धर्म

कौन थी महाभारत की ये शक्तिशाली स्त्री, जिसका बल देख भीम के भी उड़ गए थे होश?

India News (इंडिया न्यूज), Balandhara In Mahabharat: महाभारत के युग में, जब शक्ति, साहस और सुंदरता का महत्व सबसे अधिक था, काशी के राजमहल में एक ऐसी राजकुमारी जन्मी जो न केवल अद्वितीय सुंदरता की मूरत थी, बल्कि अद्वितीय बल की धनी भी थी। इस राजकुमारी का नाम था बलन्धरा। काशी नरेश की यह पुत्री अपनी सुंदरता के लिए पूरे आर्यावर्त में प्रसिद्ध थी, लेकिन उसके बल की कहानियाँ भी कम नहीं थीं।

बलन्धरा केवल एक सुंदरी नहीं थी, वह गदा युद्ध और अन्य युद्ध कलाओं में भी पारंगत थी। उसके बल और साहस की चर्चा दूर-दूर तक थी, और इसलिए उनके पिता काशी नरेश ने उसके स्वयंवर में एक अनोखी शर्त रखी। उन्होंने घोषणा की कि जो भी राजकुमार बलशाली होगा और बलन्धरा को युद्ध में हरा सकेगा, वही उससे विवाह कर सकेगा।

महान योद्धा भी नहीं झेल पाए थे बलन्धरा का बल

इस स्वयंवर में आर्यावर्त के कई वीर राजकुमार आए, लेकिन बलन्धरा की शक्ति के आगे वे सभी हार गए। तभी वहाँ पांडवों के बीच सबसे बलशाली, भीमसेन आए। भीम अपने बल और पराक्रम के लिए जाने जाते थे, और उन्होंने बलन्धरा को युद्ध में चुनौती दी। दोनों के बीच एक अद्वितीय युद्ध हुआ, जो घंटों तक चला। लेकिन अंततः भीम ने अपनी अद्वितीय शक्ति से बलन्धरा को पराजित कर दिया। बलन्धरा भीम की इस विजय से न केवल प्रभावित हुई, बल्कि उनके बल और साहस की प्रशंसा भी की।

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ऐसे हुआ भीम-बलन्धरा का विवाह

इस तरह, भीम और बलन्धरा का विवाह हुआ, और वे एक दूसरे के पूरक बन गए। भीम की तरह बलन्धरा भी बलशाली थी, और उनका यह संगम न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि पूरे महाभारत की कथा में एक विशेष स्थान रखता है।

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एक वीर पुत्र की बनी माँ

कुछ समय बाद, बलन्धरा ने एक वीर पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम सुतसोम रखा गया। सुतसोम अपने माता-पिता के गुणों का मिश्रण था, और उसने महाभारत के युद्ध में अद्वितीय पराक्रम दिखाया। उसने कई कौरवों को अपने पराक्रम से धराशायी कर दिया।

लेकिन युद्ध के अंतिम दिन, जब सुतसोम और उसके अन्य चचेरे भाई अपने शिविर में विश्राम कर रहे थे, अश्वत्थामा ने धूर्तता से उन सभी को मार डाला। बलन्धरा ने अपने पुत्र को खो दिया, लेकिन उसकी कहानी में उसकी वीरता और साहस की झलक हमेशा अमर रहेगी। भीम और बलन्धरा का यह संगम महाभारत की कथा में उनकी अद्वितीयता और अद्वितीय बल की गाथा के रूप में सदैव याद रखा जाएगा।

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Prachi Jain

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