तिरुपति मंदिर का इतिहास
तिरुपति मंदिर का निर्माण 300 ईस्वी में तोंडईमंडलम साम्राज्य के राजा थोंडईमन के शासनकाल में हुआ था। इसके बाद, चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं ने भी मंदिर के विकास में महत्वपूर्ण आर्थिक योगदान दिया।
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महारानी श्रीकांदवन पेरुनदेवी का योगदान
तिरुपति मंदिर के निर्माण में सबसे अधिक दान देने वालों में पल्लव साम्राज्य की महारानी श्रीकांदवन पेरुनदेवी, जिन्हें सामावाई के नाम से भी जाना जाता है, शामिल थीं। उनकी तिरुपति बालाजी में गहरी आस्था थी। उन्होंने मंदिर के लिए अपने सभी गहने दान कर दिए थे, और कहा जाता है कि मंदिर में स्थापित श्रीनिवास की मूर्ति भी महारानी ने ही दी थी।
सांस्कृतिक महत्व
तिरुपति बालाजी मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और इतिहास का भी प्रतीक है। महारानी के योगदान ने इस मंदिर को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है, जो आज भी लाखों श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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निष्कर्ष
तिरुपति बालाजी मंदिर में हाल के विवाद ने मंदिर की पारंपरिक मान्यताओं और प्रथाओं पर सवाल उठाया है। हालांकि, इसके इतिहास और योगदान को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि तिरुपति का स्थान भारतीय संस्कृति में अद्वितीय है। मंदिर के प्रति श्रद्धा और विश्वास के साथ-साथ उसकी ऐतिहासिक धरोहर भी उसे खास बनाती है।
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