India News (इंडिया न्यूज), In Jagaho Par Per Chhoona Hota Hai Varjit: भारतीय संस्कृति में पैर छूने की परंपरा को आदर और संस्कार का प्रतीक माना गया है। यह प्रथा छोटे-बड़ों के प्रति सम्मान व्यक्त करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का एक माध्यम है। हालांकि, ऐसी कुछ मान्यताएं और स्थितियां भी हैं, जब पैर छूना वर्जित या अनुचित माना जाता है। इन मान्यताओं का पालन करना न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता बनाए रखने में भी सहायक है।
कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति पूजा-अर्चना कर रहा हो, तो उसके पैर नहीं छूने चाहिए। ऐसा करने से पूजा में विघ्न उत्पन्न होता है और भक्त की एकाग्रता भंग हो सकती है।
In Jagaho Par Per Chhoona Hota Hai Varjit: किन जगहों पर कभी नहीं छूने चाहिए किसी बड़े के पैर
मंदिर या अन्य किसी धर्म स्थान पर किसी व्यक्ति के पैर छूना वर्जित माना गया है। इन स्थानों पर केवल ईश्वर के प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है। किसी और के पैर छूने को ईश्वर का अपमान माना जा सकता है।
सनातन धर्म में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि किसी सोते या लेटे हुए व्यक्ति के पैर नहीं छूने चाहिए। यह अशिष्टता का प्रतीक माना जाता है। केवल मृतक व्यक्ति के पैर छूने की परंपरा है, जो उनके प्रति अंतिम श्रद्धांजलि का भाव प्रकट करता है।
कुंवारी कन्या को देवी का स्वरूप माना जाता है। इसलिए किसी को भी कुंवारी कन्या के पैर छूने नहीं चाहिए। साथ ही, कन्याओं को भी किसी का पैर छूने से बचना चाहिए, क्योंकि यह उनकी गरिमा और धार्मिक मान्यता के विपरीत हो सकता है।
सनातन परंपराओं के अनुसार, दामाद को अपने ससुर के पैर नहीं छूने चाहिए। इसके अलावा, किसी भी व्यक्ति को अपने मामा के पैर छूने से बचना चाहिए। यह मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति पाप का भागी बनता है।
पैर छूने की प्रथा केवल शारीरिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह एक प्रकार का आध्यात्मिक अभ्यास है। यह अहंकार त्यागने और विनम्रता को अपनाने का प्रतीक है। जब कोई व्यक्ति पैर छूता है, तो वह अपने भीतर की नकारात्मकता को छोड़कर सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करता है। लेकिन इन नियमों का पालन न करना गलत प्रभाव डाल सकता है और इसे अनुचित माना जा सकता है।
भारतीय संस्कृति में पैर छूने की प्रथा एक महत्वपूर्ण परंपरा है, लेकिन इसके पालन के लिए सही समय और परिस्थिति का ध्यान रखना आवश्यक है। धार्मिक और सांस्कृतिक नियमों का पालन करते हुए इस परंपरा को निभाने से यह आदर और सम्मान का सही अर्थ प्रकट करता है। इन नियमों का पालन न केवल व्यक्ति के लिए, बल्कि समाज के लिए भी शुभ और कल्याणकारी होता है।