India News (इंडिया न्यूज़), Shri Krishna Ne Nahi Bachaye Abhimanyu Ke Praan: महाभारत के युद्ध में वीर योद्धाओं की सूची में एक नाम अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का भी शामिल है। कम उम्र में ही युद्ध कौशल में निपुण अभिमन्यु ने कौरवों के कई महारथियों को पराजित किया था। विशेष रूप से महाभारत के 13वें दिन, जब अभिमन्यु ने कौरवों के चक्रव्यूह में प्रवेश किया, तब वह अपने पराक्रम के चरम पर था। लेकिन इस युद्ध में एक अनोखी घटना घटी—श्री कृष्ण, जो युद्ध के दौरान पांडवों के संरक्षक थे, उन्होंने न तो पांडवों को सचेत किया और न ही अभिमन्यु की रक्षा की। इसके पीछे क्या कारण था? आइए, इस रहस्य पर ज्योतिषीय दृष्टिकोण से विचार करते हैं।
श्री कृष्ण के इस निर्णय के पीछे चंद्र देव का हठ मुख्य कारण था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अभिमन्यु चंद्र देव के पुत्र वर्चा का अवतार था। जब यह तय हुआ कि प्रत्येक देवता के पुत्र पांडव कुल में जन्म लेंगे, तब चंद्रमा ने इस पर अपनी असहमति व्यक्त की। वे नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र महाभारत के भीषण युद्ध में हिस्सा ले। परंतु भगवान विष्णु की आज्ञा का उल्लंघन करना भी चंद्रमा के लिए संभव नहीं था। अतः उन्होंने एक शर्त रखी कि उनका पुत्र वर्चा, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के रूप में जन्म लेगा, लेकिन उसका जीवनकाल बहुत अल्प होगा।
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महाभारत में चंद्र देव की यह शर्त तब पूर्ण हुई जब युद्ध के 13वें दिन अभिमन्यु ने कौरवों के चक्रव्यूह में प्रवेश किया और अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ। श्री कृष्ण, जो भविष्य के ज्ञाता थे, उन्हें अभिमन्यु के साथ होने वाली घटना का पहले से ही ज्ञान था।
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लेकिन चंद्र देव के हठ के कारण, श्री कृष्ण ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया। वे जानते थे कि यह घटना महाभारत के घटनाक्रम का एक आवश्यक हिस्सा है, और इसीलिए उन्होंने न तो पांडवों को आगाह किया और न ही अभिमन्यु की रक्षा की।
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महाभारत की इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि देवताओं की इच्छाएं और उनके हठ, धरती पर घटित घटनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अभिमन्यु की मृत्यु एक ऐसी घटना थी, जिसे टालना संभव नहीं था, क्योंकि यह चंद्र देव की शर्तों का परिणाम थी। श्री कृष्ण के इस निर्णय से यह भी स्पष्ट होता है कि वे धर्म के मार्ग पर चलने वाले एक परमज्ञानी थे, जो केवल उचित समय पर उचित कार्य करते थे।
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