India News (इंडिया न्यूज), Lord Shiva & Ravan: कैलाश पर्वत की ऊँचाई और उसकी शांतिपूर्ण स्थिति, देवताओं की दिव्यता की प्रतीक मानी जाती है। वहां भगवान शिव अपने भक्तों को अपनी कृपा और शांति का आशीर्वाद देते हैं। रावण, राक्षसों का राजा, जो शक्तिशाली और बुद्धिमान था, शिवजी का परम भक्त भी था। उसकी भक्ति की गहराई और शक्ति का अहंकार दोनों ही उसके स्वभाव का हिस्सा थे।

रावण अपनी शक्ति पर अत्यधिक गर्व करता था और उसे विश्वास था कि कोई भी कार्य उसके लिए कठिन नहीं है। एक दिन, उसने सोच लिया कि शिवजी की दिव्य उपस्थिति को लंका में लाना चाहिए, ताकि वह और उसके लोगों को भगवान शिव का प्रत्यक्ष दर्शन हो सके। उसने अपने इस विचार को कार्यान्वित करने का निश्चय किया और कैलाश पर्वत की ओर रवाना हो गया।

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जब अपनी जिद पर अड़ रावण ने लिया कैलाश उठाने का प्रण

कैलाश पर्वत पर पहुंचकर, रावण ने वहां शिवजी के वाहन, नंदी, को देखा। नंदी ने सम्मानपूर्वक रावण को प्रणाम किया, लेकिन रावण ने उसका अनादर करते हुए जवाब नहीं दिया। नंदी ने रावण से कहा कि भगवान शिव को उनकी इच्छा के खिलाफ कहीं ले जाना संभव नहीं है। रावण ने नंदी की बातों को नकारते हुए चुनौती दी कि अगर शिवजी मानते नहीं हैं, तो वह कैलाश पर्वत को ही उठाकर लंका ले आएगा।

रावण ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत के नीचे अपना हाथ रखा। जैसे ही उसने कोशिश की, कैलाश पर्वत हिलने लगा। शिवजी ने रावण की यह कार्यवाही ध्यान से देखी और मौन धारण किया। रावण ने कैलाश पर्वत को उठाने की पूरी कोशिश की और अपने हाथ को पर्वत के नीचे फंसा लिया।

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जब शिव ने कैलाश पर्वत को कर दिया भारी?

शिवजी ने इस स्थिति का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया और बिना क्रोधित हुए, केवल अपने एक पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत का भार बढ़ा दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि रावण का हाथ कैलाश पर्वत के नीचे फंस गया और वह हिल भी नहीं सकता था। रावण ने अपनी स्थिति को समझते हुए और शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की।

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शिव तांडव स्तोत्र

शिव तांडव स्तोत्र की मधुर धुन ने शिवजी को प्रभावित किया और उन्होंने रावण की स्थिति को सहजता से हल कर दिया। रावण ने अपनी गलती स्वीकार की और शिवजी की महिमा को समझा। शिवजी ने न केवल उसे मुक्त किया, बल्कि उसकी भक्ति और श्रद्धा को भी सम्मानित किया।

इस प्रसंग से एक महत्वपूर्ण सिखने को मिलता है: धैर्य और बुद्धिमत्ता से काम लेना चाहिए। दूसरों के अहंकार और मूर्खता से क्रोधित होने की बजाय, शांति और समझदारी से काम लेना चाहिए। भगवान शिव ने रावण के अहंकार और मूर्खता पर क्रोधित होने की बजाय, उसे एक सबक सिखाया और अपनी दया से उसे मुक्त किया। यह कथा हमें सिखाती है कि हर स्थिति में धैर्य बनाए रखना और अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करना महत्वपूर्ण होता है।

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