से संबंधित हैं और यह विश्वास रखते हैं कि वे चैंपियनशिप जीत सकते हैं। यदि वे इस भावना से प्रेरित होकर निरंतर प्रयास करते हैं तो अक्सर यह देखा जाता है कि वह निश्चित रूप से जीतते हैं। जो लोग कला क्षेत्र में सफलता पाना चाहते हैं, यदि वे अपनी सोच को सकारात्मक रखेंगे तो वे भविष्य में एक अच्छे कलाकर बन सकते है।
अगर हम दूसरों की नकारात्मक प्रतिक्रियाओं को सुनते है अथवा खुद भी अपने दिमाग में नकारात्मक सोच रखते हैं तो हम ज्यादातर हताष और असफल होते हैं जिससे कि हम प्रयास करना छोड़ देते हैं और अपने लक्ष्य तक पहुँच नहीं पाते। इसलिए हमें हमेशा अपने विचारों पर निगरानी रखनी चाहिए। आओ! हम दिन-प्रतिदिन अच्छे विचारों को अपनाकर गलत विचारों को पीछे छोड़ते चले जाएं और उन सभी नकारात्मक बातों और प्रतिक्रियाओं को भूल जाएं जो दूसरे व्यक्तियों ने हमारे साथ की हैं।
जब हम सुबह उठते हैं तो सबसे पहले हम अपने परिवार से मिलते हैं और उसके पश्चात हम दिनभर में अनेक लोगों के संपर्क में आते हैं। हमें चाहिए कि ऐसे में हम अपने विचारों को सकारात्मक रखें। यदि किसी से मुलाकात या बातचीत के दौरान हमारे साथ कुछ नकारात्मक घटित हुआ है तो उस घटना को हम भूल जाएं और उस व्यक्ति को भी क्षमा कर दें। यदि हम अपने काम पर जाते है, तब दूसरों के सकारात्मक बोलों और कार्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित करें। यदि दूसरे कोई भी गलत कार्य करते हैं या बोलते हैं तो उसे हम भूल जाएं।
ऐसे ही जब हम अपने मित्रों और दोस्तों के साथ समय बिताते हैं तो तब भी हम उनकी सिर्फ सकारात्मक बातों का ही आनंद लें और यदि उनके साथ हमारी कोई नकारात्मक बात होती भी है तो उसको हम भूल जाएं। जब हम नकारात्मक सोच रखते हैं तब सांसारिक और आध्यात्मिक रूप से हमारी प्रगति धीमी हो जाती है और किसी भी कार्य में हम अपना सर्वोत्तम नहीं दे पाते। हमारे सकारात्मक विचारों की शक्ति हमें अपने जीवन के लक्ष्य अपने आपको जानना और पिता-परमेष्वर को पाना की प्राप्ति में भी सहायक होती है। पिता-परमेष्वर को पाने के लिए हमें प्रभु के प्रेम का अनुभव अपने अंदर करना होगा।
आध्यात्मिकता वह रास्ता है जो हमें प्रभु के प्रेम का अनुभव करवाता है। प्रभु-प्रेम का अनुभव करने के लिए हमें ध्यान-अभ्यास की विधि वक्त के किसी पूर्ण गुरु से सीखनी होगी। सही तरीके से ध्यान-अभ्यास करने के लिए हमें अपने मन को स्थिर करने की आवश्यकता है ताकि विचार हमें किसी भी प्रकार की बाधा न डालें। इस समय के दौरान हमारा मन स्थिर होना चाहिये। मन को स्थिर करने के लिए हमें सकारात्मक नजरिया रखते हुए ध्यान-अभ्यास में प्रतिदिन समय देना चाहिए। हमें कम से कम ढाई घंटे अभ्यास में देने चाहियें। सकारात्मक नजरिया हमें हार मानने से रोकेगा, जिससे कि हमारा मन तेजी से सक्रिय होकर ध्यान-अभ्यास में लगेगा और निष्चित रूप से सफल भी होगा। जिसके फलस्वरूप हम जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करेंगे।
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