धर्म

कौन थे वो चिरंजीवी, जिन्होंने अपनी ही मां का काट दिया था शीश? फिर पिता के साथ ही चली थी शातिर चाल

India News (इंडिया न्यूज़), Parshuram Story: वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि परशुराम जयंती पर किए गए पुण्य कर्मों का प्रभाव कभी समाप्त नहीं होता। क्योंकि परशुराम न केवल भगवान विष्णु जी के छठे अवतार माने जाते हैं बल्कि भगवान शिव के भी अवतार माने गए हैं। बताया जाता है कि भगवान परशुराम का जन्म ऋषि जमदग्नि और रेणुका के घर हुआ था। परशुराम अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। उन्हें न्याय का देवता भी माना जाता है। इसके बावजूद उन्होंने अपने पिता की बात मानकर अपनी मां का सिर काट दिया था। तो यहां जानें क्यों परशुराम को अपनी मां का सिर काटना पड़ गया था और किस वजह से किया था ये काम।

परशुराम को अपनी मां का सिर क्यों काटना पड़ा?

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार परशुराम को उनके पिता ने अपनी मां को मारने का आदेश दिया था और उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी मां का सिर अपने फरसे से काट दिया था। परशुराम को अपनी आज्ञा का पालन करते देख उनके पिता बहुत प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। तब भगवान परशुराम ने उनसे वरदान के रूप में अपनी मां को पुनः जीवित करने का अनुरोध किया।

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परशुराम के पिता ने इस वजह से दिया था यह आदेश

भगवान परशुराम ने अपने पिता से वरदान पाकर अपनी माता को जीवित कर दिया, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनके पिता को ऐसा वचन क्यों देना पड़ा था। पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन जब सभी पुत्र काम के लिए वन में गए हुए थे, तब माता रेणुका स्नान करने गईं। जब वो स्नान करके आश्रम लौट रही थीं, तो उन्होंने राजा चित्ररथ को जल में स्नान करते देखा। यह देखकर उनका मन विचलित हो गया और जब वो घर लौटीं, तो उनके हाव-भाव देखकर महर्षि जमदग्नि को यह बात पता चली।

इसी बीच परशुराम के बड़े भाई रुक्मवान, सुषेणु, वसु और विश्वावसु भी वहां पहुंच गए। महर्षि जमदग्नि ने उन सभी को एक-एक करके अपनी मां का वध करने को कहा लेकिन सभी ने ऐसा करने से मना कर दिया। इससे क्रोधित होकर महर्षि जमदग्नि ने उन्हें श्राप दे दिया कि वो अपनी सोचने-समझने की शक्ति खो देंगे। तब परशुराम वहां पहुंचे और अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी मां का सिर काट दिया था।

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पिता से मांगे थे ये तीन वरदान

जिसके बाद परशुराम को अपनी आज्ञा का पालन करते देख उनके पिता काफी खुश हुए, जिसके बाद परशुराम ने उनसे तीन वरदान मांगे, पहला वरदान यह था कि वो अपनी मां को फिर से जीवित देखना चाहते हैं। दूसरा वरदान यह था कि वो चारों भाइयों को श्राप से मुक्त कर उन्हें फिर से सोचने की शक्ति प्रदान करें और तीसरे वरदान में उन्होंने मांगा कि उन्हें कभी हार का सामना ना करना पड़े और लंबी आयु मिले।

 

 

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Nishika Shrivastava

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