इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली
Swami Ramanad Says About Saints स्वामी रामानंद से जुड़ी एक घटना आपको बता रहें हैं। स्वामी जी का लोग बहुत स्वागत करते थे। उनकी तप शक्ति के बारे में सभी लोग जानते थे। जब एक बार वे एक गांव में ठहरे तो उस समय एक महिला उनके दर्शन करने पहुंची थी। स्वामी रामानंद ने उस महिला को आशीर्वाद देते हुए कहा ‘सौभाग्यवती भव और तुम्हारी संतानें योग्य हों।’
उस महिला ने ये सुना तो आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा आप का यह आशीर्वाद भी मुझे नहीं फलेगा। उसने कहा मेरे पति विट्ठल पंथ आपसे दीक्षा पाकर संन्यासी हो गए और मुझे छोड़कर चले गए।
तब स्वामी रामानंद को पता चला की यह तो मेरा ही शिष्य है। स्वामी रामानंद ने अपने शिष्य चैतन्याश्रम से कहा की तुम्हारी पत्नी आलंदी गांव में तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है। मैंने तुम्हें दीक्षा दी है मैं तुम्हरा गुरु हूं और तुम मेरी बात मानो।
स्वामी जी ने कहा तुमने गृहस्थ जीवन अपनाया है, तो तुम्हे उसे ठीक से जीना चाहिए। गृहस्थ जीवन एक दायित्व होता है अगर मनुष्य को सन्यासी बनना है तो उससे गृहस्थ जीवन में ही आचरण संन्यास लेना चाहिए। तुमने अभी जो लिया है, वह केवल आवरण संन्यास है। अपने दायित्व से तुम मुंह नहीं मोड़ सकते यह पाप समान है। अपनी धर्म पत्नी के साथ जीवन बिताओ और अगर सेवा करना चाहते हो तो अपने परिवार की ऐसे सेवा करो की संसार तुम्हे याद रखे।
गृहस्थ जीवन में भी एक संन्यासी का धर्म और सेवा भाव निभाया जा सकता है। जीवन में सबसे पहले अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को ही पूरा करना चाहिए। इसके बाद ही आपको व्यक्तिगत लक्ष्यों पर ध्यान देना चाहिए। संतान को संस्कारी बनाना भी समाज की सेवा ही है।
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