गीता मनीषी
स्वामी ज्ञानानंद महाराज
गतांक से आगे…
यह गंभीरता निराशा की नहीं अपितु असीम शांति की घोतक है, जिसे कोई धीर धीर गंभीर साधक ही जान सकता है। गंभीर मुमुक्षु जिस परमानंद की अनुभूति स्वयं में करते हुए भी स्वयं को उसी गंभीर अवस्था में स्थित रखता है, इसका अनुमान बस वही लगा सकता है। अनुकूल परिस्थिति बन जाने पर हर्ष अतिरेक में इतना ना झूमना कि किसी प्रतिकूलता के सामने आने पर मन एकाएक उद्विग्न हो उठे बल्कि नित्य निरंतर शांत, स्थिर एवं साम्यावस्था में ही रहना वास्तविक गंभीरता है। यह गंभीरता आती है मनन के अवर्णनीय प्रभाव से। परिस्थितियों में निरंतर परिवर्तन संसार की विशेषता है और इन परिवर्तन शीला परिस्थितियों में मन को स्थिर रख पाना सारा शहर में गंभीर मनन के माध्यम से ही संभव है। मनन मन को निसार संसार से निकालकर आनंद में परमात्मा में निमग्न करने हेतु एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसीलिए दूरदर्शी महापुरुषों ने चिंता छोड़ चिंतन कर का सर्वे उपयोगी जयघोष किया है। अपनी विचारधारा को सांसारिकता की दुर्गंध युक्त दलदल तक ही सीमित रखना स्वयं को नानाविध चिंताओं में ग्रस्त करना है जबकि विचारधारा को परमात्मा मुखी कर देने पर यह चिंतन अथवा मदन कहलाता है जो मन को सर्व प्रकार से चिंता मुक्त करके शांत प्रशांत बना देता है।
आइए, एक दृष्टि मनन विधि पर भी डालें। मनन कैसे किया जाना चाहिए तथा मनन की पूर्ण उपयोगिता किस ढंग से मनन करने में है आदि विषय पर कुछ लिखना अपनी ओर से कुछ भी स्पष्टीकरण देना अपने मन में युक्तियुक्त नहीं है क्योंकि मन में कल्याण की तीव्र जिज्ञासा के उदित हो जाने पर जब साधक का स्वभाव मननशील बन जाता है तो कल्याण संबंधी विचार स्वत: है मन में स्फूटित होते रहते हैं। विचारों के क्रम में मनाता है निर्दिष्ट करता रहता है उस शांत प्रशांत अवस्था की ओर उस गंभीर शांति की ओर जिसकी प्राप्ति के लिए आप चिराकांक्षी हैं। फिर भी विषय क्या स्पष्टीकरण है तो अपनी ओर से मनन विधि का निरूपण किया जा रहा है जो आध्यात्मिक के जिज्ञासाओं के लिए अवश्य उपयोगी सिद्ध होगा ऐसी आशा की जाती है। स्वतंत्र क्षणों में जब आप स्वयं को सभी प्रकार से क्रिया मुक्त पाएं तो कोलाहल से दूर किसी एकांत शांत वातावरण में कुछ गंभीर मुद्रा में बैठिए। मन को खुला छोड़ दीजिए। किसी प्रकार का दबाव मन पर ना रहे। कुछ छड़ के लिए यह भाव भी मन में ना रहे कि आपको कुछ करना है कुछ दायित्व आप पर हैं आपका कोई है या आप किसी के हैं ऐसे सभी विचारों को तिलांजलि देकर यह समझिए कि आप सर्वतंत्र स्वतंत्र हैं।
क्रमश:
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