India News(इंडिया न्यूज), Ramayana: प्राचीन काल की बात है, जब धरती पर अधर्म और असत्य का अंधकार छाया हुआ था। राक्षसों के राजा रावण ने अपने बल और बुद्धि से तीनों लोकों पर आतंक फैला रखा था। तब धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया और रावण का संहार कर धरती पर धर्म की स्थापना की।
लेकिन इस महाकाव्य रामायण में केवल श्रीराम ही नहीं, बल्कि उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले कई महान योद्धाओं का भी जिक्र है, जिन्होंने असत्य के खिलाफ इस युद्ध में अहम भूमिका निभाई। इन योद्धाओं में पांच ऐसे भी थे, जिन्हें अमरता का वरदान प्राप्त था और जो आज भी धरती पर जीवित माने जाते हैं।
पहला नाम आता है पवनपुत्र हनुमान का, जिनकी भक्ति और शक्ति का कोई सानी नहीं था। हनुमान जी ने अपनी असीम शक्ति से न केवल श्रीराम का साथ दिया, बल्कि उन्होंने भक्तिभाव से भरे अपने हृदय में भगवान राम को बसाया। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान राम ने हनुमान को आशीर्वाद दिया, तो उन्हें एक कल्प यानी 4 अरब 32 करोड़ साल तक जीवित रहने का वरदान मिला। आज भी मान्यता है कि हनुमान जी हिमालय की ऊँची चोटियों में निवास करते हैं और वहीं से अयोध्या की रक्षा करते हैं।
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हनुमान जी के बाद, भगवान राम के दूसरे प्रमुख योद्धा थे जाम्बवंत। भालू रूपी जाम्बवंत को उनकी बुद्धिमत्ता और वीरता के लिए जाना जाता था। अग्निदेव के पुत्र जाम्बवंत को भी अमरता का वरदान प्राप्त हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि वे आज भी धरती पर कहीं न कहीं जीवित हैं, अपनी अमरता का वरदान लिए हुए।
तीसरे अमर योद्धा थे लोमश ऋषि, जिनका शरीर बड़े-बड़े रोमों (बालों) से ढका हुआ था। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या करके वरदान प्राप्त किया था कि उनके शरीर के सारे रोम गिरने पर ही उनकी मृत्यु होगी। इस वरदान के कारण लोमश ऋषि को अमरता प्राप्त हुई और वे रामायण से लेकर महाभारत तक के काल में जीवित रहे।
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चौथा नाम आता है काकभुशुण्डि का, जो भगवान गरुड़ के शिष्य थे। एक बार, गरुड़ जी ने भूलवश काकभुशुण्डि को कौवा बनने का श्राप दे दिया। इस पर पश्चाताप करते हुए, उन्होंने काकभुशुण्डि को राम मंत्र और इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। काकभुशुण्डि ने दोबारा मनुष्य बनने की बजाय कौवा बने रहने की इच्छा जताई, क्योंकि इसी रूप में उन्हें राम मंत्र मिला था। मान्यता है कि आज भी काकभुशुण्डि कौए के रूप में धरती पर विचरण करते हैं।
अंतिम योद्धा हैं विभीषण, जो रावण के भाई थे। रावण के अधर्म से असहमत होकर, विभीषण ने सत्य का साथ देने के लिए लंका छोड़ दी और श्रीराम के पास आ गए। भगवान राम ने विभीषण को अमरता का वरदान दिया, ताकि वे लंका के राजा के रूप में धर्म की रक्षा कर सकें। मान्यता है कि विभीषण आज भी जीवित हैं और लंका की रक्षा कर रहे हैं।
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ये सभी अमर योद्धा आज भी हमारे बीच कहीं न कहीं मौजूद हैं, अपने अमरता के वरदान के साथ। वे इस धरती पर तब तक रहेंगे, जब तक धर्म और सत्य की आवश्यकता होगी। और जब भी धर्म पर संकट आएगा, ये योद्धा एक बार फिर प्रकट होकर असत्य का अंत करेंगे। उनकी कहानियां हमें यह सिखाती हैं कि धर्म की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, क्योंकि अंततः सत्य की ही विजय होती है।
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