राधा रानी को लेकर विवादों में उलझें संत प्रेमानंद महाराज, दोनो किडनी है खराब; जानें क्या है महाराज के जीवन का असली परिचय
India News(इंडिया न्यूज), Saint Premanand Maharaj: पंडित प्रदीप मिश्रा की राधा रानी के मायके पर टिप्पणी से शुरू हुआ विवाद अभी भी सुर्खियों में है. प्रेमानंद महाराज के नाराजगी जताने के बाद अब ब्रज में प्रदीप मिश्रा के खिलाफ महापंचायत बुलाई गई। उसके बाद कथावाचक और महाराज जी को लेकर श्रद्धालुओं के बीच भी विवाद बढ़ गया। आईए जानते हैं प्रेमानंद जी महाराज के बारे में सबकुछ और उनका जीवन परिचय।
संत श्री हरि प्रेमानंद महाराज बहुत ही सरल और निर्मल स्वभाव के संत हैं। वे वृंदावन में रहते हैं और उनके भजन और सत्संग सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। कई बड़े-बड़े लोग भी उनसे मिलने आते हैं। वर्तमान में उन्हें संतों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। आइए जानते हैं इस निर्मल हृदय संत के बारे में अनोखे रहस्यमयी बातें।
परिवार: प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में सरसौल के अखरी गांव में हुआ था। प्रेमानंद जी का बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है। उनके पिता का नाम श्री शंभू पांडे और माता का नाम श्रीमती रमा देवी है।
दीक्षा: वे 13 वर्ष की आयु से ही दीक्षा लेकर संत बन गए हैं। प्रेमानंद जी महाराज का नाम आर्यन ब्रह्मचारी था। उनके दादा भी संन्यासी थे।
बड़े लोग हैं उनके भक्त: विराट कोहली और अनुष्का शर्मा, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, सभी धर्मों के संत और गुरु भी उनके दर्शन के लिए उनके धाम पहुंच चुके हैं। महाराज प्रेमानंद जी के दर्शन के लिए देश-विदेश से उनके भक्त वृंदावन आते हैं।
श्री राधावल्लभ संप्रदाय: प्रेमानंद जी महाराज ने श्री राधा राधावल्लभ संप्रदाय में दीक्षा ली है। वृंदावन आने से पहले वे ज्ञान मार्ग संन्यासी थे, लेकिन बाद में श्री कृष्ण लीला देखकर उनका हृदय परिवर्तन हो गया और वे भक्ति मार्ग संन्यासी बन गए।
गुरु: प्रेमानंद जी के गुरु संत श्रीहित गौरांगी शरण महाराज हैं जिन्होंने प्रेमानंद जी को भक्ति का पाठ पढ़ाया था। प्रेमानंद महाराज जब पहली बार मथुरा आए तो उन्हें लगा कि यह उनका स्थान है। वह प्रतिदिन बिहारी जी के मंदिर जाने लगा। वहीं से उन्हें भक्ति का मार्ग मिला। फिर जब प्रेमानंद जी वृंदावन के राधावल्लभ मंदिर गए तो वहां उनकी मुलाकात तिलकायत अधिकारी मोहित मराल गोस्वामी से हुई। गोस्वामी जी ने उन्हें गौरांगी शरण महाराज के पास भेजा। गौरांगी महाराज से मिलने के बाद प्रेमानंद जी का जीवन बदल गया। यहीं पर प्रेमानंद जी महाराज ने श्री राधा राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षा ली थी।
भूखे रहे : प्रेमानंद जी महाराज अपने संन्यासी जीवन के शुरुआती दिनों में कई दिनों तक भूखे रहे। वह घर छोड़कर वाराणसी आ गये। वहां वे दिन में तीन बार गंगा स्नान करते और तुलसी घाट पर पूजा-अर्चना करते। भोजन की इच्छा से प्रतिदिन 10-15 मिनट बैठते। इस दौरान कोई उन्हें भोजन दे देता तो ठीक, नहीं तो सिर्फ गंगाजल पी लेते।
वृंदावन में है उनका आश्रम: वर्तमान में प्रेमानंदजी महाराज श्रीहित राधा केलि कुंज आश्रम में रह रहे हैं। उन्होंने अपना जीवन राधा रानी की भक्ति में समर्पित कर दिया है।
भक्तों की भक्ति: प्रेमानंद महाराज रात करीब तीन बजे छटीकरा रोड स्थित श्री कृष्ण शरणम सोसायटी से रमणरेती क्षेत्र में स्थित अपने आश्रम श्रीहित राधा केलि कुंज जाते थे। दो किलोमीटर लंबी इस पदयात्रा के दौरान हजारों लोग महाराज की एक झलक पाने के लिए सड़कों पर उतर आते थे, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से यह बंद हो गया है। वे प्रतिदिन वृंदावन की परिक्रमा करते थे, लेकिन अब वे ऐसा नहीं करते।
किडनी खराब: प्रेमानंदजी महाराज की दोनों किडनी कई सालों से काम करना बंद कर चुकी हैं। वे पूरे दिन डायलिसिस पर रहते हैं। इसके बावजूद वे प्रतिदिन प्रवचन देते हैं और अपने दैनिक कार्य भी स्वयं करते हैं। कई भक्त उन्हें अपनी किडनी दान करना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने मना कर दिया है। उन्होंने अपनी एक किडनी का नाम राधा और दूसरी का नाम कृष्ण रखा है।
जप का महत्व: प्रेमानंदजी महाराज का मानना है कि कलियुग में केवल श्री हरि की भक्ति ही हमें बचा सकती है और इसके अलावा कोई दूसरा उपाय या उपाय नहीं है। इसलिए यदि हम प्रतिदिन जप करें तो सभी तरह की समस्याएं दूर हो जाएंगी।
राजेश कुमार एक वर्ष से अधिक समय से पत्रकारिता कर रहे हैं। फिलहाल इंडिया न्यूज में नेशनल डेस्क पर बतौर कंटेंट राइटर की भूमिका निभा रहे हैं। इससे पहले एएनबी, विलेज कनेक्शन में काम कर चुके हैं। इनसे आप rajeshsingh11899@gmail.com के जरिए संपर्क कर सकते हैं।