समुद्र देव पर श्री राम का क्रोध
किस्सा तब शुरू होता है जब श्री राम की सेना को समुद्र पर एक सेतु बनाना था, ताकि वे लंका तक पहुँच सकें। लेकिन समुद्र देव के वेग के कारण यह कार्य संभव नहीं हो रहा था। श्री राम ने समुद्र देव की आराधना की, लेकिन तीन दिन बीतने के बाद भी जब समुद्र देव प्रकट नहीं हुए, तो श्री राम का क्रोध बढ़ गया। उन्होंने अपने तरकश से तीर निकालकर समुद्र पर निशाना साधा, जिससे समुद्र देव को चिंता हुई।
द्रौपदी को पैदा होते ही मिली पिता की नफरत, जन्म देने वाले ने क्यों बर्बाद की बेटी की जिंदगी? किस्सा सुनकर उड़ जाएंगे होश
समुद्र देव का प्रकट होना
प्रभु श्री राम के क्रोध को देखकर समुद्र देव तुरंत प्रकट हुए और क्षमा याचना की। श्री राम ने उनके सामने अपनी बात रखी और सेतु बनाने की अनुमति मांगी। समुद्र देव ने उन्हें सेतु बनाने का सुझाव दिया और लंका पर चढ़ाई से पहले यज्ञ करने की सलाह दी। श्री राम ने इस सलाह को स्वीकार किया और यज्ञ की तैयारी शुरू की।
शिवलिंग की स्थापना
यज्ञ की तैयारी में, श्री राम ने भगवान शिव की आराधना के लिए शिवलिंग की स्थापना की। उन्होंने नियमों के अनुसार शिवलिंग की पूजा की और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया। यह वही शिवलिंग है, जो आज रामेश्वर धाम में स्थित है, जहां लोग दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। मान्यता है कि रामेश्वर शिवलिंग की पूजा से भगवान शिव और श्री राम दोनों की कृपा प्राप्त होती है।
मरते समय रावण के इन शब्दों से हिल गई थी लक्ष्मण के पैरों तले जमीन, ये थे रावण के आखिरी कड़वे शब्द?
रावण को यज्ञ के लिए आमंत्रण
जब यज्ञ का समय आया, तो राम सेना के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई: यज्ञ संपन्न कराने के लिए ब्राह्मण कहाँ से लाए? श्री राम ने इस कार्य के लिए रावण को चुना। रावण न केवल एक शक्तिशाली राजा था, बल्कि वेदों और शास्त्रों का महान ज्ञाता भी था। इसलिए श्री राम ने ब्राह्मण रावण को यज्ञ संपन्न कराने के लिए न्योता भेजा।
रावण का आशीर्वाद
रावण ने ब्राह्मण धर्म का पालन करते हुए श्री राम का न्योता स्वीकार किया और पूरी विधि के साथ यज्ञ संपन्न किया। जब आशीर्वाद मांगने का समय आया, तो श्री राम ने रावण से लंका विजय का आशीर्वाद मांगा। ब्राह्मण होने के नाते, रावण को इस आशीर्वाद को देना पड़ा।
आखिर क्यों अपने ही छोटे भाई लक्ष्मण को भगवान श्रीराम ने दे दिया था मृत्युदंड?
अपनी मृत्यु का षड्यंत्र
ब्राह्मण के मुख से निकला आशीर्वाद कभी वापस नहीं होता। इस प्रकार, रावण ने श्री राम को आशीर्वाद देकर स्वयं अपनी मृत्यु का मार्ग प्रशस्त किया। यह कहानी न केवल रावण के महान ज्ञान को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे श्री राम की बुद्धिमत्ता ने उसे विजय दिलाई।
निष्कर्ष
यह किस्सा हमें सिखाता है कि किसी भी स्थिति को समझदारी और धैर्य से संभालना चाहिए। रामायण में इस प्रकार के किस्से न केवल हमारे धार्मिक विश्वासों को मजबूत करते हैं, बल्कि हमें जीवन की महत्वपूर्ण शिक्षाएं भी देते हैं। रावण और श्री राम के बीच का यह संवाद एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो हमें यह भी याद दिलाता है कि हमारे कर्मों के परिणाम हमेशा हमारे सामने आते हैं।
कौन थे महाभारत के वो शूरवीर योद्धा जो मरने के बाद सिर्फ एक रात के लिए हुए थे जिंदा?
Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।