Shradh 2021 इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
मदन गुप्ता सपाटू
Shradh 2021: श्राद्ध सारिणी
20 सितंबर, सोमवार: – पूर्णिमा श्राद्ध
21 सितंबर, मंगलवार: –प्रतिपदा श्राद्ध
22 सितंबर, बुधवार: – द्वितीया श्राद्ध
23 सितंबर, बृहस्पतिवार: – तृतीया श्राद्ध
24 सितंबर, शुक्रवार: – चतुर्थी श्राद्ध
25 सितंबर, शनिवार: – पंचमी श्राद्ध
27 सितंबर, सोमवार: – षष्ठी श्राद्ध
28 सितंबर, मंगलवार: – सप्तमी श्राद्ध
29 सितंबर, बुधवार: – अष्टमी श्राद्ध
30 सितंबर, बृहस्पतिवार: – नवमी श्राद्ध
01 अक्तूबर, शुक्रवार: – दशमी श्राद्ध
02 अक्तूबर1, शनिवार: – एकादशी श्राद्ध
03 अक्तूबर, रविवार: – द्वादशी, सन्यासियों का श्राद्ध, मघा श्राद्ध
04 अक्तूबर, सोमवार: – त्रयोदशी श्राद्ध
05 अक्तूबर, मंगलवार: – चतुर्दशी श्राद्ध
06 अक्तूबर, बुधवार: – अमावस्या श्राद्ध
Shradh Paksha 2021 पक्ष में विशेष मुहूर्तों पर कर सकते हैं खरीदारी
दिन के अपरान्ह 11:36 मिनिट से 12:24 मिनिट तक का समय श्राद्ध कर्म के विशेष शुभ होता है। इस समय को कुतप काल कहते हैं।
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अक्सर आधुनिक युग में श्राद्ध का नाम आते ही इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती हैं । प्रशन किया जाता है कि क्या श्राद्धों की अवधि में ब्राहमणों को खिलाया गया भोजन पित्तरों को मिल जाता है\ क्या यह हवाला सिस्टम है कि पृथ्वी लोक में दिया और परलोक में मिल गया ! फिर जीते जी हम माता पिता को नहीं पूछते —–मरणेापरांत पूजते हैं! ऐसे कई प्रशन हैं जिनके उत्तर तर्क से देने कठिन होते हैं फिर भी उनका औचित्य अवश्य होता है।
आप अपने सुपुत्र से कभी पूछें कि उसके दादा – दादी जी या नाना -नानी जी का क्या नाम है। एकल परिवार में, आज के युग में 90 प्रतिशत बच्चे या तो सिर खुजलाने लग जाते हैं या ऐं—-ऐं —– करने लग जाते हैं। परदादा का नाम तो रहने ही दें ।यदि आप चाहते हैं कि आपका नाम आपका पोता भी जाने तो आप श्राद्ध के महत्व को समझें। सदियों से चली आ रही भारत की इस व्यावहारिक एवं सुंदर परंपरा का निर्वाह अवश्य करें। हम पश्चिमी सभ्यता की नकल कर के मदर डे,फादर डे, सिस्टर डे,वूमन डे,वेलेंटाइन डे आदि पर पर ग्रीटिंग कार्ड या गीफट देके डे मना ल्ेाते हैं । उसके पीछे निहित भावना या उदे्श्य को अनदेखा कर देते हैं। परंतु श्राद्धकर्म का एक समुचित उद्ेश्य है जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है।
श्राद्ध – आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं। जिन दिवंगत आत्माओं के कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है उनकी कुर्बानियों व योगदान को स्मरण करने के ये 15 दिन होते है। इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों के बारे बताएं ताकि वे कुटुंब की स्वस्थ परंपराओं का निर्वाह करें।
ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दुओं में ही मृतकों को याद करने की प्रथा है इसाई समाज में निधन के 40 दिनों बाद एक रस्म की जाती है जिसमें सामूहिक भोज का आयोजन होता है।इस्लाम में भी 40 दिनों बाद कब्र पर जाकर फातिहा पढ़ने का रिवाज है। बौद्ध धर्म में भी ऐसे कई प्रावधान है।तिब्बत में इसे तंत्र-मंत्र से जोड़ा गया है। पश्चिमी समाज में मोमबत्ती प्रज्जवलित करने की प्रथा है।
दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति]मुक्ति एवं श्रद्धा पूर्वक की गई क्रिया का नाम ही श्राद्ध है। आश्विन मास का कृष्ण पक्ष श्राद्ध के लिए तय है। ज्योतिषीय दृष्टि से इस अवधि में सूर्य कन्या राशि पर गोचर करता है। इसलिए इसे ‘कनागत भी कहते हैं।जिनकी मृत्यु तिथि मालूम नहीं है] उनका श्राद्ध अमावस को किया जाता है। इसे सर्वपितृ अमावस या सर्वपितृ श्राद्ध भी कहते हैं। यह एक श्रद्धा पर्व है – भावना प्रघान पक्ष है। इस बहाने अपने पूर्वजों को याद करने का एक रास्ता। जिनके पास समय अथवा धन का अभाव है, वे भी इन दिनों आकाश की ओर मुख करके ]दोनों हाथों द्वारा आवाहन करके पितृगणों को नमस्कार कर सकते हैं। श्राद्ध ऐसे दिवस हैं जिनका उद्ेश्य परिवार का संगठन बनाए रखना है। विवाह के अवसरों पर भी पितृ पूजा की जाती है।
दिवंगत परिजनों के विषय में वास्तुशास्त्र का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। घर में पूर्वजों के चित्र सदा नैर्ऋत्य दिशा में लगाएं। ऐसे ं चित्र देवताओं के चित्रों के साथ न सजाएं। पूर्वज आदरणीय एवं श्रद्धा के प्रतीक हैं। पर वे ईष्ट देव का स्थान नहीं ले सकते। जीवित होते हुए अपनी न तो प्रतिमा बनवाएं और न ही अपने चित्रों की पूजा करवाएं। ऐसा अक्सर फिल्म उद्योेग या राजनीति में होता है जिसे किसी भी प्रकार शास्त्रसम्मत नहीं माना जा सकता।
हमारे समाज में हर सामाजिक व वैज्ञानिक अनुष्ठान को धर्म से जोड़ दिया गया था ताकि परंपराएं चलती रहें।श्राद्धकर्म उसी श्रृंखला का एक भाग है जिसके सामाजिक या पारिवारिक औचित्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती ।
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।
मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
श्राद्ध में तिल, चावल जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई.पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।
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कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।
पितृ दोष में अवश्य करें श्राद्ध
मान्यता है कि यदि ज्योतिषीय दृष्टि से यदि कुंडली में पितृ दोष है तो निम्न परिणाम देखने को मिलते हैं
1.संतान न होना 2.धन हानि 3.गृह क्लेश 4.दरिद्रता 5.मुकदमे 6.कन्या का विवाह न होना 7.घर में हर समय बीमारी 8.नुक्सान पर नुक्सान 9.धोखे 10.दुर्घटनाएं11.शुभ कार्यों में विघ्न
कैसे करें श्राद्ध ?
इसे ब्राहमण या किसी सुयोग्य कर्मकांडी द्वारा करवाया जा सकता है। आप स्वयं भी कर सकते हैं।
ये सामग्री ले लें -.सर्प-सर्पिनी का जोड़ा,चावल,काले तिल,सफेद वस्त्र,11 सुपारी,दूध,जल, तथा माला.।.पूर्व या दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें.सफेद कपड़े पर सामग्री रखें.108 बार माला से जाप करें या सुख शांति,समद्धि प्रदान करने तथा संकट दूर करने की क्षमा याचना सहित पित्तरों से प्रार्थना करें।.जल में तिल डाल के 7 बार अंजलि दें.।.शेष सामग्री को पोटली में बांध के प्रवाहित कर दें. । हलुवा,खीर,भोजन,ब्राहमण,निर्धन,गाय, कुत्ते,पक्षी को दें।
श्राद्ध के 5 मुख्य कर्म अवश्य करने चाहिए ।
1.तर्पण-दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पित्तरों को नित्य अर्पित करें।
2. पिंडदान-चावल या जौ के पिंडदान,करके भूखों को भोजन भेाजन दें।
3. वस्त्रदानःनिर्धनों को वस्त्र दें।
4.दक्षिणाः भोजन के बाद दक्षिणा दिए बिना एवं चरण स्पर्श बिना फल नहीं मिलता।
5.पूर्वजों के नाम पर , कोई भी सामाजिक कृत्य जैसे -शिक्षा दान,रक्त दान, भोजन दान, वृक्षारोपण ,चिकित्सा संबंधी दान आदि अवश्य करना चाहिए।
किस तिथि को किसका करें श्राद्ध ?
जिस तिथि को जिसका निधन हुआ हो उसी दिन श्राद्ध किया जाता है। यदि किसी की मृत्यु प्रतिपदा को हुई है तो उसी तिथि के दिन श्रद्धा से याद किया जाना चाहिए । यदि देहावसान की डेट नहीं मालूम तो फिर भी कुछ सरल नियम बनाए गए हैं। पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का नवमी पर किया जाना चाहिए। जिनकी मृत्यु दुर्घटना, आत्मघात या अचानक हुई हो , उनका चतुदर्शी का दिन नियत है। साधु- सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी पर होगा। जिनके बारे कुछ मालूम नहीं , उनका श्राद्ध अंतिम दिन अमावस पर किया जाता है जिसे सर्वपितृ श्राद्ध कहते हैं।
कौन कौन कर सकता है श्राद्ध कर्म ?
पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए। एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है। पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं। पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं।
पुत्रए पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है। पत्नी का श्राद्ध व्यक्ति तभी कर सकता हैए जब कोई पुत्र न हो। पुत्रए पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है। गोद लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी माना गया है।
पितृपक्ष के पखवाड़े में स्त्री एवं पुरुष दोनों को ही सदाचार एवं ब्रहमचर्य का पालन करना चाहिए।
यह एक शोक पर्व होता है जिसमें धन प्रदर्शन, सौंदर्य प्रदर्शन से बचना चाहिए। फिर भी यह पक्ष श्रृद्धा एवं आस्था से जुड़ा है। जिस परिवार में त्रासदी हो गई हो वहां स्मरण पक्ष में स्वयं ही विलासिता का मन नहीं करता।अधिकांश लोग पितृपक्ष में शेव आदि नहीं करते अर्थात एक साधारण व्यवस्था में रहते हैं।
श्राद्ध पक्ष में पत्तलों का प्रयोग करना चाहिए। इससे वातावरण एवं पर्यावरण भी दूषित नहीं होता ।
इस दौेरान घर आए अतिथि या भिखारी को भोजन या पानी दिए बिना नहीं जाने देना चाहिए। पता नहीं किस रुप में कोई किसी पूर्वज की आत्मा आपके द्वार आ जाएं ।
चंद्र राशि के अनुसार साधारण विधि से भी कर सकते हैं श्राद्ध
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