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एक शराबी ने दिया प्रेमानंद महाराज को ये कैसा ज्ञान…कि महाराज के भी खड़े रह गए कान, फिर जो बोले?

Prachi Jain • LAST UPDATED : October 7, 2024, 2:29 pm IST

India News (इंडिया न्यूज), Premanand Maharaj: प्रेमानंद महाराज की जीवन कहानी, उनके त्याग और आध्यात्मिक सफर की एक प्रेरणादायक कथा है। जब एक भक्त ने उनसे पूछा कि क्या कभी उन्होंने घर छोड़ने के बाद वापस लौटने का विचार किया था, महाराज जी ने बहुत ही सरलता और आत्मविश्वास से उत्तर दिया कि ऐसा कभी नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि जब-जब उनके जीवन में समस्याएं आईं, भगवान ने किसी न किसी रूप में उन्हें मार्गदर्शन दिया।

महाराज जी और उनका अद्भुत अनुभव

महाराज जी ने एक रोचक प्रसंग सुनाया, जब वह करीब 17-18 साल के थे और बिठूर में गंगा किनारे बैठे थे। उस समय, उन्हें एक शराबी मिला, जिसने उनसे बातचीत शुरू की। उस शराबी ने उन्हें एक जगह ले जाकर वैकुंठ नाथ भगवान की मूर्ति दिखाई, जो गरुण पर सवार थे। उसने महाराज जी से पूछा कि यह कौन है? महाराज जी ने जवाब दिया, “यह भगवान हैं।” लेकिन शराबी ने कहा, “यह पत्थर है, ऊपर भी पत्थर और नीचे भी पत्थर।” उसने आगे समझाया, “जिस पत्थर को तिल-तिल छेनी से काटा गया और वह टूटा नहीं, वह भगवान बनकर पूजा जा रहा है, लेकिन जो पत्थर टूट गया, वह जमीन पर बिछा हुआ है। और तुम, जो बाबाजी बने हो, तिल-तिल काटा जाएगा, लेकिन टूटना नहीं।”

यह वाक्य महाराज जी के जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ बना, और उन्होंने उस शराबी को प्रणाम किया। इस घटना के बाद, जब भी उनके जीवन में कोई कठिनाई आई, भगवान ने किसी न किसी रूप में उन्हें समझाया और उनका मार्गदर्शन किया।

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जीवन का साधारण और अलौकिक दृष्टिकोण

महाराज जी ने आगे बताया कि वह अकेले हैं, और उनके पास कोई दोस्त नहीं है। उन्होंने कभी धन-संपत्ति की लालसा नहीं की, और उनके पास न तो कोई रुपया है, न मोबाइल, न ही कोई सरकारी दस्तावेज़ में उनका नाम दर्ज है। उनका जीवन पूरी तरह से साधुता और त्याग का प्रतीक है। उनके पास कोई जमीन नहीं, कोई बैंक खाता नहीं, और वे किसी भी भौतिक सुख की चाह नहीं रखते।

तीन महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

जब महाराज जी पहली बार घर से निकले थे, तब उनके मन ने उनसे तीन प्रश्न किए थे:

  1. भोजन: “यहां अम्मा खाना बनाकर खिलाती हैं, घर छोड़ने के बाद भोजन कौन खिलाएगा?”
  2. रहने की जगह: “यहां घर में रहते हैं, वहां कहां रहूंगा?”
  3. जीवन: “पूरी जिंदगी कहां काटोगे?”

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इन तीनों प्रश्नों का उत्तर उन्होंने एक ही शब्द में पाया: श्री भगवान। भगवान जहां रखेंगे, वहीं रहूंगा। जो खिलाएंगे, वही खाऊंगा। जैसे काटेंगे, वैसे काटूंगा। इस उत्तर में उनके भगवान पर विश्वास और समर्पण की अटूट भावना झलकती है।

निष्कर्ष

प्रेमानंद महाराज की यह कहानी न केवल एक साधु के त्याग और भक्ति का उदाहरण है, बल्कि यह हमें यह सिखाती है कि भगवान पर विश्वास और समर्पण के बल पर जीवन की हर कठिनाई का सामना किया जा सकता है। उनका जीवन संदेश यह है कि जब हम भगवान के शरण में होते हैं, तो हर समस्या का समाधान और मार्गदर्शन अपने-आप मिल जाता है।

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