India News (इंडिया न्यूज), What is Dargah: भारत को सदियों से ऋषि-मुनियों और सूफी-संतों का देश कहा जाता है। इन सभी ने हमेशा मोहब्बत और अमन का पैगाम दिया है। इनके दरबार में हर धर्म और जाति के लोग अपनी मनोकामनाओं को लेकर आते हैं। सूफी बुजुर्गों की दरगाहों पर देशभर से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। लेकिन हाल के दिनों में कई दरगाहों को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। अजमेर की ख्वाजा गरीब नवाज, महाराष्ट्र में हाजी मलंग, उत्तर प्रदेश में शेख सलीम चिश्ती, कर्नाटक के बाबा बुदन जैसी दरगाहों के संबंध में मंदिर होने के दावे किए गए हैं। इन विवादों के बीच यह जानना जरूरी है कि दरगाह क्या होती है, सूफी कौन होते हैं और इनकी भारत में कितनी बड़ी संख्या है।
सूफी कौन होते हैं?
सूफी इस्लाम के रहस्यवादी साधक होते हैं, जिन्होंने मोहब्बत और मानवता की सेवा को अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाया। सूफी शब्द अरबी भाषा के ‘सूफ’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ऊन। यह ऊन सूफियों का पसंदीदा वस्त्र हुआ करता था, क्योंकि वे सादगी और सरलता में विश्वास रखते थे। भारत में सूफी परंपरा के सबसे बड़े प्रतिनिधि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (र.अ.) हैं। इन्हें गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता है। उनकी दरगाह राजस्थान के अजमेर में स्थित है। 12वीं सदी में वे ईरान के सिस्तान से लाहौर होते हुए राजस्थान पहुंचे।
सूफियों का जीवन पैगंबर मोहम्मद साहब के सादगी भरे आदर्शों पर आधारित होता है। उन्होंने जीवन की फिजूलखर्ची और दिखावे से दूरी रखी और मानवता की सेवा को प्राथमिकता दी। भारतीय सूफियों ने अपनी रहस्यमय खोज को समाज सेवा के साथ जोड़ा और सभी को जोड़ने का संदेश दिया।
सूफी दरगाहों का महत्व
सूफी संतों के विचार और उनके जीवन का प्रभाव उनके अनुयायियों और समाज पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। सूफी दरगाहें इन विचारों का केंद्र होती हैं, जहां हर धर्म और जाति के लोग आते हैं। भारत में सूफी परंपरा के प्रमुख सिलसिले — कादरी, चिश्ती, सोहरवर्दी, नक्शबंदी और मदारिया हैं। इनमें से प्रत्येक सिलसिले की अलग-अलग दरगाहें हैं।
प्रमुख दरगाहें:
- अजमेर शरीफ (राजस्थान): ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, जिसे गरीब नवाज के नाम से जाना जाता है।
- मारहरा शरीफ (उत्तर प्रदेश): कादरी सिलसिले की सबसे बड़ी दरगाह।
- दिल्ली: हजरत निजामुद्दीन औलिया, ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी और अमीर खुसरो जैसी 42 दरगाहें।
- हाजी अली (महाराष्ट्र): समुद्र के बीच स्थित हजरत हाजी अली की दरगाह।
- कलियर शरीफ (उत्तराखंड): हजरत अलाउद्दीन साबिर पाक की दरगाह।
दरगाहों पर सांस्कृतिक एकता का प्रतीक
सूफी दरगाहें सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का प्रतीक हैं। उदाहरण के लिए, हजरत निजामुद्दीन औलिया ने यमुना नदी के किनारे अपना अस्थाना बनाया क्योंकि वे हिंदू धर्म के लोगों की आस्था का सम्मान करते थे। उनकी खानकाह में होली के रंग भी उड़ते हैं और दिवाली के दिए भी जलाए जाते हैं।
प्रमुख राज्यों में सूफी दरगाहें
उत्तर प्रदेश:
यहां 118 से अधिक दरगाहें हैं। प्रमुख दरगाहों में शेख सलीम चिश्ती (फतेहपुर सीकरी), मारहरा शरीफ (एटा), और हजरत मखदूम अशरफ सिमनानी (किछौछा शरीफ) शामिल हैं।
बिहार:
बिहार में 110 दरगाहें हैं, जिनमें पटना की खानकाह ए सज्जादिया, नालंदा की मखदूम याह्या मनेरी, और गया की हजरत शाह अता हुसैन फानी मुनेमी प्रमुख हैं।
कश्मीर:
यहां की प्रमुख दरगाहें हजरत शेख जैनुद्दीन ऋषि (अनंतनाग), शेख नूरुद्दीन ऋषि (चरारे शरीफ) और सैयद यूसुफ बातिनजी (बारामूला) हैं।
महाराष्ट्र और कर्नाटक:
महाराष्ट्र में हाजी अली, मखदूम शाह बाबा और कर्नाटक में गुलबर्गा स्थित हजरत बंदा नवाज गेसू दरज की दरगाहें प्रसिद्ध हैं।
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सूफी दर्शन और सामाजिक प्रभाव
सूफी बुजुर्गों ने जीवनभर मोहब्बत और अमन का पैगाम दिया। उन्होंने सभी धर्मों के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए समाज सेवा को अपना कर्तव्य माना। सूफी संतों का साहित्य, जैसे ब्रज भाषा में लिखे गए ग्रंथ, भारतीय सांस्कृतिक विविधता का प्रमाण है।
सूफी दरगाहें भारत की साझा संस्कृति का प्रतीक हैं। ये स्थान धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा देते हैं। हाल के विवादों के बावजूद, इन दरगाहों का महत्व न केवल ऐतिहासिक है बल्कि वर्तमान में भी भारत की विविधता में एकता को दर्शाता है। दरगाहें सिर्फ इबादतगाह नहीं, बल्कि इंसानियत के संदेश को फैलाने वाले केंद्र हैं।