India News (इंडिया न्यूज़), Story Of Khatushyam Ji’s Brothers: राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम जी का मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। खाटू श्याम जी को ‘हारे का सहारा’ और ‘तीन तीर धारी’ जैसे नामों से जाना जाता है। उनकी कथा और महाभारत से जुड़ी उनकी कहानी अद्वितीय और प्रेरणादायक है, लेकिन कम लोग जानते हैं कि खाटू श्याम जी के दो वीर भाई भी थे—अंजनपर्व और मेघवर्ण।

खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक

महाभारत के युद्ध में, बर्बरीक, जिन्हें खाटू श्याम जी के नाम से पूजा जाता है, भी एक महत्वपूर्ण योद्धा थे। बर्बरीक भीम के पोते और घटोत्कच के पुत्र थे। उनकी शक्ति और वीरता इतनी अद्वितीय थी कि उनके पास केवल तीन बाण थे, जिनसे वे पूरा युद्ध जीत सकते थे। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर उन्होंने अपना सिर दान कर दिया, ताकि महाभारत का युद्ध सही और न्यायपूर्ण ढंग से लड़ा जा सके।

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वीर भाइयों की भूमिका

बर्बरीक के दो भाई अंजनपर्व और मेघवर्ण भी अत्यंत शक्तिशाली योद्धा थे। दोनों ने महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से भाग लिया था और अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था। अंजनपर्व और मेघवर्ण का युद्ध में योगदान अविस्मरणीय था, लेकिन दुर्भाग्यवश, दोनों वीरगति को प्राप्त हुए।

अंजनपर्व की वीरगति

महाभारत के युद्ध के 14वें दिन, कर्ण ने घटोत्कच का वध कर दिया था। उसी दिन, गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा ने अंजनपर्व का वध किया। अंजनपर्व का पराक्रम और उनकी वीरता युद्ध के मैदान में असाधारण थी, लेकिन अश्वथामा के साथ हुए संघर्ष में वे वीरगति को प्राप्त हुए।

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मेघवर्ण का बलिदान

उधर, मेघवर्ण और वनसेन के बीच भीषण युद्ध हुआ। दोनों ही योद्धाओं ने अद्वितीय पराक्रम का प्रदर्शन किया, लेकिन अंततः मेघवर्ण वीरगति को प्राप्त हुए। उनका बलिदान महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय के लिए महत्वपूर्ण था।

खाटू श्याम जी की महिमा

खाटू श्याम जी को उनकी दानशीलता और महानता के लिए पूजा जाता है। उन्होंने अपने सिर का दान कर यह दिखाया कि सच्चे वीर वही होते हैं, जो निःस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। उनके दो भाइयों, अंजनपर्व और मेघवर्ण, की वीरता भी इस कथा को और समृद्ध बनाती है। इन दोनों ने युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी और धर्म की रक्षा के लिए लड़ते हुए अपना बलिदान दिया।

यह कथा हमें सिखाती है कि धर्म और न्याय के लिए लड़ी गई लड़ाई में सच्चा बलिदान और वीरता ही सबसे बड़ा योगदान होता है।

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