India News (इंडिया न्यूज), Story Of Shakuni’s Dice: महाभारत की बात जब-जब आई है तब-तब ये सवाल अक्सर पूछा जाता है कि महाभारत काल के दौरान जब शकुनि की मृत्यु हुई तो हमेशा उसके पास रहने वाले वो उसके इतने प्रिय जादुई पासों का क्या हुआ? आखिर कहां गए वो? शास्त्रों की माने तो ये भी कहा जाता है कि उन पासों में विश्वासघात और छल की एक खास ताकत भरी हुई थी क्योंकि इन पासो को विशेषकर हड्डी से बनाया गया था, और उससे भी बड़ी बात है ये हड्डी भी किसकी थी, जो आज तक भी एक राज बना हुआ है। साथ ही शास्त्रों में ये भी कहा गया है कि शकुनि ही वो एकलौता शख्स था जिसके कारण पांडवों और कौरवों में ना केवल भीषण दुश्मनी हुई बल्कि युद्ध में भारी विनाश तक उठाना पड़ गया। युद्ध में शकुनि के मरने के बाद उसके पासे आखिर गए तो गए किसके पास? उनका क्या हुआ और ये एक रहस्य बन बैठा।
महाभारत के संदर्भ में शकुनि का चरित्र और उसके पासे अत्यंत महत्वपूर्ण और रहस्यमय माने जाते हैं। शकुनि के पासों को लेकर यह धारणा है कि उन्होंने कुरु वंश को बर्बाद करने के उद्देश्य से जादुई शक्ति से भरे पासे बनाए थे, जिनके माध्यम से वह खेलों में छल और धोखाधड़ी कर सकता था।
शकुनि के पासे दरअसल उसके पिता की हड्डियों से बने थे, और उसमें जादुई शक्तियों का समावेश था। यह पासे किसी भी खेल में शकुनि की जीत सुनिश्चित करने की क्षमता रखते थे। कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान जब सहदेव ने शकुनि का वध किया, तो उसके साथ ही उसके पासे भी रहस्यमय रूप से समाप्त हो गए। माना जाता है कि उन पासों को तोड़कर नष्ट कर दिया गया या फिर नदी में बहा दिया गया ताकि उनका दुष्प्रभाव समाप्त हो सके।
शकुनि का परिवार धृतराष्ट्र की कैद में भूख से तड़पकर मारा गया था, और अंतिम समय में उसके पिता सुबाला ने उससे अपने परिवार के अपमान का बदला लेने की बात कही थी। अपनी बहन गांधारी की पीड़ा और अपने परिवार के प्रति वफादारी से प्रेरित होकर शकुनि ने पासों का निर्माण किया। वह जानता था कि पासों की जादुई शक्ति से वह कुरु वंश को धीरे-धीरे नष्ट कर सकता है।
शकुनि ने दुर्योधन को अपने प्रतिशोध की योजना का हिस्सा बनाया, और उसे पांडवों के विरुद्ध भड़काकर छल और कपट का जाल बिछाया। उसने अपने पासों के धोखे से युधिष्ठिर को चौसर के खेल में हराया, जिससे पांडवों को अपना सब कुछ खोना पड़ा और उन्हें वनवास जाना पड़ा। इस धोखे का परिणाम अंततः महाभारत के विनाशकारी युद्ध के रूप में हुआ।
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महाभारत में यह स्पष्ट नहीं है कि शकुनि के पासों का अंत कैसे हुआ, परंतु यह माना जाता है कि उसकी मृत्यु के बाद उन्हें नष्ट कर दिया गया। ये पासे केवल उसके प्रतिशोध और छल-प्रपंच का प्रतीक बनकर रह गए। महाभारत की यह कथा हमें यह संदेश देती है कि छल और बदले की भावना कितनी घातक सिद्ध हो सकती है और अंततः अधर्म का नाश निश्चित है।
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