इंडिया न्यूज (Guru Pradosh Vrat 2022)
प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि में सूर्यास्त के समय को प्रदोष कहा जाता है। कहा जाता हैं कि इस प्रदोष काल में की गई शिव पूजा और उपवास रखने से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं। शास्त्रानुसार प्रदोष व्रत रखने से दो गायों को दान करने के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। कल गुरुवार को प्रदोष व्रत है। ये भाद्रपद का दूसरा प्रदोष व्रत है। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व क्या है, व्रत विधि।
दरिद्रता और ऋण के भार से दु:खी व संसार की पीड़ा से व्यथित मनुष्यों के लिए प्रदोष पूजा व व्रत पार लगाने वाली नौका के समान है । प्रदोष स्तोत्र में कहा गया है- यदि दरिद्र व्यक्ति प्रदोष काल में भगवान गौरीशंकर की आराधना करता है तो वह धनी हो जाता है और यदि राजा प्रदोष काल में शिवजी की प्रार्थना करता है तो उसे दीघार्यु की प्राप्ति होती है, वह सदैव निरोग रहता है, और राजकोष की वृद्धि व सेना की बढ़ोत्तरी होती है ।
पूजा मुहूर्त: हिंदू पंचांग अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 07 सितंबर से शुरू हो रही है जो 08 सितंबर गुरुवार की रात लगभग 9 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के कारण 08 सितंबर को प्रदोष व्रत रखा जाएगा।
अभिजित मुहूर्त: 8 सितंबर को 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक
रवि योग: दोपहर 01 बजकर 46 मिनट से लेकर 09 सितंबर को सुबह 06 बजकर 03 मिनट तक
प्रदोष व्रत का महत्व: माना जाता है कि गुरु प्रदोष का व्रत रखने से व्यक्ति को रोग, ग्रह दोष से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही हर तरह के कष्टों से निजात मिल जाती है, साथ ही इस व्रत के पुण्य प्रभाव से नि:संतान लोगों को पुत्र भी प्राप्त होता है।
स्कंद पुराण में बताया है कि त्रयोदशी तिथि में शाम के समय को प्रदोष कहा गया है। इस समय भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। इसलिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की इच्छा से इस शुभ काल में भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान शिव के साथ देवी पार्वती की पूजा होती है। जिससे हर तरह की परेशानियां और दुख खत्म हो जाते हैं।
इस दिन सूर्योदय से पहले नहा लें। फिर शिव मंदिर या घर पर ही पूजा स्थान पर बैठकर हाथ में जल लें और प्रदोष व्रत के साथ शिव पूजा का संकल्प लें। इसके बाद शिवजी की पूजा करें। फिर पीपल में जल चढ़ाएं। दिनभर प्रदोष व्रत के नियमों का पालन करें। यानी शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह सात्विक रहें। भोजन न करें। फलाहार कर सकते हैं। शाम को महादेव की पूजा और आरती के बाद प्रदोष काल खत्म होने पर यानी सूर्यास्त से 72 मिनिट बाद भोजन कर सकते हैं।
कहा जाता है कि प्रदोष काल में कैलाशपति भगवान शिवजी कैलाश पर्वत डमरु बजाते हुए अत्यन्त प्रसन्नचिेत होकर ब्रह्मांड को खुश करने के लिए नृत्य करते हैं । देवी देवता इस प्रदोष काल में शिव शंकर स्तुति करने के लिए कैलाश पर्वत पर आते हैं । मां सरस्वती वीणा बजाकर, इन्द्र वंशी धारणकर, ब्रह्मा ताल देकर, माता महालक्ष्मी गाना गाकर, भगवान विष्णु मृदंग बजाकर भगवान शिव की सेवा करते हैं । यक्ष, नाग, गंधर्व, सिद्ध, विद्याधर व अप्सराएं भी प्रदोष काल में भगवान शिव की स्तुति में लीन हो जाते हैं ।
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