धर्म

क्यों शिव जी की नगरी श्मशान को उन्ही की अर्धांग्नी, मां पार्वती ने दे दिया था जगत का इतना बड़ा श्राप? कलियुग तक दिखता है इसका असर

India News (इंडिया न्यूज), Shamshan Ko Maa Parvati Ka Shrap: वाराणसी, जिसे काशी या बनारस के नाम से भी जाना जाता है, भारत का एक ऐसा शहर है जिसे देवों के देव भगवान शिव ने स्वयं बसाया था। यह शहर न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसे “मोक्ष नगरी” के नाम से जाना जाता है, और ऐसी मान्यता है कि यहां के कण-कण में भगवान शिव का वास है।

मणिकर्णिका घाट की अद्भुत मान्यता

काशी के मणिकर्णिका घाट का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से है। यह घाट पूरे भारत में अपनी विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि मणिकर्णिका घाट पर चौबीसों घंटे चिताएं जलती रहती हैं, और यहां की अग्नि कभी नहीं बुझती। इसे “महाश्मशान” भी कहा जाता है।

माता पार्वती द्वारा दिया गया श्राप

मणिकर्णिका घाट के निर्माण और इसके महाश्मशान में बदलने के पीछे एक रोचक कथा है। एक बार माता पार्वती स्नान कर रही थीं, और उनके कान की बाली (कुंडल) स्नान के दौरान कुंड में गिर गई। कान की इस बाली में मणि जड़ी हुई थी। जब यह मणि नहीं मिली, तो माता पार्वती अत्यंत दुखी हो गईं और उन्होंने इस स्थान को श्राप दे दिया। श्राप के अनुसार, यह घाट महाश्मशान में बदल गया, जहां जीवन और मृत्यु का चक्र अनवरत चलता रहेगा।

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मणिकर्णिका घाट का नामकरण

माता पार्वती के कान की मणि के गिरने की घटना से ही इस घाट का नाम “मणिकर्णिका” पड़ा। यह घटना न केवल घाट की महत्ता को दर्शाती है, बल्कि इसे अध्यात्म और शिव-पार्वती के पौराणिक संबंध से भी जोड़ती है।

मोक्ष की नगरी का महत्व

मणिकर्णिका घाट के बारे में यह भी मान्यता है कि यहां पर किसी का अंतिम संस्कार करने से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में मोक्ष का मतलब जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होना है। वाराणसी और मणिकर्णिका घाट इस विश्वास का केंद्र हैं कि भगवान शिव स्वयं मरने वाले के कान में “मोक्ष मंत्र” फूंकते हैं। यही कारण है कि हजारों लोग यहां अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए आते हैं।

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आध्यात्मिकता और विज्ञान का संगम

मणिकर्णिका घाट न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि जीवन और मृत्यु के गहरे संदेश को भी प्रकट करता है। चौबीसों घंटे जलने वाली अग्नि यह दर्शाती है कि मृत्यु और पुनर्जन्म का चक्र निरंतर चलता रहता है।

मणिकर्णिका घाट और वाराणसी शिव और पार्वती की लीलाओं और मान्यताओं से जुड़े हुए हैं। यह घाट जीवन, मृत्यु और मोक्ष का प्रतीक है। माता पार्वती द्वारा दिए गए श्राप और भगवान शिव की उपस्थिति इस स्थान को अद्वितीय बनाते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक बल्कि मानवीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहां हर व्यक्ति को जीवन और मृत्यु के सत्य का अनुभव होता है।

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Prachi Jain

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