गीता मनीषी
स्वामी ज्ञानानंद महाराज
गतांक से आगे…
मनन कोजिए, बार-बार मनन कीजिए। संसार की असारता, इसका खोखलापन, परमात्मा का स्वरूप, अपनी वास्तविकता आदि भावों को एक नहीं, अनेक बार गहन चिन्तन का विषय बनाते हुए इससे सम्बन्धी सभी पहलुओं का सूक्ष्मता से विवेचन कीजिए। हर रूप से, हर ओर से रह-रहकर इन विषयों पर विचार कीजिए। मन को सांसारिकता के दलदल से मुक्त करने के लिए इस विचार मार्ग से बढ़कर कोई अन्य साधन नहीं है। यदि कुएं में कीड़े हैं तो उसमें एक कछुआ डाल देने से सभी प्रकार के कीड़ों को समाप्त किया जा सकता है। कछुआ सभी कीड़ों को खा जाएगा और आप शुद्ध जल का लाभ उठा पाएंगे। मन में काम, क्रोघ, लोभ, मोह, अहंकार, निंदा, मत्सर तथा राग-हेष इत्यादि से सम्बंधित विचारों के असंख्य कीड़े एकत्रित हो चुके हैं। इनसे अपने को स्वतन्त्र करने का सर्वोत्तम उपाय है- मन में कल्याणकारी विवेक एवं वैराग्यमयी विचारों को प्रश्रय दीजिए। उस विचार को गहन और गहन जाने दीजिए मनन के माध्यम से, निश्चय ही वह विचार निरमूल कर देगा जन्म-जन्मांतरों से मन में अवस्थित इन नकारात्मक विचारों को। मैं कौन हूं, मेरा जन्म किसलिए हुआ है, संसार-चक्र क्या है तथा परमात्मा कौन है आदि जिज्ञासापूर्ण भावों पर पुन: पुन: विचार करने से विचार सांसारिक विचारों की किसी भी प्रकार से दाल नही गल सकती, क्योंकि सकारात्मक नकारात्मक से अधिक शक्तिशाली होता है।
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