पंचांग के अनुसार अश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितर पक्ष के नाम से जाना जाता है। पितर पक्ष का समापन अश्विन मास की अमावस्या तिथि को होता है। इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन पितरों के श्राद्ध का अंतिम दिन होता है। सर्व पितृ अमावस्या के दिन ज्ञात, अज्ञात सभी पितरों के निमित्त श्राद्ध करने का विधान है। जिन्हें अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि को ज्ञान न हो वो भी इस दिन अपने पूर्वजों का तर्पण या श्राद्ध कर सकते हैं। इस साल सर्व पितृ अमावस्या 06 अक्टूबर, दिन बुधवार को पड़ रही है। आइए जानते हैं सर्व पितृ अमावस्या की सही तिथि और इस दिन के श्राद्ध का महात्म। अश्विन मास की अमावस्या तिथि पर सर्व पितृ अमावस्या तिथि के श्राद्ध का विधान है। पंचांग के अनुसार अमावस्या कि तिथि 05 अक्टूबर को सांय काल 07 बजकर 04 मिनट से शुरू हो कर 06 अक्टूबर को शाम को 04 बजकर 35 मिनट तक रहेगी। अमावस्या तिथि का सूर्योदय 06 अक्टूबर को होने के कारण सर्व पितृ अमावस्या 06 तारीख को ही मानी जाएगी। ये पितर पक्ष का अंतिम दिन होता है, इसके बाद शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र का प्रारंभ हो जाएगा।
सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार हमारे मृत पूर्वज और परिजन पितरों के रूप में पितर पक्ष में धरती पर आते हैं। इस काल में उनके निमित्त श्राद्ध और तर्पण करने का विधान है। पितर पक्ष की प्रत्येक तिथि पर विधि अनुरूप श्राद्ध किया जाता है। लेकिन सर्व पितृ अमावस्या पर श्राद्ध का विशेष महत्व है। इस दिन ज्ञात, अज्ञात सभी पितरों के निमित्त श्राद्घ करने का विधान है। जो लोग पितर पक्ष में अपने परिजन की तिथि पर श्राद्ध करना भूल गए हो वो भी अमावस्या तिथि पर पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। इस दिन सही विधि से किए गए श्राद्ध से पितरों की आत्मा को मुक्ति मिलती है और वो अपने परिजनों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। सनातन धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व है, लेकिन अगर किसी को अपने पितरों की पुण्य तिथि याद न हो तो इस स्थिति में सर्व पितृ श्राद्ध अमावस्या के दिन उन पितरों का श्राद्ध कयिा जा सकता है। सर्व पितृ अमावस्या को पितृ पक्ष के विसर्जन का दिन माना जाता है। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष धार्मिक महत्व माना गया है। यदि आपको पितरों की तिथि याद नहीं, तो इस दिन आप अपने पितरों की श्राद्ध और उनके निमित्त अन्य कार्य कर सकते हैं। यदि आपके घर में पितृ दोष लगा हुआ है, तो भी पितृ अमावस्या का दिन आपके लिए काफी सार्थक सिद्ध हो सकता है। इस दिन पितृ दोष को दूर करने के लिए तमाम उपाय किए जा सकते हैं। मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध किये जाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष में पितरों को याद किया जाता है और उनके प्रति श्रद्धा और आदर व्यक्त किया जाता है। पितृ पक्ष 2021 की सर्वपितृ अमावस्या पर गजछाया योग बन रहा है। इससे पहले ये योग 11 साल पहले 2010 में बना था। 6 अक्टूबर को सूर्य और चंद्रमा दोनों ही सूर्योदय से लेकर शाम 04:34 बजे तक हस्त नक्षत्र में होंगे। यह स्थिति गजछाया योग बनाती है। धर्म-शास्त्रों के मुताबिक, इस योग में श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और कर्ज से मुक्ति मिलती है। साथ ही घर में सुख-समृद्धि आती है। कहते हैं कि गजछाया योग में किए गए श्राद्ध और दान से पितरों की अगले 12 सालों के लिए क्षुधा शांत हो जाती है।
पितृ पक्ष में सर्व पितृ अमावस्या का विशेष महत्व होता है। सर्व पितृ अमावस्या के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु की तिथि पता नहीं होती है। सर्व पितृ अमावस्या को आश्विन अमावस्या, बड़मावस और दर्श अमावस्या भी कहते हैं। इस साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या 06 अक्टूबर, बुधवार को है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, जिन परिजनों को अपने पितरों की देहांत तिथि ज्ञात नहीं है, वह सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं। सर्व पितृ अमावस्या पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है। इस दिन पितरों को विदाई दी जाती है। इस दिन पितरों को विदाई देते समय उनसे किसी भी भूल की क्षमा याचना भी करनी चाहिए।
मान्यता है कि श्राद्ध या पितृ पक्ष के दौरान पितर धरती पर आते हैं और उनका किसी भी रूप में अपने वंशजों के घर पर आगमन हो सकता है। ऐसे में पितरों की शांति और उनका आशीर्वाद पाने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसका पूरा फल पितरों को समर्पित होता है, ऐसे करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
1.तर्पण और पिंडदान : पितृपक्ष में हर दिन तर्पण करना चाहिए। नहीं कर पाएं हैं तो सर्वपितृ अमावस्या को पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण करें। इस दौरान पिंड दान भी करें। पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलकर पिंड बनाए जाते हैं। पिंडदान के लिए आश्विन अमावस्या विशेष रूप से शुभ फलदायी माना जाता है। पितृ अमावस्या होने के कारण इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया भी कहा जाता है। अत: पिंडदान करें। मान्यता यह भी है कि इस अमावस्या को पितृ अपने प्रियजनों के द्वार पर श्राद्धादि की इच्छा लेकर आते हैं। यदि उन्हें पिंडदान न मिले तो शाप देकर चले जाते हैं जिसके फलस्वरूप घरेलू कलह बढ़ जाती है और कार्य भी बिगड़ने लगते हैं।
क्या पुनर्जन्म के बाद भी व्यक्ति को श्राद्ध लगता है?
2.ब्राह्मण भोजन : सर्वपितृ अमावस्या को प्रात: स्नानादि के बाद पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, देव एवं चीटिंयों के लिए भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिए। इसके पश्चात ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन करवाएं और अपनी क्षमतानुसार उन्हें दक्षिणा दें। ब्राह्मण भोजन के बाद पितरों को धन्?यवाद दें और जाने-अनजाने हुई भूल के लिए माफी मांगे। इसके बाद अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर भोजन करें। यदि यह कार्य नहीं कर सकते हैं तो किसी मंदिर में सीदा (कच्चा अन्न) दान करें।
3.धूप-दीप दें : संध्या के समय अपनी क्षमता अनुसार दो, पांच अथवा सोलह दीप प्रज्जवलित करें और गीता का 7वां अध्याय या मार्कण्डेय पुराणांतर्गत ‘पितृ स्तुति’ करें। इस दिन पितरों के नाम की धूप देने से मानसिक व शारीरिक तौर पर तो संतुष्टि या शांति प्राप्त होती ही है साथ ही घर में भी सुख-समृद्धि बढ़ती है और सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। धूप देने के लिए कंडे पर गुड़ और घी के साथ अन्न को अग्नि में समर्पित किया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या में उपरोक्त तीन कार्य कर लिए तो आपको पितरों का भरपूर आशीर्वाद मिलेगा और जीवन की बाधाएं दूर होकर सुख, शांति और समृद्धि बढ़ेगी।
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