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The good Fortune of Life awakens From the Guru गुरु से जगता है जीवन का सौभाग्य

The good Fortune of Life awakens From the Guru

सुधांशु जी महाराज


कान फूंकने वाले नहीं, प्राण फूंकने वाले गुरु से जगता है जीवन का सौभाग्य

प्रेम, लगन, निष्ठा और वफादारी ही भगवान तक पहुंचती है। पैसा, पद और डिग्री का वहां कोई महत्त्व नहीं है। परमात्मा का प्यार संसाधनों के लिए जिन्दगी बिताने से नहीं, अपितु दिव्य कर्म करते हुए दिव्यता के लिए जीवन समर्पित करने से मिलता है। अपने को पूरी तरह गला देना पड़ता है। वृक्ष वसंत में यही तो करते हैं, वे अपने पूरे रूप को अपने वर्तमान को पतझड़ में बदल देते हैं। अपना पुरानापन, बासीपन अर्पित करते ही उनमें नई कोपलें फूट पड़ती हैं। बीज को भी नव अंकुरण के लिए सम्पूर्ण अस्तित्व खोना पड़ता है।

परमात्मा का प्यार पाना ऊंची चीज है: वास्तव में परमात्मा का प्यार इससे कम में नहीं मिलता। इसे पाना ऊंची चीज है। जो केवल पुरुषार्थ करके नहीं, अपितु सम्पूर्ण की दिशा धारा महत्वपूर्ण है। समर्पण भरी लगन इसका मूल है। हाँ जितना आवश्यक है जीवन निर्वहन के लिए उतना प्रयत्नशील रहना जरूरी भी है। पर अनावश्यक चीजों के लिए दु:खी होना। वस्तुएं जोड़कर जीवन के वैभव-विलास का साधन जुटाना और इसी के लिए पागल रहना कहां का न्याय है। जरूरी है अपनी जिम्मेदरियां पूरी करें, पर साधन इकट्ठे करने में ही न लगें। क्योंकि वस्तुएं आपके लिए परमात्मा ने बनाई हैं, आप चीजों के लिए नहीं बने। इसी होश को लाने भर की जरूरत है, आगे का मार्ग भगवान स्वयं खोल देगा। तब जीवन में नई ऊर्जा फूटेगी। तब दुखियों में, गरीबों-अनाथों में, गुरुकुल, वृद्धाश्रम, गौशाला आदि की सेवा में परमात्मा के दर्शन होंगे।

The good Fortune of Life awakens From the Guru अपने-पराये:

विपत्तियों के समय जब अपने-पराये सब दूर हो जाते हैं, उस समय केवल परमात्मा ही सहारा देता है। जब हम किसी के दु:ख में भागीदार बनते हैं, तभी परमात्मा की कृपा रहती है। अन्यथा धन-साधन मालिक ने जैसे दिया, वैसे वह छुड़ा भी लेता है। वैसे छुड़ाने की यह रीति भी नवीनता लाने के लिए है। पर वे धन्य होते हैं, जिनसे सेवा कराता है। नया जन्म-नयी कोपल के साथ हो, अत: व्यक्ति को सेवा-दान द्वारा पूर्व तैयारी करनी चाहिए। इसप्रकार व्यक्ति खुशी-खुशी छोड़े तो दु:ख नहीं होगा, वरना मजबूर होकर भी छोड़ना पड़ता है।

The good Fortune of Life awakens From the Guru जीवन को तृप्ति :

क्योंकि उस एकमात्र परमात्मा का स्वामित्व ही दुनिया में है, आज जो आपके अधिकार में है, कल किसी और के होंगे। पर धन्य वे हैं, जो अपनी ईमानदारी से कमाये साधन को अपने घर-परिवार के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज को परमात्मा का स्वरूप मानकर उसकी सेवा में लगाते हैं। साधनों को गुरु सेवा से जोड़ लेते हैं। इससे जीवन को तृप्ति मिलती है। इसी को पूर्णता की यात्र भी कहते हैं। यही है नित नवीनता की ओर बढ़ना, एक दृष्टि से इसे पूर्णता की ओर चलना ही कहा जायेगा। क्योंकि जो यात्र परमात्मा की ओर है, वह ही पूर्ण यात्र है। मनुष्य जन्म कुछ-न-कुछ अपूर्णता के बीच पूर्णता के लिए ही है। परमात्मा के खेत में बोने से जीवन में अभाव रहेगा, पर कमी महसूस नहीं होगी। ध्यान रखिए मनुष्य परिपूर्ण हो जाए, सम्पूर्ण नहीं हो सकता। यदि सम्पूर्ण शक्ति कोई है, तो वह ईश्वर है। गुरु उसी को पाने हेतु विज्ञानमय ज्ञान दृष्टि देता है। फिर शिष्य अपनी दृष्टि से परमात्मा को इस संसार में अनुभव करता है।

The good Fortune of Life awakens From the Guru कोई भी निष्कर्ष अंतिम सत्य नहीं है:

विज्ञान भी कहता है कि कोई भी निष्कर्ष अंतिम सत्य नहीं है। अत: दरवाजे कभी बन्द न करें। वास्तव में ज्ञान की दिशा में आगे बढ़ने, पूर्णता की ओर यात्र करने का साधन है यह मनुष्य जीवन और जीवन यात्र को सफल करने के लिए जो मार्ग दर्शक की भूमिका निभाता है, संसार के भवसागर में जो खेवैया है, वह सद्गुरु ही है। गुरु ही जीवन के अन्धकारपूर्ण मार्ग में ज्ञान का दिया जलाता है। पर गुरु का चयन करना ही सच्चा मार्ग तय करने के समान है, जो आसान कार्य नहीं है। वैसे कान फूंकने वाले गुरु बहुत मिलेंगे, परन्तु जरूरत है, प्राण फूंकने वाले गुरु की। जिस दिन किसी को प्राण फूंकने वाला गुरु मिल जाता है, तो समझ लें जीवन का सौभाग्य जग गया। जीवन निश्चित ही शिखर चूमेगा, बस उस गुरु के निदेर्शों के प्रति श्रद्धा-समर्पण बनाये रखें। ऐसे सुयोग की प्राप्ति हेतु जिसप्रकार के बलिदान की आवश्यकता पड़े, वह अवश्य दें। क्योंकि अंदर के दीपक को जलाने का यही रास्ता है। फिर उसी ज्ञान प्रकाश के सहारे एक दिन पूर्ण परमात्मा तक भी पहुंच लेंगे और जीवन पूर्णता से, तृप्ति से भर उठेगा। व्यक्ति का द्वेष-राग, बैर जलकर भस्म हो जायेगा। विजयश्री प्राप्त होगी। जीवन अशांत-तबाह होने से बचेगा। तब व्यक्ति कर्तव्य निभाता रहेगा, लेकिन जटिलता नहीं आयेगी। अपने कर्तव्य कर्म पूरे होंगे, लेकिन वैर-विरोध के युद्ध से बचेंगे। यही जीवन की पूर्णता है।

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