India News (इंडिया न्यूज), Secrets of Hanumangarhi Temple: अयोध्या, जिसे राम नगरी के नाम से जाना जाता है, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व का प्रमुख केंद्र है। 22 जनवरी 2025 का दिन इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होने वाला है, जब राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होगी। लेकिन अयोध्या में रामलला के दर्शन से पहले हनुमानगढ़ी के दर्शन का प्रचलन वर्षों से चला आ रहा है। आइए, जानते हैं इस मंदिर के महत्व और गुप्त रहस्यों के बारे में।
हनुमानगढ़ी का ऐतिहासिक महत्व
हनुमानगढ़ी अयोध्या के केंद्र में स्थित है। मान्यता है कि जब भगवान राम लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने अपने प्रिय भक्त हनुमान को यह स्थान रहने के लिए भेंट किया। उन्होंने यह भी कहा कि अयोध्या आने वाला हर भक्त पहले हनुमानजी के दर्शन करेगा, तभी रामलला के दर्शन पूर्ण माने जाएंगे। यही कारण है कि हनुमानगढ़ी को “हनुमानजी का घर” कहा जाता है।
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हनुमान: अयोध्या के अभिभावक
हनुमानजी को अयोध्या का राजा माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान राम ने गुप्तार घाट से गोलोक जाने से पहले अयोध्या की जिम्मेदारी हनुमान को सौंपी थी। उनके संरक्षण में अयोध्या की सुरक्षा सुनिश्चित हुई है। बीते समय में हुए आतंकी हमले के बावजूद राम जन्मभूमि सुरक्षित रही, जिसे भक्तजन हनुमानजी की कृपा मानते हैं।
मंदिर की स्थापना और संरचना
हनुमानगढ़ी की स्थापना लगभग 300 साल पहले स्वामी अभयारामदासी के निर्देशन में की गई थी। यह मंदिर ऊंचे टीले पर स्थित है और इसमें पहुंचने के लिए 76 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर की दीवारों पर हनुमान चालीसा और चौपाइयां उकेरी गई हैं। मंदिर के दक्षिण में अंगद और सुग्रीव टीले भी स्थित हैं, जो इस स्थान की पौराणिकता को और भी गहराई देते हैं।
चोला चढ़ाने की परंपरा
भक्तों का मानना है कि हनुमानजी को चोला चढ़ाने से सभी दोषों से मुक्ति मिलती है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इसके अलावा, सरयू नदी में स्नान करने से पहले हनुमानजी से आज्ञा लेने की मान्यता है।
हनुमान निशान और विजय का प्रतीक
हनुमानगढ़ी में स्थित एक चार मीटर चौड़ा और आठ मीटर लंबा ध्वज, जिसे हनुमान निशान कहा जाता है, लंका विजय का प्रतीक है। इस निशान को किसी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले राम जन्मभूमि तक ले जाया जाता है। यह ध्वज, गदा और त्रिशूल के साथ हनुमानजी की विजय का प्रतीक बनकर खड़ा है।
गुप्त पूजा की परंपरा
हनुमानगढ़ी में गुप्त पूजा की परंपरा बहुत खास है। यह पूजा सुबह 3 बजे होती है और इसमें केवल आठ पुजारियों को सम्मिलित होने की अनुमति होती है। मान्यता है कि इस पूजा में स्वयं पवन पुत्र हनुमान उपस्थित होते हैं। यह पूजा लगभग डेढ़ घंटे तक चलती है और इसकी गोपनीयता आज भी बनी हुई है। पुजारी इस पूजा के बारे में किसी से चर्चा नहीं करते।
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दर्शन का समय
मंदिर के पट सुबह 4 बजे खुलते हैं और रात 10 बजे तक भक्तों के लिए खुले रहते हैं।
हनुमानगढ़ी न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां की गुप्त पूजा, चोला चढ़ाने की परंपरा और हनुमानजी की अयोध्या के राजा के रूप में मान्यता इसे विशिष्ट बनाती है। यदि आप अयोध्या जाने की योजना बना रहे हैं, तो रामलला के दर्शन से पहले हनुमानगढ़ी अवश्य जाएं और बजरंग बली का आशीर्वाद प्राप्त करें।