धर्म

मरने के बाद भी इस मणि ने अर्जुन को दिया था जीवनदान, खुद पत्नी ही बनी थी मृत्यु का कारण?

India News (इंडिया न्यूज़), In Mahabharat Arjun’s Mrityu: महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था और युधिष्ठिर ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ के दौरान, अर्जुन ने घोड़े को लेकर विभिन्न राज्यों की यात्रा करने का निर्णय लिया। उनकी यात्रा का अंतिम गंतव्य मणिपुर था, जहां उनके पुत्र बभ्रुवाहन निवास करते थे।

जब बभ्रुवाहन को पता चला कि उनके पिता अर्जुन मणिपुर में पहुंचे हैं, तो वह तुरंत उनके पास पहुंचे। लेकिन अर्जुन ने अपने पुत्र से क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए युद्ध की चुनौती दी। बभ्रुवाहन ने अपनी माता उलूपी के प्रोत्साहन पर आकर भीषण युद्ध छेड़ दिया। इस संघर्ष के दौरान, बभ्रुवाहन ने एक तीर चलाया जो सीधे अर्जुन के सीने पर लग गया। अर्जुन धरती पर गिर पड़े और मृत्यु की नींद में सो गए।

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चित्रांगदा ने किया दृण निश्चय

अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा इस हादसे को सहन नहीं कर पाईं। उन्होंने अपने पति को पुनर्जीवित करने की ठानी और संजीवनी मणि का सहारा लिया। चित्रांगदा ने अर्जुन के सीने पर संजीवनी मणि रख दी, और चमत्कारी रूप से अर्जुन जीवित हो उठे।

इस बीच, उलूपी ने अर्जुन को बताया कि उसे मृत्यु के श्राप का सामना करना पड़ा था। इस श्राप के पीछे का कारण था कि अर्जुन ने छलपूर्वक भीष्म का वध किया था। उलूपी ने मोहिनी माया का प्रयोग करते हुए अर्जुन की मृत्यु का कारण बनाई थी, ताकि वह संजीवनी मणि के माध्यम से पुनर्जीवित हो सकें।

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संजीवनी मणि

संजीवनी मणि का चमत्कारिक प्रभाव दिखाते हुए, अर्जुन ने अश्वमेघ यज्ञ को बिना किसी विघ्न के पूर्ण किया और वसु द्वारा दिए गए श्राप से भी मुक्ति प्राप्त की। इस प्रकार, महाभारत की कथा में संजीवनी मणि का महत्वपूर्ण स्थान बन गया, जो जीवन और मृत्यु के बीच एक अद्भुत पुल का काम करती है।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

Prachi Jain

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