India News (इंडिया न्यूज़), Shiv-Parvati Love Meaning, दिल्ली: आज वैलेंटाइन डे है और आज के दिन प्यार करने वाले एक दूसरे के साथ समय बिताना पसंद करते हैं। वैसे तो प्यार की कई परिभाषा होती है लेकिन आज की रिपोर्ट मैं हम भगवान शिव द्वारा मां पार्वती को बताई उनकी प्यार की परिभाषा के बारे में बात करेंगे।

अद्भुत है मां पार्वती और भगवान शिव का रिश्ता

भगवान शिव और मां पार्वती का विवाहित जीवन इतना भाव है कि हर कोई उसे तरह की वैवाहिक जीवन की कामना करता है। देवी पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए सालों की तपस्या की थी। वहीं भगवान शिव की अपनी पत्नी के प्रेम के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। सनातन धर्म के कई पुरानी कथाओं और व्रत की कहानियों में भगवान शिव और मां पार्वती का उल्लेख किया जाता है। ऐसे में आज कि रिपोर्ट में हम आपको प्रेम से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में बताइए।

भगवान शिव ने दी प्रेम की परिभाषा

जैसे की सभी जानते हैं की माता पार्वती अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए महादेव से अलग-अलग तरह के प्रश्न पूछा करती थी। उन पर चर्चा करते हुए एक दिन उन्होंने महादेव से प्रेम किया है? प्रेम का रहस्य क्या है? इसका वास्तविक स्वरूप क्या है? इसका भविष्य क्या है? इस तरह के सवाल पूछे।

Shiv-Parvati Love Meaning

प्रेम का दिया भगवान शिव ने जवाब

माता पार्वती की जिज्ञासा को देखते हुए भगवान शिव ने सवाल का जवाब देते हुए कहा, “प्रेम के बारे में तुम पूछ रही हो पार्वती, प्रेम के अनेकों रूप को तुमने ही उजागर किया है। तुमसे ही प्रेम की अनेक अनुभूतियां हुई तुम्हारे प्रश्न में ही तुम्हारा उत्तर छिपा हुआ है।”

इसके साथ ही शिव भगवान माता पार्वती से कहते हैं, “क्या इन विभिन्न अनुभूतियों की अभिव्यक्ति संभव है। सती के रूप में जब तुम अपने प्राण त्याग कर दूर चली गई। मेरा जीवन मेरा संसार मेरा दायित्व सब निरंथक और निराधार हो गया। मेरे नेत्रों में आंसूओं की धारा बह रही थी”

महादेव आगे कहते हैं, “अपने से दूर कर तुमने मुझे मुझसे ही दूर कर दिया। तुम्हारे अभाव ने मेरे अधूरेपन की अति से इस सृष्टि का अपूर्ण हो जाना, यही तो प्रेम है।”

आगे भगवान शिव कहते हैं, “तुम्हारे और मेरे पुन: मिलान करने हेतु इस समस्त ब्रह्मांड का हर संभव प्रयास किया गया। हर संभव षड्यंत्र रचना इसका कारण हमारा असीम प्रेम ही तो था। तुम्हारा पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लेना मेरे अकेलेपन और मुझे मेरे विराग से बाहर निकलने पर विवश करना और मेरा विवश हो जाना ही तो प्रेम है”

भगवान शिव आगे प्रेम की परिभाषा में रहते हैं, “जब तुम अपना सौंदर्य पूर्ण ललित रूप जो आती भयंकर भैरवी रूपी है। उसका दर्शन देती हो और जब मैं तुम्हारे आती भाग्यशाली मंगला रूप जो कि उग्र चंडिका रूपी है। उसका अनुभव करता हूं जब मैं बिना किसी पर्यटन की तुम्हें पूर्णता देखता हूं तो मैं अनुभव करता हूं कि मैं सत्य देखने में सक्षम हो जब तुम मुझे अपनी संपूर्ण रूप के दर्शन देती हो और मुझे अभ्यास करती हो कि मैं तुम्हारा विश्वास पात्र हूं। इस तरह तुम मेरे लिए एक दर्पण बन जाती हो। जिसमें झांक कर मैं स्वयं को देख पाता हूं कि मैं कौन हूं।”

इसके आगे महादेव कहते हैं, “तुम अपने दर्शन से सशक्त करती हो और मैं आनंद विभूत हूं नाचता हूं और नटराज कहलाता हूं। यही तो प्रेम है जब तुम बार-बार स्वयं को मेरे प्रति समर्पित कर मुझे अभ्यास करती हो कि मैं तुम्हारी लिए सकक्षम हूं। तुमने मेरी वास्तविकता को प्रतिबिंबित कर मेरे दर्पण के रूप में धारण कर लिया यही तो प्रेम है पार्वती”

 

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