कोदंड का निर्माण और विशेषताएँ
कोदंड, जिसका अर्थ है “बांस से बना धनुष,” को रामचरित मानस में विशेष रूप से वर्णित किया गया है। तुलसीदास ने इसके आकार और वजन का भी उल्लेख किया है, बताते हैं कि इसकी लंबाई लगभग साढ़े पांच हाथ और वजन करीब 100 किलोग्राम था। यह धनुष असाधारण ताकत से भरा हुआ था, जिसका तीर कभी खाली नहीं जाता था। इस धनुष की शक्ति का वर्णन करते हुए तुलसीदास ने कहा है:
‘देखि राम रिपु दल चलि आवा।
बिहसी कठिन कोदण्ड चढ़ावा।।’
इस श्लोक से स्पष्ट होता है कि कोदंड धनुष ने श्रीराम को असंख्य राक्षसों का संहार करने में सहायता की।
स्वयंवर में कोदंड की प्राप्ति
कोदंड धनुष की प्राप्ति का प्रसंग बहुत ही रोचक है। भगवान राम को यह धनुष माता सीता के स्वयंवर में प्राप्त हुआ था। स्वयंवर में, जब भगवान राम ने भगवान शिव का पिनाक धनुष तोड़ दिया, तब कोदंड का प्रकट होना हुआ। पिनाक धनुष के टूटने की आवाज सुनकर महेंद्र पर्वत पर तपस्या कर रहे भगवान परशुराम जनकपुर पहुंचे। परशुराम ने राम को क्रोधित होकर धनुष के टूटने पर समझाया और उनके असली स्वरूप (विष्णु अवतार) पर संदेह जताया।
परशुराम और कोदंड का संबंध
परशुराम ने राम को अपना कोदंड धनुष देने का प्रस्ताव रखा। राम ने मुस्कराते हुए कोदंड की प्रत्यंचा चढ़ाई, जिससे धनुष की अमोघ शक्ति का उद्घाटन हुआ। राम ने परशुराम से कहा कि वह ब्रह्महत्या नहीं करना चाहते, और इसलिए उन्हें बताएं कि बाण कहाँ चलाना चाहिए। परशुराम ने अपने तपोबल का त्याग कर दिया, जिससे उनका क्रोध शांत हो गया और उन्होंने कोदंड को श्रीराम को सौंपा।
निष्कर्ष
कोदंड धनुष केवल एक शस्त्र नहीं, बल्कि यह भगवान श्रीराम की शक्ति, वीरता और धर्म का प्रतीक है। इसका इतिहास और इसकी विशेषताएँ राम के चरित्र को और भी महान बनाती हैं। कोदंड ने ना केवल रावण का वध किया, बल्कि सम्पूर्ण धरती को राक्षसों से सुरक्षित किया। यह धनुष न केवल युद्ध में, बल्कि धार्मिक और नैतिक मूल्यों में भी महत्वपूर्ण है, जो आज भी मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
इस प्रकार, भगवान श्रीराम और उनके कोदंड धनुष की कथा हमें सिखाती है कि धर्म, साहस और न्याय की विजय अवश्य होती है।