धर्म

अंधेरी रात के इस समय मुर्दों से आखिर ऐसी क्या बात करते है अघोरी, सन्नाटे की वो रात होती है इतनी भयानक कि…?

India News(इंडिया न्यूज), Aghori Sadhu Talk To Dead Bodies: अघोरियों का जीवन हमेशा से ही रहस्यमय और रहनुमाई का प्रतीक रहा है। इन साधुओं की साधना और जीवनशैली आम मानवता से बिल्कुल अलग होती है, और यही कारण है कि उनके बारे में जानने का उत्साह और जिज्ञासा हमेशा बनी रहती है। अघोरी साधु मुख्य रूप से शिव और काली माता के भक्त होते हैं, और इनकी जीवनशैली का अधिकांश भाग श्मशान घाटों में बितता है। यह साधु श्मशान के चिताओं के बीच रहकर अपनी तंत्र साधना और ध्यान करते हैं, ताकि वे संसार के बंधनों से मुक्त हो सकें और आत्मज्ञान प्राप्त कर सकें।

अघोरी साधुओं की तंत्र साधना

अघोरी साधु अपनी तंत्र साधना में उस मार्ग को अपनाते हैं जो सामान्य जीवन से परे होता है। वे श्मशान की अशुद्धता और मृत्यु के प्रतीक को अपने साधना का हिस्सा मानते हैं। यह मान्यता है कि मृत्यु के पास जाने से ही जीवन के वास्तविक रहस्यों को समझा जा सकता है। यही कारण है कि अघोरी साधु अपने अधिकतर समय श्मशान घाटों में बिताते हैं, जहां वे मृत शरीरों के साथ रहकर अपनी साधना करते हैं।

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नरमुंड की माला और कापालिका

अघोरी साधु अपने गले में नरमुंड की माला पहनते हैं, जिसे “कापालिका” भी कहा जाता है। यह नरमुंड उनकी तंत्र साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। नरमुंड की माला पहनना अघोरियों का प्रतीक है और यह मृत्यु और जीवन के चक्र को समझने की उनकी अडिग निष्ठा को दर्शाता है। कापालिका शब्द का अर्थ होता है ‘मृत शरीर के सिर से बनी माला’, जो अघोरियों की शक्ति और उनकी भक्ति के संकेत के रूप में मानी जाती है।

श्मशान में मुर्दों से संवाद

अघोरी साधु श्मशान में केवल तंत्र साधना ही नहीं करते, बल्कि वे मृत शरीरों से भी संवाद करते हैं। यह मान्यता है कि शिव के उपासक होने के नाते अघोरी श्मशान में मुर्दों से कर्म और मोक्ष के बारे में बातचीत करते हैं। उनका विश्वास है कि मृतकों की आत्माएं उनकी साधना के दौरान कर्मों और जीवन के अंत से जुड़े गहरे रहस्यों के बारे में बताते हैं। अघोरी इस संवाद के माध्यम से जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने की कोशिश करते हैं, और यही उनकी तंत्र साधना का उद्देश्य होता है।

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भक्ति, शक्ति और मोक्ष की उपासना

अघोरी साधु श्मशान में सिर्फ तंत्र साधना नहीं करते, बल्कि वे भगवान शिव और काली माता की भक्ति भी करते हैं। उनकी साधना का प्रमुख उद्देश्य शक्ति की प्राप्ति और मोक्ष की प्राप्ति है। वे जीवन के दुखों और सांसारिक मोह को त्यागने की शिक्षा देते हैं। अघोरी साधु चिता की राख को अपने शरीर पर लगाते हैं, जिससे जीवन की नश्वरता और ईश्वर के विराट रूप का संदेश मिलता है। यह राख जीवन की अस्थिरता और मृत्यु के अनिवार्य होने का प्रतीक है, जो अघोरियों के लिए एक गहरी आध्यात्मिक समझ का हिस्सा होती है।

अघोरी साधुओं का संदेश

अघोरियों का जीवन हमें यह सिखाता है कि जीवन केवल भौतिक रूप में ही नहीं, बल्कि आत्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। वे हमें यह समझाते हैं कि सांसारिक मोह और इच्छाओं से मुक्त होने के बाद ही हम मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। वे हमें मृत्यु के प्रतीकों के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि जीवन अस्थिर है और हमें अपनी आत्मा की शुद्धता की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। अघोरियों की तंत्र साधना और उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि जीवन की वास्तविकता को समझने के लिए हमें संसार की भ्रामकता से बाहर निकलना होता है।

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अघोरी साधुओं का जीवन एक गहरी और रहस्यमय यात्रा है, जो हमें मृत्यु, मोक्ष, और आत्मज्ञान के बारे में सोचने पर मजबूर करता है। श्मशान में मुर्दों से संवाद करना, नरमुंड की माला पहनना, और चिता की राख से शरीर को रंगना, ये सब अघोरियों के आध्यात्मिक साधना के प्रतीक हैं। यह जीवन हमें यह सिखाता है कि हर व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्य और आंतरिक शांति को पाने के लिए अपना मार्ग खुद तय करना होता है।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

Prachi Jain

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