India News, (इंडिया न्यूज़), sawan story: सावन का महीना महादेव के सर्वहितकारी रूप के प्रकट होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसी महीने में परमपिता शिव जी ने अपनी सृष्टि की सुरक्षा करने के लिए , समुद्र मंथन के वक्त निकले विष को हलाहल पी लिया था। परन्तु आदिशक्ति माता जगदम्बा ने इस विष के ज़हरीले प्रभाव को अपने पति परमेश्वर के कंठ तक आ जाने पर ही रोक दिए था।

समुद्र मंथन का माध्यम बने बाबा नागेश्वर

यही कारण है की उन्हें नील कंठ के नाम से जाना जाता है। सतयुग के वक्त अनमोल निधियों की प्राप्ति के लिए मतलब ज्यादा से ज्यादा सुख और समृद्धि हासिल करने हेतु दानवो और देवताओं ने समुन्द्र का मंथन किया। इसका मतलब है की ईश्वर की बनाई दो बहुत शक्तिशाली लेकिन एक दूसरे के विपरीत सोच रखने वाली प्रजातियों ने प्राकृत संम्पत्ति जैसे समुद्र का ज्यादा से ज्यादा दोहन किया। इस समुद्र मंथन का माध्यम बने बाबा नागेश्वर के गले में रहने वाले नागो के नाग, महा नाग वासुकि। उनकी कुंडली में मंदराचल पर्वत को लपेटकर समुद्र का मंथन किया गया था। महानाग वासुकि का मुँह दानवो की तरफ था , उनकी पंच देवताओं की और थी। पर्वत के नीचेसे भगवान विष्णु कछुए के रूप में विराजित थे।

देवताओं को संपूर्ण अमृत पीला दिया गया

जिसके बाद विष की ज्वाला जब समाप्त हुई , तब समुद्र मान्त्यं हुआ और उसमें से लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभ मणि, ऐरावत हाथी, पारिजात का पेड़, उच्चैःश्रवा घोड़ा, कामधेनु गाय, रम्भा और उर्वशी जैसी अप्सराएं, समस्त औषधियों के साथ वैद्यराज धनवन्तरि, चंद्रमा, कल्पवृक्ष, वारुणी मदिरा और अमृत निकला। भगवान् विष्णु ने लक्ष्मी को ग्रहण किया था। देवताओं को मिला जक्लपवृक्षा, अप्सराएं और हाथी घोड़े। धन्वंतरि का पेड़ मिला इंसानो को जो की प्राणदायक आयुर्वेदिक ज्ञान माना जाता है। वारुणी मदिरा प्राप्त की दानवो ने। अमृत के लिए जो संघर्ष हुआ, उसमें मोहिनी बनकर भगवान विष्णु ने दानवो को धोखे में रख कर वारुणी मदिरा देते हुए देवताओं को संपूर्ण अमृत पीला दिया।

इसी विष की अग्नि को शांत करने के लिए परम पिता परमश्वर शिव भगवन पर ठन्डे गंगाजल की धरा अर्पित की जाती है। सावन के वक्त आकाश में रिमझिम फुहारों की वर्षा करके देवता भी शिव जी का अभिषेक करते हैं।

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