धर्म

सुंदरता का दूसरा नाम थी ताड़का…फिर ऐसा क्या हुआ जो इस ऋषि के श्राप ने छीन लिया पूरा निखार?

India News (इंडिया न्यूज), Agastya Muni Cursed Tadka: रामायण की कथा में ताड़का का चरित्र महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसका जीवन और उसके अंत के पीछे गहरे संदेश छिपे हैं। ताड़का, जो पहले एक यक्षिणी थी, अत्यंत सुंदर, शक्तिशाली और सौम्य थी। उसका विवाह यक्ष कुल के सुकेतु नामक यक्ष से हुआ था। ताड़का और सुकेतु के दो पुत्र थे, सुबाहु और मारीच, जो बाद में राक्षस प्रवृत्ति के बन गए। ताड़का का जीवन तब बदल गया जब उसके पति की मृत्यु और अगस्त्य मुनि के श्राप ने उसे कुरूप और राक्षसी बना दिया।

सुंद की मृत्यु और ताड़का का क्रोध

ताड़का का पति, सुंद, राक्षसी प्रवृत्ति का था और ऋषि-मुनियों को परेशान करता था। एक दिन उसने महान ऋषि अगस्त्य मुनि के आश्रम पर हमला कर दिया। अगस्त्य मुनि ने उसके इस अपराध पर उसे श्राप दिया, जिससे सुंद वहीं जलकर भस्म हो गया। अपने पति की मृत्यु से ताड़का अत्यंत क्रोधित हो गई और बदला लेने के लिए अपने पुत्रों सुबाहु और मारीच के साथ अगस्त्य मुनि पर हमला करने के लिए दौड़ी।

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ताड़का का श्राप और राक्षसी रूप

ताड़का के क्रोध और प्रतिशोध की भावना को देखते हुए, अगस्त्य मुनि ने उसे मारने की बजाय श्राप दिया। चूंकि ताड़का एक महिला थी, ऋषि मुनि उसके वध के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने ताड़का को उसकी सुंदरता से वंचित कर दिया और उसे एक कुरूप और नरभक्षी राक्षसी बनने का श्राप दिया। इस श्राप ने ताड़का को और भी अधिक विकृत कर दिया और उसे राक्षसी प्रवृत्तियों के मार्ग पर धकेल दिया।

ताड़का का अंत और मुक्ति

ताड़का का आतंक बढ़ता गया, और वह अपने पुत्रों के साथ जंगलों में ऋषि-मुनियों को परेशान करती रही। जब भगवान राम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के साथ यज्ञ की रक्षा के लिए जंगलों में गए, तो ताड़का से उनका सामना हुआ। ताड़का ने यज्ञ को बाधित करने का प्रयास किया, लेकिन भगवान राम ने अपने तीर से उसका वध किया।

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भगवान राम के द्वारा वध होते ही ताड़का को अगस्त्य मुनि के श्राप से मुक्ति मिल गई। उसकी कुरूपता और राक्षसी रूप से भी उसे मुक्ति मिली, और अंततः उसकी आत्मा को शांति प्राप्त हुई।

ताड़का की कथा का संदेश

ताड़का की कथा हमें यह सिखाती है कि क्रोध और प्रतिशोध की भावना किसी को भी विनाश की ओर ले जाती है। पहले एक सौम्य और सुंदर स्त्री होते हुए भी, ताड़का का क्रोध और प्रतिशोध ने उसे राक्षसी बना दिया। लेकिन भगवान राम के हाथों उसका अंत उसे मुक्ति दिलाता है, जो यह दर्शाता है कि न्याय और धर्म के मार्ग पर चलते हुए, सभी बुराइयों से मुक्ति संभव है।

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Prachi Jain

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