India News (इंडिया न्यूज), Mahabharat Stories: महाभारत का युद्ध अन्याय पर न्याय की जीत माना जाता है। कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर लड़ा गया यह युद्ध हमें यह शिक्षा देता है कि जब-जब संसार में धर्म की हानि होगी, तब-तब भगवान श्री कृष्ण किसी न किसी रूप में मानव का मार्गदर्शन करेंगे और धर्म की स्थापना करेंगे।
कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर लड़ा गया युद्ध कौरवों के अंत के साथ ही समाप्त हो गया लेकिन महाभारत में कुछ ऐसी घटनाओं का भी वर्णन किया गया है, जो युद्ध समाप्त होने के तुरंत बाद घटित हुई थीं। इन्हीं घटनाओं में से एक है युद्ध के बाद अर्जुन के रथ का जलना। आइए जानते हैं महाभारत में वर्णित अर्जुन के रथ के जलने की घटना।
अर्जुन को महान धनुर्धर माना जाता है। कहा जाता है कि अर्जुन धनुर्विद्या में इतने निपुण थे कि कोई भी योद्धा उनके सामने टिक नहीं सकता था। अर्जुन कई किलोमीटर दूर से ही अपने लक्ष्य पर निशाना साध सकते थे। अर्जुन के धनुष का नाम गांडीव था। धनुष के अलावा अर्जुन का रथ भी खास था। अर्जुन के रथ का नाम नंदी घोष था। अर्जुन को नंदी घोष रथ वरुण देव से मिला था। इस रथ की विशेषताओं की बात करें तो इस रथ का रंग सफेद था। इसे चार घोड़े खींचते थे। इस रथ के कारण ही अर्जुन को श्वेत वाहन का नाम भी मिला।
अर्जुन के रथ पर सारथी के रूप में स्वयं भगवान कृष्ण विराजमान थे। इस रथ की ध्वजा पर स्वयं हनुमान जी विराजमान थे। पहियों पर शेषनाग यानी बलराम जी विराजमान थे। इस कारण अर्जुन का रथ अत्यंत दिव्य हो गया था। यही कारण था कि युद्ध में कई योद्धाओं के रथ टूट रहे थे लेकिन अर्जुन के रथ पर एक खरोंच तक नहीं आई। इसी रथ की बदौलत अर्जुन युद्ध में बड़े-बड़े योद्धाओं से युद्ध करके अपनी विजय गाथा लिख रहे थे।
जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ और पांडवों की जीत हुई तो श्री कृष्ण और अर्जुन रथ से उतरने लगे, लेकिन स्वयं उतरने से पहले श्री कृष्ण स्वयं अर्जुन को रथ से उतरने का संकेत देने लगे। अर्जुन ने श्री कृष्ण का आदर करते हुए उनके सामने हाथ जोड़कर कहा, “हे माधव! आप पहले इस रथ से उतर जाइए, मैं आपके पीछे-पीछे चलूँगा।” अर्जुन की बातें सुनकर कृष्ण जी ने मुस्कुराते हुए अर्जुन की ओर देखा और कहा, “पार्थ! यदि मैं आपसे पहले इस रथ से उतर गया तो कोई अनहोनी घटना घट जाएगी।” श्री कृष्ण की बातें अर्जुन को समझ में नहीं आईं।
अर्जुन श्री कृष्ण की बातें समझ नहीं पाए लेकिन उन्होंने केशव की बात मानकर पहले रथ से उतरना बेहतर समझा। सबसे पहले अर्जुन रथ से उतरे, फिर श्री कृष्ण और फिर अंत में हनुमान जी जो रथ की ध्वजा पर अपने सूक्ष्म रूप में विराजमान थे, भी रथ से उतर गए। जैसे ही हनुमान जी रथ से उतरे, अर्जुन का रथ जलने लगा। अपने रथ को इस तरह जलता देख अर्जुन को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने हाथ जोड़कर श्री कृष्ण से इसका कारण पूछा।
जब अर्जुन ने श्री कृष्ण से रथ जलने का कारण पूछा तो श्री कृष्ण ने उत्तर दिया – “हे अर्जुन – यह रथ भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों के प्रहार से बहुत पहले ही जल गया था और इस रथ को सबसे अधिक क्षति कर्ण के बाणों से हुई है, इस रथ पर स्वयं हनुमान जी ध्वज लेकर बैठे थे और मैं स्वयं भी रथ पर बैठा था और यह रथ मेरे संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा था।
अर्जुन को अंगराज कर्ण को हराने का अहंकार होने लगा था, इसलिए इस अहंकार को मिटाने के लिए श्री कृष्ण ने अर्जुन को पहले नीचे उतरने को कहा और तब अर्जुन को एहसास हुआ कि वह सर्वश्रेष्ठ नहीं है। श्री कृष्ण की बातें सुनकर अर्जुन का अहंकार टूट गया और अर्जुन ने श्री कृष्ण के सामने अपना सिर झुका दिया।
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