India News (इंडिया न्यूज), Widows After The Mahabharata War: महाभारत का युद्ध न केवल भारतीय इतिहास का बल्कि पूरी मानवता के इतिहास का सबसे भीषण और विनाशकारी युद्ध माना जाता है। यह युद्ध 18 दिनों तक चला, जिसमें समस्त पृथ्वी से आए असंख्य योद्धा मारे गए। इस युद्ध ने समाज, परिवारों और स्त्रियों पर गहरा प्रभाव छोड़ा। विशेषकर युद्ध में मारे गए योद्धाओं की विधवाओं का जीवन अत्यंत कठिन और पीड़ादायक हो गया।
महाभारत के आश्रमवासी पर्व के तैंतीसवें अध्याय में एक अद्वितीय घटना का उल्लेख मिलता है, जो इन विधवाओं के उद्धार से संबंधित है। इस अध्याय में बताया गया है कि युद्ध के लगभग 15 वर्ष बाद महर्षि वेदव्यास ने विधवाओं के लिए विशेष अनुष्ठान किया। यह अनुष्ठान उनकी पीड़ा को शांत करने और उन्हें मोक्ष प्रदान करने के लिए किया गया था।
महाभारत युद्ध के बाद, जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने, उन्होंने धृतराष्ट्र, गांधारी और माता कुंती की सेवा की। बाद में, ये सभी वन में तपस्या करने चले गए। पांडव समय-समय पर उनका हालचाल जानने के लिए वन में जाया करते थे। एक बार जब पांडव वन में पहुंचे, उनके साथ युद्ध में मारे गए योद्धाओं की विधवाएं भी थीं। वे सभी गंगा नदी के तट पर स्थित वेदव्यास के आश्रम में पहुंचीं।
महर्षि वेदव्यास ने विधवाओं का दुख देखा और उनसे उनके कष्ट का कारण पूछा। विधवाओं ने उत्तर दिया कि वे अपने मारे गए पतियों को फिर से देखने की इच्छा रखती हैं। उनके इस गहन दुख को समझते हुए महर्षि वेदव्यास ने अपने तपोबल से कुछ अद्वितीय करने का निर्णय लिया। उन्होंने विधवाओं से वादा किया कि एक रात के लिए वे उनके मरे हुए पतियों को पुनर्जीवित करेंगे।
सूर्यास्त के बाद, महर्षि वेदव्यास ने गंगा नदी के तट पर तपस्या की। उनके अद्वितीय तपोबल से महाभारत युद्ध में मारे गए सभी योद्धा गंगा जल से जीवित होकर बाहर आए। उन्होंने अपने परिजनों से मुलाकात की और उन्हें परलोक में सुखी जीवन का आश्वासन दिया। यह दृश्य अत्यंत भावुक और अद्वितीय था।
महर्षि वेदव्यास ने अंधे धृतराष्ट्र को दिव्य नेत्र प्रदान किए, जिससे वे अपने पुत्रों को एक बार फिर देख सके। गांधारी को भी अपनी आँखों की पट्टी उतारने के लिए कहा गया, जिससे वे भी अपने पुत्रों का अंतिम दर्शन कर सकें।
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रात समाप्त होते ही, मृत योद्धा पुनः गंगा जल में डुबकी लगाकर परलोक लौटने लगे। यह देखकर उनकी पत्नियां अत्यंत दुखी हो गईं। उनके इस दुख को देखकर महर्षि वेदव्यास ने एक और महत्वपूर्ण घोषणा की। उन्होंने कहा कि जो भी स्त्री अपने पति के साथ गंगा में डुबकी लगाएगी, वह भी मोक्ष प्राप्त करेगी और अपने पति के साथ परलोक चली जाएगी।
महर्षि वेदव्यास की यह बात सुनकर सभी विधवाओं ने अपने-अपने पतियों के साथ गंगा में डुबकी लगाई और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस प्रकार महर्षि वेदव्यास के अनुष्ठान ने न केवल उन योद्धाओं की विधवाओं को शांति प्रदान की, बल्कि उन्हें मोक्ष दिलाकर परलोक में उनके पतियों के साथ एक होने का अवसर भी दिया।
महाभारत का युद्ध मानवता को दिए गए सबसे कठिन सबकों में से एक था। यह केवल वीरता और विजय की कहानी नहीं है, बल्कि इसमें परिवारों के टूटने, विधवाओं की पीड़ा और उनके उद्धार का भी अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। महर्षि वेदव्यास ने अपनी अद्वितीय शक्ति से इन स्त्रियों को मोक्ष दिलाकर उन्हें उनके पतियों से पुनर्मिलन का अवसर प्रदान किया। इस घटना से यह संदेश मिलता है कि धर्म, तप और मोक्ष की राह पर चलने से व्यक्ति को परम शांति और उद्धार प्राप्त हो सकता है।
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