दादा जे पी वासवानी
दादा जे पी वासवानी बताते हैं कि गुरु कौन है? गुरु वह है जो रास्ता दिखाता है। एक गणितज्ञ अथवा विज्ञान का शिक्षक, एक नर्तक अथवा संगीतकार, अथवा एक आध्यात्मिक गुरु आपका गुरु हो सकता है। सुख और दु:ख हमें प्रभावित करते हैं; एक गुरु वह है जो अँधेरे से बाहर आ गया है और अब सुख अथवा दु:ख से अभिभूत नहीं होता है। वह विरोधाभासों से मुक्त है, क्योंकि उसने वह मध्यस्थ बिंदु छू लिया है जहाँ ईश्वर रहता है। उसके अन्दर से आशीर्वाद की एक अनंत धारा बहती है। वह उन सब को आशीर्वाद देती है जो उसके रस्ते में आते हैं। वह सब परिस्थितियों, चाहे सुख या दु:ख, में आशीर्वाद देती है। वह पशु एवं पक्षियों को आशीर्वाद देती है और प्रार्थना करती है कि वह शांति में रहें। वह किनारे के पेड़ों को आशीर्वाद देती है। वह सभी रचनाओं को आशीर्वाद देती है और प्रार्थना करती है: ‘सब खुशी और आनंद से भरे रहें!’
जरूर। यदि आपने वर्तमान गुरु के साथ उद्देश्य पूरा कर लिया है तो आप अगले गुरु के पास जा सकते हैं। विभिन्न शिक्षाएं होती हैं और विभिन्न विषय होते हैं। यदि आप एक शिक्षक से एक विषय सीखना पूर्ण कर लेते हैं तो आप दूसरे से दूसरा विषय सीख सकते हैं। अपना गुरु बदलने का मतलब यह नहीं है कि आप उसे छोड़ रहे हैं। उसका मतलब है कोई अन्य ढूंढना कुछ अन्य सीखने के लिए। दूसरी तरफ, यदि एक शिष्य की अपेक्षाएं पूर्ण नहीं होती हैं और वह निराश महसूस करता है, अन्य जगह सीखना बेहतर है। एक असंतुष्ट शिष्य होने में कोई तुक नहीं है।
ईश्वर व्यक्तियों को आध्यात्मिक पथ के लिए चुनता है; एक गुरु उन्हें ढूंढता है। कुछ लोगों को अपने गुरु से मिलने या सुनने से पहले ही उनके सपने आने लगते हैं। अरबिन्दो आश्रम से माँ को अपने गुरु के स्पष्ट सपने आये और वह उन्हें ढूँढने निकल गयीं। आपको चुनना नहीं होता। चुनाव ईश्वर के पास होता है।
एक शिष्य वह है जो विश्वास करता है, जिसके लिए उसका गुरु ही सब कुछ है। एक शिष्य जगसू झ्र जो अपने गुरु की आवाज पर उठ जाता है, कहलाता है। एक सच्चा शिष्य वह है जो हमेशा जागृत रहता है।
शनिवार एवं मंगलवार आत्मन विद्या प्राप्त करने के लिए अच्छे दिन हैं। अंधेरी, अमावस की रातें ऐसी शिक्षा के लिए सर्वश्रेष्ट हैं।
एक गुरु पूर्ण समर्पण की अपेक्षा करता है और एक शिष्य चाहता है कि गुरु सांसारिक मामलों से लेकर आध्यात्मिक प्रगति हर चीज पर मार्गदर्शन करे। गुरु एवं शिष्य दोनों की ओर से बिना शर्त प्यार और स्वीकृति जरूरी है। शायद गुरु-शिष्य का सबसे अच्छा उदाहरण श्री रामकृष्ण परमहंस और उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद हैं।
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