India News (इंडिया न्यूज़), Sheetala Ashtami 2024: शीतला सप्तमी देवी शीतला का सम्मान करने का एक शुभ दिन है। यह दिन चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। शीतला माता का आशीर्वाद पाने के लिए भक्त इस शुभ दिन पर देवी शीतला की पूजा करते हैं। शीतला सप्तमी का त्यौहार मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस साल शीतला सप्तमी 1 अप्रैल 2024 को मनाई जा रही है।
होली के बाद पवन दिनों की शुरुआत हो जाती है। ऐसे में चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की सातवें और आठवें दिन शीतला माता की पूजा की जाती है। वहीं इसको शीतला सप्तमी और शीतलाष्टमी कहा जाता है। इस पर्व को ज्यादातर मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में रखा जाता है। वहीं इस व्रत की मान्यता के अनुसार होली के बाद सोमवार या फिर गुरुवार को माता का पूजन किया जाता है।
इसके साथ ही बता दे की शीतला माता की पूजा का जिक्र स्कंद पुराण में भी किया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इनकी पूजा और व्रत करने से चेचक या फिर अन्य तरह की बीमारियां और संक्रमणों से राहत मिलती है।
शीतला माता की पूजा को चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी और कुछ जगह पर अष्टमी को किया जाता है। वही इस साल की तिथियां 1 और 2 अप्रैल को पड़ रही है। इसके साथ ही बता दे की सप्तमी के स्वामी सूर्य और अष्टमी के स्वामी शिव होते हैं और दोनों ही शक्तियों के उग्र होने के वजह से शीतला माता की पूजा इस दिन किए जाते है। सिंधु ग्रंथ के मुताबिक जिस तारीख को सूर्योदय के व्रत सप्तमी या अष्टमी हो उसे दिन व्रत और पूजा की जाती है। इसलिए सप्तमी की पूजा सोमवार और शीतला अष्टमी की पूजा मंगलवार को होने वाली है।
मान्यता के अनुसार देवी शीतला चेचक और खसरा जैसी बीमारियों को दूर करने की ताकत रखती है। इन बीमारियों को दूर रखने के लिए माता की पूजा की जाती है। गुजरात में कृष्ण जन्माष्टमी से ठीक 1 दिन पहले बसोड़ा जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं और इसे शीतल सातमी के नाम से जाना जाता है। आखिर में बता दे की शीतला सप्तमी के दिन ताजा खाना नहीं बनाया जाता।
व्रत करने की विधि की बात की जाए तो देवी के लिए और परिवार वालों के लिए खाना एक दिन पहले ही बना लिया जाता है। फिर सप्तमी या अष्टमी तिथि पर ठंडा खाने का भोग लगाया जाता है। इस दिन घर के सभी लोग ठंडा खाना ही खाते हैं। पुराणों के मुताबिक शीतला माता का रूप शीतल है और बीमारी को दूर रखने के लिए उनका पूजन किया जाता है। माता का वाहन गधा है और उनके हाथों में कलश, सूप, झाड़ू, नीम की पत्ते रहती है। वहीं माता की पूजा खासतौर पर गर्मियों के मौसम में की जाती है। इसलिए हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को बसोड़ा पूजन किया जाता है।
शीतला सप्तमी अष्टमी को घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। इस दिन ठंडा खाना ही खाना परंपरा में शामिल है। इसकी वजह यह है कि शीतल यानी जिन्हें ठंडा खाना पसंद है, इसलिए शीतला देवी को उनकी पसंद के अनुसार ठंडी चीजों का भोग लगाया जाता है। इस कारण से उत्तर भारत में शीतला सप्तमी या अष्टमी के व्रत को बसोड़ा कहते हैं।
इसके पीछे की एक वजह यह भी है कि इस दिन के बाद से ठंडा खाना बंद कर दिया जाता है। यह मौसम का आखिरी दिन होता है। जब बासी खाना खाया जाता है। इसके बाद गर्मियां शुरू हो जाती है। इन दोनों ठंडा खाना खराब हो जाता है, इसलिए शीतला देवी की पूजा के साथ ठंडा खाना खाते हैं। कहा जाता है की व्रत से अगर शीतला देवी प्रसन्न होती है। तो परिवार में बुखार, इन्फेक्शन, शिक्षक और आंखों की बीमारियों जैसी चीज नहीं होती शीतला माता सभी को सफाई से रहने की सीख देती है।
शीतला माता के व्रत की कथा की बात की जाए तो एक गांव में एक महिला रहती थी। वह शीतला माता की भक्ति थी और शीतला माता का व्रत करती थी। उसकी गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था। एक दिन उसे गांव में किसी कारण से आग लग गई। जिससे गांव की सभी झोंप्रिया जल गई, लेकिन उसे औरत की झोपड़ी नहीं जली सब लोगों ने उससे वजह पूछी तो उसने बताया कि माता शीतला की पूजा करने से ऐसा हुआ। यह सुनकर गांव के बाकी लोग भी शीतला माता की पूजा करने लगे।
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