धर्म

शनिदेव ने कलियुग में आकर हनुमान जी से कही थी ये बात, टेढ़ी नजर डाली तो हुआ ऐसा हाल, पढ़ें खौफनाक किस्सा

India News (इंडिया न्यूज), Shanidev Sadhesati on Hanuman Ji: भारतीय पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं में शनिदेव को उनके कठोर न्याय और वक्र दृष्टि के लिए जाना जाता है। उनका प्रभाव शास्त्रों में स्पष्ट रूप से वर्णित है, और यही कारण है कि शनिदेव की साढ़े साती और ढैय्या का असर जीवन में कठिनाई और संकट ला सकता है। लेकिन एक विशेष पौराणिक कथा यह बताती है कि शनिदेव, जिनकी दृष्टि सब पर पड़ती है, हनुमानजी के सामने पूरी तरह से नतमस्तक हो गए थे। इस कथा को समझते हुए हम यह जान सकते हैं कि हनुमानजी के भक्तों पर शनिदेव की बुरी दृष्टि का कोई असर नहीं होता।

हनुमानजी और शनिदेव की मुलाकात

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय की बात है, जब शनिदेव स्वयं हनुमानजी से मिलने के लिए आए। शनिदेव ने हनुमानजी को चेतावनी दी कि कलियुग का प्रारंभ हो चुका है और अब वह हर प्राणी पर अपनी साढ़े साती और ढैय्या का प्रभाव डालने वाले हैं। शनिदेव ने हनुमानजी से कहा, “आपके ऊपर भी अब मेरी साढ़े साती का असर शुरू होने वाला है, मैं आपकी सहायता के लिए आया हूं।”

इस पर हनुमानजी ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, “जो भी प्राणी श्रीराम की शरण में होता है, उस पर काल का प्रभाव नहीं पड़ता। आप मुझे छोड़कर कहीं और जाइए।” लेकिन शनिदेव ने कहा, “आपकी शरण में आने के बावजूद, आपके ऊपर मेरी साढ़े साती का प्रभाव निश्चित है, क्योंकि सृष्टिकर्ता के विधान के सामने मैं विवश हूं।”

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शनिदेव का हनुमानजी पर साढ़े साती का असर

शनिदेव ने हनुमानजी से कहा कि उनका साढ़े साती तीन चरणों में असर डालेगा:

  1. पहला ढाई साल: शनिदेव हनुमानजी के सिर पर बैठकर उनकी बुद्धि को विचलित करेंगे।
  2. दूसरा ढाई साल: वे हनुमानजी के पेट में प्रवेश करेंगे और उनके शरीर को अस्वस्थ करेंगे।
  3. तीसरा ढाई साल: वे हनुमानजी के पैरों पर आकर उन्हें भटका देंगे।

हनुमानजी ने कहा, “ठीक है, आप आइए, लेकिन मेरे शरीर पर कहां बैठ रहे हैं, यह मुझे बताइए।” शनिदेव ने गर्व से कहा कि वह हनुमानजी के सिर, पेट और पैरों पर क्रमशः बैठेंगे। इसके बाद शनिदेव हनुमानजी के सिर पर बैठ गए।

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हनुमानजी की शक्ति और शनिदेव की दयनीय स्थिति

जैसे ही शनिदेव हनुमानजी के सिर पर बैठे, हनुमानजी को सिर में खुजली होने लगी। हनुमानजी ने बिना किसी विचलन के एक पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख लिया। इस बोझ से शनिदेव दबने लगे और घबराकर बोले, “क्या कर रहे हो आप?” हनुमानजी ने शांतिपूर्वक कहा, “आप अपना काम कीजिये, मुझे मेरा काम करने दीजिये। मैं अपनी खुजली मिटाने के लिए यही करता हूं।”

इसके बाद हनुमानजी ने एक और पर्वत अपने सिर पर रख लिया। शनिदेव और अधिक दबने लगे और उनकी स्थिति कठिन हो गई। वह डर के मारे कहने लगे, “आप यह पर्वत क्यों रख रहे हैं? मुझे छोड़ दीजिए, मैं समझौता करने के लिए तैयार हूं।”

हनुमानजी ने तब एक और बड़ा पर्वत अपने सिर पर रख लिया। शनिदेव अब त्राहिमाम करने लगे और चिल्लाए, “मुझे छोड़ दो, मैं आपके पास कभी नहीं आउंगा। मैं आपके भक्तों पर कभी बुरी दृष्टि नहीं डालूंगा।”

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हनुमानजी ने शनिदेव को राहत दी और कहा, “अब आप जा सकते हैं, लेकिन याद रखिए, आपके भक्तों पर कोई संकट नहीं आएगा।”

रावण द्वारा शनिदेव की कैद और हनुमानजी की मदद

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, रावण, जो कि अहंकार में बसा हुआ था, शनिदेव को बंदी बना कर अपनी लंका में कैद कर दिया था। वह मानता था कि शनिदेव की बुरी दृष्टि के कारण उसे किसी भी तरह का संकट नहीं होगा। लेकिन जब हनुमानजी लंका पहुंचे और सीता माता की खोज में रावण के महल के पास पहुंचे, तब उन्होंने शनिदेव को रावण की जेल में बंद पाया।

हनुमानजी ने शनिदेव को मुक्त किया और रावण से कहा कि वह शनिदेव की बुरी दृष्टि के कारण कभी भी परेशानी में नहीं आएंगे। शनिदेव ने हनुमानजी का आभार व्यक्त किया और उनके भक्तों पर सदैव कृपा बनाए रखने का वचन दिया। यही कारण है कि हनुमानजी के भक्तों पर शनिदेव का बुरा प्रभाव कभी नहीं पड़ता।

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इस पौराणिक कथा से यह सिद्ध होता है कि हनुमानजी के परमभक्तों पर शनिदेव की कोई वक्र दृष्टि नहीं होती। शनिदेव, जो अपने कड़े न्याय और साढ़े साती के लिए प्रसिद्ध हैं, हनुमानजी के सामने बेबस हो गए थे। हनुमानजी के भक्तों को उनके आशीर्वाद से कोई भी कष्ट या विपत्ति नहीं आती, चाहे वह शनिदेव का प्रभाव हो या किसी अन्य ग्रह का। इसलिए हनुमानजी की उपासना से न केवल मानसिक और शारीरिक बल मिलता है, बल्कि जीवन में आने वाली सभी परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

Prachi Jain

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