India News (इंडिया न्यूज़), Sister Of Duryodhana: महाभारत के युद्ध की कथाएं तो हिंदु धर्म में काफी प्रचलित हैं, इसके साथ हीं महाभारत में कई ऐसे पात्र हैं जिनकी वर्णन अक्सर कथाओं में किया ही जाता है। और कई पात्र ऐसे भी हैं जिनके बारे में अधिक्तर लोगों को बहुत ज्यादा नही पता है। और इन्ही पात्रों में से एक है दुर्योधन की बहन, बहुत से लोगों को ये जानकर हैरानी होगी की दुर्योधन की कोई बहन भी थी। और उसका जन्म कौरवों के साथ हुआ था। वह अपने सौ भाइयों में सबसे छोटी थी। आज हम इस लेख में आपको बताएंगे की दुर्योधन की बहन का नाम क्या था और उसके जन्म से जुड़ी अन्य क्या कहानी है। आइए विस्तार से जानें इसके पीछे क्या कहानी है।
महाभारत की कथा के मुताबिक, महाभारत काल में एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर पहुंचे तब वहां गांधारी ने महर्षि वेदव्यास का काफी आदर सत्कार किया जिससे प्रसन्न होकर महर्षि ने गांधारी को सौ पुत्र की प्रापति का वरदान दिया। लेकिन गर्भावस्था आने के बाद गांधारी का गर्भ तो ठहरा पर दो साल तक उन्हे संताम प्रापति नही हुई। उसके कुछ समय बाद उनके गर्भ से मांस का गोला निकला जो लोहे की तरह कड़ा और मजबूत था। तब गांधारी ने उसे फेंकना चाहा लेकिन महर्षि वेदव्यास ने उन्हे ऐसा करने से रोका और उस मांस के गोले पर जल छिड़का। जिसके बाद वो मांस का गोला 101 टुकड़ों में बट गया था। गांधारी ने उन मांस के गोले को अलग कर मटकों मे डाल कर एक खास द्रव्य रख दिया, और फिर गांधारी ने सौ पुत्र और और एक पुत्री को जन्म दिया।
महाभारत के अनुसार दुर्योधन की बहन का नाम दुशाला था, जो अपने सभी 100 भाइयों में सबसे छोटी थी। बचपन से ही पांडव भी दुशाला को अपनी बहन की तरह प्यार करते थे। इसी कारण एक बार युधिष्ठिर ने उसके पति जयद्रथ को मृत्यु दंड न देकर उसे जीवित छोड़ दिया था। महाभारत में दुशाला के बारे में और कोई वर्णन नहीं मिलता।
धृतराष्ट्र ने अपनी बेटी का विवाह सिंधु देश के राजा जयद्रथ से करवाया था। जयद्रथ बहुत शक्तिशाली योद्धा था। जब पांडव वनवास में थे, तब एक दिन जयद्रथ जंगल से गुजर रहा था। तभी उसने द्रौपदी को अकेली देखकर उसका अपहरण करने की कोशिश की। लेकिन अर्जुन और भीम ने उसे पकड़ लिया। पांडवों ने उसे मारा नहीं बल्कि अपमानित करके छोड़ दिया। महाभारत युद्ध जीतने के बाद पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया। उस यज्ञ के घोड़े का रक्षक अर्जुन को बनाया गया था। एक दिन यज्ञ का वह घोड़ा भटक कर सिंधु देश में पहुंच गया। वहां अर्जुन ने सिंधु देश की सेना के साथ भयंकर युद्ध किया। तब युद्ध के बीच में ही वह अपने छोटे से पोते के साथ युद्ध भूमि में आई और युद्ध रोकने की प्रार्थना की। अर्जुन ने भी अपनी बहन की बात मान ली और सिंधु देश छोड़कर आगे बढ़ गए।
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