संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
महान यूनानी दार्शनिक सुकरात जी की एक कहावत है कि, ‘हमारी प्रार्थनाएं सामान्य आशीर्वाद पाने के लिए होनी चाहिए।’ क्योंकि परमात्मा जानते हैं कि हमारे लिए बेहतर क्या है? यह कहावत उस प्रार्थना को दशार्ती है, जिसमें हम परमात्मा से केवल वही देने के लिए कहते हैं, जिसमें हमारी भलाई हो।
कई बार हम परमात्मा से ऐसा कुछ मांगते हैं, जो हमें नहीं मिलता। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम जो मांग रहे होते हैं, उसमें हमारी बेहतरी नहीं होती। ऐसे कई मौके होते हैं जब लोग परमात्मा से कुछ पाने के लिए प्रार्थना करते हैं और परमात्मा उनकी मांग पूरी नहीं करते। अंत में वे यही पाते हैं कि वह मांग उनके लिए किसी तरह भी सही नहीं थी। क्या एक मां अपने बच्चे को जहर देगी? चाहे बच्चा उसके लिए नाराज हो या रोए लेकिन नहीं देगी क्योंकि वह जहर है इसलिए मां उसे कभी नहीं देगी। इसकी जगह मां बच्चे को वही देगी जो बच्चे के लिए बेहतर होगा।
शायद बच्चा उस वक्त यह समझ नहीं पाए लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता है और सीखता है, तो वह उन सारी चीजों के लिए आभार महसूस करता है, जो मां ने उसकी अच्छाई के लिए अस्वीकृत की थी। कई बार हम सही चुनाव करने के बारे में भी बहुत चिंतित रहते हैं। हम सही चुनाव कैसे कर सकते हैं? संत-महापुरुष हमें समझाते हैं कि सही चुनाव करने का एक तरीका है और वो ये है कि हम परमात्मा से प्रार्थना करें कि परमात्मा हमें वही दे जिसमें हमारा भला हो क्योंकि परमात्मा कभी गलती नहीं करते। हम ऐसी कितनी बार पाते हैं कि जब हमने अपना भाग्य परमात्मा के हाथों में छोड़ दिया हो और चीजें बेहतर तरीके से हो गईं? परमात्मा चाहते हैं कि हम वापिस अपने सच्चे घर आएं और आंतरिक मंडलों में अनंत शांति और आनंद से रहें। जब हम परमात्मा के पास वापिस जाने का फैसला करते हैं, तब परमात्मा हमारे लिए सारे दरवाजे खोल देते हैं। तब अगर हम परमात्मा से हमारी बेहतरी के लिए कुछ मांगते हैं तो परमात्मा हमें अपने निजघर जाने की तरफ तेजी से बढ़ाते हैं। यह हम ही हैं जो देर कर रहे हैं क्योंकि हम ऐसी चीजों के लिए प्रार्थना करते हैं जो हमें किसी अलग या विरोधी दिशा में ले जाती हैं। जागरूक जीवन जीने के लिए आध्यात्मिक मोती कौन से हैं? अगर हम परमात्मा की मर्जी में निश्चिंत होकर रहें, तब आगे जाकर हम पाएंगे कि हर चीज हमारे लिए बेहतरीन तरीके से होगी। ध्यान-अभ्यास ही परमात्मा के रजा में रहने का एक सही तरीका है क्योंकि ध्यान-अभ्यास के समय हम सारे बंधनों को छोड़कर शांति और समर्पण के भाव से बैठते हैं।
हमें केवल ग्रहणशील होकर बैठना है और यही प्रार्थना करनी है कि जो हमारे लिए बेहतर है, परमात्मा हमें वही दें। तब हम पाएंगे कि परमात्मा हमें उम्मीद से भी ज्यादा बरकतें देते हैं। यही जागरूक जीवन का रहस्य है। ध्यान-अभ्यास के दौरान जागरूक जीवन के लिए हम अपने अंतर में आध्यात्मिक मोतियों के खजाने पाते हैं, जिसमें हम शांति, खुशी और आनंद का अनुभव करते हैं।
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