धर्म

महाभारत की वह अभागी स्त्री जिसने कर्ण से किया प्रेम लेकिन दुर्योधन ने उसे लिया छीन…उस समय कहां थे श्रीकृष्ण?

India News (इंडिया न्यूज), Bhanumati in Mahabharat: भानुमति, काम्बोज के राजा चंद्रवर्मा की पुत्री, केवल अपनी सुंदरता के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी बुद्धिमत्ता और कुश्ती में कौशल के लिए भी जानी जाती थीं। उनके व्यक्तित्व में एक अद्वितीय आकर्षण था, जो उन्हें अन्य स्त्रियों से अलग करता था। भानुमति का जीवन उस समय के सामाजिक मानदंडों और परंपराओं के विरुद्ध एक साहसिक उदाहरण प्रस्तुत करता है।

स्वयंवर का महोत्सव

भानुमति का स्वयंवर एक महत्त्वपूर्ण और चर्चित घटना थी। इस स्वयंवर में कई प्रतिशोधी और वीर योद्धा शामिल हुए, जिनमें दुर्योधन भी था। दुर्योधन, जो कि कौरवों का प्रमुख था, ने भानुमति के प्रति अपनी चाहत को व्यक्त किया। लेकिन भानुमति ने जब दुर्योधन का चुनाव नहीं किया और अन्य योद्धाओं की तरफ बढ़ गई, तो यह दुर्योधन के लिए एक अपमान का कारण बना।

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दुर्योधन का कृत्य

दुर्योधन ने इस अपमान को सहन नहीं किया। उसने अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए एक अत्यंत विवादास्पद निर्णय लिया। उसने जबरन स्वयंवर की माला अपने गले में डाल ली और भानुमति को अपनी पत्नी बना लिया। यह कृत्य न केवल भानुमति के प्रति एक अन्याय था, बल्कि यह सभी उपस्थित राजाओं और योद्धाओं के लिए भी अस्वीकार्य था। इस स्थिति ने एक बड़ा विवाद उत्पन्न कर दिया और सभी राजा क्रोधित हो उठे।

युद्ध की चुनौती

दुर्योधन की इस हरकत के परिणामस्वरूप, उन सभी राजाओं ने दुर्योधन के खिलाफ आवाज उठाई। लेकिन दुर्योधन ने किसी भी तरह के डर को नजरअंदाज करते हुए सभी योद्धाओं को युद्ध की चुनौती दे डाली। यह एक निर्णायक पल था, जिसने न केवल दुर्योधन की वीरता को प्रदर्शित किया, बल्कि युद्ध के मैदान में आने वाले समस्त योद्धाओं के साहस को भी आजमाया।

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कर्ण का अभूतपूर्व साहस

इस चुनौती का सामना करने के लिए दुर्योधन का मित्र कर्ण आगे आया। कर्ण ने अपनी अद्वितीय कौशल और पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए सभी राजाओं को पराजित कर दिया। यह घटनाक्रम न केवल कर्ण की वीरता को दर्शाता है, बल्कि उस समय की राजनीति और युद्ध की जटिलताओं को भी उजागर करता है।

निष्कर्ष

भानुमति की कहानी न केवल एक स्त्री के साहस और आत्म-समर्पण का उदाहरण है, बल्कि यह उस युग की सामाजिक असमानताओं और युद्ध की महत्ता को भी स्पष्ट करती है। दुर्योधन का कृत्य, भले ही अन्यायपूर्ण था, ने यह स्पष्ट कर दिया कि युद्ध और विजय के पीछे की जटिलताएँ केवल व्यक्तिगत इच्छाओं और सामाजिक दबावों के परिणाम हैं। भानुमति का चरित्र और उसका साहस हमेशा याद किया जाएगा, क्योंकि उन्होंने उस युग की महिलाओं के लिए एक नई मिसाल स्थापित की।

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Prachi Jain

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