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Santoshi Mata: शुक्रवार के दिन इस देवी की पूजा करने से घर में नहीं होंगे क्लेश

Shalu Mishra • LAST UPDATED : March 29, 2024, 9:46 am IST

India News (इंडिया न्यूज), Santoshi Mata: हिंदू धर्म के अनुसार हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। जैसे सोमवार को भोलेनाथ, मंगलवार को बजरंगबली, बुधवार को गणेश जी, गुरुवार को विष्णु जी, ऐसे ही हर दिन, देवताओं को खास तौर पर पूजा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शुक्रवार के दिन मुख्य रूप से किनकी अराधना की जाती है, चलिए आपको इस खबर में सारी जानकारियां देते हैं..

माता संतोषी की पूजा

शुक्रवार के दिन हिंदू धर्म के अनुसार, पूजनीय मां संतोषी का व्रत किया जाता है और उनकी व्रत कथा के बिना अधूरा माना जाता है। प्रति शुक्रवार माता संतोषी की कथा सुनने से उनकी कृपा आप पर बनी रहती है और मां का व्रत रखने से गृहस्थी को धन-धान्य, पुत्र, अन्न-वस्त्र से परिपूर्ण रखती हैं और मां अपने भक्तों को हर कष्ट से बचाती हैं।

माता संतोषी की व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है कि एक बुढ़िया के सात पुत्र थे, उनमें से 6 बेटे पैसे कमाते थे और एक बेरोजगार था। वो अपने 6 बेटों को प्रेम से खाना खिलाती और सातवें बेटे को बाद में उनकी थाली की बची हुई जूठन खिला दिया करती, क्योंकि वो बेरोजगार था। सातवें बेटे की पत्नी इस बात से बड़ी दुखी थी क्योंकि उसका पति बहुत भोला था और ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देता था, एक दिन बहू ने जूठा खिलाने की बात अपने पति से कही पति ने सिरदर्द का बहाना कर, रसोई में जाकर स्वयं सच्चाई देख ली, उसने उसी पल दूसरे राज्य जाने का निश्चय किया, क्योंकि वो सच्चाई से रूबरू हो चुका था जब वह जाने लगा, तो पत्नी ने उसकी निशानी मांगी। उसका पति उसे अंगूठी देकर वहां से दूसरे राज्य की ओर चल दिया। दूसरे राज्य पहुंचते ही उसे एक सेठ की दुकान पर काम मिल गया और जल्दी ही उसने मेहनत से अपनी जगह बना ली, और पैसे कमाने लगा।

इधर, बेटे के घर से चले जाने पर सास-ससुर बहू पर अत्याचार करने लगे, घर का सारा काम करवा के उसे लकड़ियां लाने जंगल भेज देते और आने पर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी रख देते। इस तरह अपार कष्ट में बहू के दिन कट रहे थे. एक दिन लकड़ियां लाते समय रास्ते में उसने कुछ महिलाओं को संतोषी माता की पूजा करते देखा और मन में इस विश्वास के साथ कि सब ठीक हो जाएगा, उसने माता संतोषी की पूजा विधि पूछी, विधि अनुसार बहू ने भी कुछ लकड़ियां बेच दीं और सवा रुपए का गुड़-चना लेकर संतोषी माता के मंदिर में जाकर संकल्प लिया कि उनकी पूजा विधिवत किया करेगी, दो शुक्रवार बीतते ही उसका पति का पता और पैसे दोनों आ गए, बहू ने मंदिर जाकर माता से मनोकामना की कि उसके पति को जल्द वापस ला दे।

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उसको वरदान दे माता संतोषी ने स्वप्न में बेटे को दर्शन दिए और बहू का दुखड़ा सुनाया, इसके साथ ही उसके काम को पूरा कर घर जाने का संकल्प कराया। माता के आशीर्वाद से दूसरे दिन ही बेटे का सब लेन-देन का काम-काज निपट गया और वह कपड़ा-गहना लेकर घर चल पड़ा, वहीं उसकी पत्नी रोज लकड़ियां बीनकर माताजी के मंदिर में दर्शन कर अपने सुख-दुख उनसे कहा करती थी.

एक दिन माता ने उसे ज्ञान दिया कि आज मेरा पति लौटने वाला है, तुम नदी किनारे थोड़ी लकड़ियां रख देना और देर से घर जाकर आंगन से ही आवाज लगाना कि सासू मां, लकड़ियां ले लो और भूसे की रोटी दे दो, नारियल के खोल में पानी दे दो, बहू ने ऐसा ही किया, जैसा माता ने उसे स्वप्न में आकर करने के लिए कहा था। उसने नदी किनारे जो लकड़ियां रखें, उसे देख बेटे को भूख लगी और वह रोटी बना-खाकर घर चला, घर पर मां द्वारा भोजन का पूछने पर उसने मना कर दिया और अपनी पत्नी के बारे में पूछा। तभी बहू आकर आवाज लगाकर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी मांगने लगी. बेटे के सामने सास झूठ बोलने लगी कि रोज चार बार खाती है, जबकि ऐला नहीं था उसकी बहू पर अत्आयाचार हुआ करते थे, इतने में उसकी4 मां कहती है कि, तुझे देखकर नाटक कर रही है। इसके बाद घर में काफी कहा सुनी हुई जिसके बाद घरवालों को भी अपनी गलती का एहसास हुआ।

इससे संतोषी माता प्रसन्न हुई और कुछ समय बाद ही उसकी बहू गर्भवती हुई, और जल्दी ही बहू को एक सुंदर से पुत्र की प्राप्ति हुई, बहू को देखकर पूरे परिवार ने संतोषी माता का विधिवत पूजन शुरू कर दिया और अनंत सुख प्राप्त किया।

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